शास्त्रों में समस्त जनमानस के लिए तीन ऋणों का मुख्यतः उल्लेख किया जाता है। देव ऋण, पितृ ऋण और ऋषि ऋण। इनमें से श्राद्ध के द्वारा पितृ ऋण से मुक्ति का निर्देश दिया गया है। इसके लिए भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का समय निश्चित है।