झारखंड में करमा पूजा भाई-बहनों के अटूट रिश्ते को दर्शाती है। बहनें अपने भाई के उज्ज्वल भविष्य के लिए पूजा करती हैं और करम वृक्ष की तरह अपने भाई की दीर्घायु और परिवार में खुशहाल जीवन के लिए कामना करती है।
झारखंड | करमा पर्व आदिवासियों के लिए अलग मायने रखता है। झारखंड सहित देशभर के आदिवासियों का मानना है कि करमा प्रकृति का महापर्व है। पर्व की अनोखी कहानी प्रकृति से जुड़ी हुई है। करमा पर्व पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ आपसी भाईचार का भी संदेश देता है। इस बार झारखंड में करमा पर्व 6 सितंबर को मनाया जाएगा। पूरे राज्य में इसकी तैयारी जोर-शोर से चल रही है। बता दें कि आदिवासियों को प्रकृति का पूजक और रक्षक कहा जाता है। इस समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला पर्व भी प्रकृति से ही जुड़ा होता है। आदिवासियों की सभ्यता, संस्कृति और परंपरा का अनोखा पर्व है करमा। इस पर्व में खानपान, गीत-संगीत का भी खास महत्व होता है। भादों माह के आगमन के साथ ही लोगों के दिलो-दिमाग में करमा गीत का परवान चढ़ने लगता है।
करमा पूजा भाई-बहनों के अटूट रिश्ते को दर्शाती है। बहनें अपने भाई के उज्ज्वल भविष्य के लिए पूजा करती हैं और करम वृक्ष की तरह अपने भाई की दीर्घायु और परिवार में खुशहाल जीवन के लिए कामना करती है। आदिवासी समाज के लोग इस पर्व को इतना महत्वपूर्ण मानते हैं कि अपने जीवन की सभी शुभ काम की शुरुआत इसी दिन से करते हैं। हिंदू धर्म के तीज व्रत के बाद से आदिवासी समाज करमा पर्व की तैयारियों में जुट जाता है। युवतियां गांव-मोहल्ला घूम-घूमकर चावल, गेहूं, मक्का जैसे 9 तरह के अनाज इकट्ठा करती हैं और उसे टोकरी में डालकर गांव के अखड़ा में रखती हैं। भादो मास के एकादशी के दिन शाम का समय युवक-युवतियां इकट्ठा होकर करमा डाल को काटकर नाचते-गाते अखड़ा लाते हैं और इसके बाद विधिवत पूजा अर्चना की जाती है। जिसमें व्रत रखी युवतियां और नव विवाहित महिलाएं, बुजुर्ग समेत गांव-मोहल्ले के सभी लोग शामिल होते हैं और पूजा संपन्न होने के बाद नाचते-गाते हैं। खुशियां मनाते हैं। दूसरे दिन लोग अपने घर में धरती मां की पूजा करते हैं और अच्छी फसल होने के साथ खुशहाल जीवन यापन और घर धन से भरा रहने की कामना करते हैं। इसी दिन युवक-युवतियां करमा की डाल को लेकर नाचते गाते गांव के सभी घरों में घूमते हैं और एक दूसरे को जावा फूल के साथ पर्व की शुभकामनाएं देते हैं। इसके बाद गांव की खुशहाली और समाज को दुख-दर्द और कष्ट से मुक्ति दिलाने की कामना के साथ करम देव को नदी या तालाब में बहा दिया जाता है।
पर्व से जुड़ी कई कहानियां और किंवदंतियां
झारखंड की कुछ जनजातियों का मानना है कि कर्मी नामक वृक्ष पर कर्मसेनी देवी रहती हैं। यदि उन्हें प्रसन्न कर लिया जाये, तो घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है। देवी को खुश करने के लिए ही लोग घर में करम वृक्ष की डाली गाड़कर उसकी पूजा करते हैं। रात भर लोग नाचते-गाते हैं। झारखंड से सटे छत्तीसगढ़ में अलग-अलग जिलों की अलग-अलग जनजातियों का मानना है कि करम पर जब विपत्ति आन पड़ी, तो उसने अपने ईष्ट देव को मनाने के लिए पूरी रात नृत्य किया। इसके बाद उसकी विपत्ति दूर हो गयी। इसलिए इस त्योहार में लोग रात भर नाचते हैं। उरांव जनजाति की मान्यता है कि करम देवता की पूजा करने से फसल अच्छी होती है। उन्हें प्रसन्न करने के लिए ही लोग रात भर नृत्य करते हैं। आदिवासियों के धार्मिक ग्रंथों और लोक कथाओं के अनुसार, करमा पूजा की शुरुआत पिलचू बूढ़ी (प्रारंभिक मानव माता) ने अपनी बेटियों के लिए की थी। तब से बहनें अपने भाइयों की रक्षा और प्रकृति की पूजा के रूप में करम डाली की पूजा करती हैं।
Mar 14 2024, 02:12 PM IST
Mar 10 2024, 09:10 PM IST
Mar 10 2024, 07:48 PM IST
Mar 04 2024, 12:24 PM IST
Feb 21 2024, 11:02 AM IST
Nov 21 2023, 10:46 AM IST
Nov 20 2023, 04:39 PM IST
Nov 20 2023, 10:27 AM IST
Aug 01 2023, 06:35 PM IST
May 23 2023, 02:05 PM IST
Mar 08 2022, 04:10 PM IST
Mar 07 2022, 07:04 PM IST
Sep 25 2023, 11:19 AM IST
Jul 09 2023, 10:46 AM IST
Jun 19 2023, 10:59 AM IST
Jun 07 2023, 11:48 AM IST
Jun 08 2022, 02:17 PM IST
Sep 06 2024, 12:15 PM IST
May 09 2024, 01:24 PM IST
Nov 15 2024, 10:06 AM IST
Oct 11 2024, 11:46 AM IST
Oct 10 2024, 09:29 AM IST
Jan 19 2023, 06:47 PM IST
Jan 19 2023, 05:43 PM IST