वेदप्रताप वैदिक: किसान नहीं बता पा रहे की कृषि कानून में क्या है कमी, फर्जीमुठभेड़ से नहीं निकलने वाला हल

वीडियो डेस्क।  कृषि कानूनों के खिलाफ 73 दिन से आंदोलन कर रहे किसानों ने शनिवार को 3 राज्यों दिल्ली, UP और उत्तराखंड को छोड़ देशभर में चक्काजाम की अपील की थी। दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक किए गए जाम का सबसे ज्यादा असर राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में दिखा। इन राज्यों में प्रदर्शनकारियों ने स्टेट और नेशनल हाईवे जाम कर दिए। किसानों के चक्काजाम पर  वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने कहा कि  किसानों का चक्का-जाम बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया और उसमें 26 जनवरी-- जैसी कोई घटना नहीं घटी, यह बहुत ही सराहनीय है। उत्तरप्रदेश के किसान नेताओं ने जिस अनुशासन और मर्यादा का पालन किया है, उससे यह भी सिद्ध होता है कि 26 जनवरी को हुई लालकिला- जैसी घटना के लिए किसान लोग नहीं, बल्कि कुछ उदंड और अराष्ट्रीय तत्व जिम्मेदार हैं। जहां तक वर्तमान किसान-आंदोलन का सवाल है, यह भी मानना पड़ेगा कि उसमें तीन बड़े परिवर्तन हो गए हैं। एक तो यह कि यह किसान आंदोलन अब पंजाब और हरयाणा के हाथ से फिसलकर उत्तरप्रदेश के पश्चिमी हिस्से के जाट नेताओं के हाथ में आ गया है। राकेश टिकैत के आंसुओं ने अपना सिक्का जमा दिया है। दूसरा, इस चक्का-जाम का असर दिल्ली के बाहर नाम-मात्र का हुआ है। भारत का आदमी इस आंदोलन के प्रति तटस्थ तो है ही, पंजाब, हरयाणा और पश्चिमी उ.प्र. के किसानों के अलावा भारत के सामान्य और छोटे किसानों के बीच यह अभी तक नहीं फैला है। तीसरा, इस किसान आंदोलन में अब राजनीति पूरी तरह से पसर गई है। देखिए एशियानेट न्यूज हिन्दी के साथ इस वीडियो में पूरी बातचीत। 


 

/ Updated: Feb 06 2021, 07:22 PM IST

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वीडियो डेस्क।  कृषि कानूनों के खिलाफ 73 दिन से आंदोलन कर रहे किसानों ने शनिवार को 3 राज्यों दिल्ली, UP और उत्तराखंड को छोड़ देशभर में चक्काजाम की अपील की थी। दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक किए गए जाम का सबसे ज्यादा असर राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में दिखा। इन राज्यों में प्रदर्शनकारियों ने स्टेट और नेशनल हाईवे जाम कर दिए। किसानों के चक्काजाम पर  वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वेदप्रताप वैदिक ने कहा कि  किसानों का चक्का-जाम बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो गया और उसमें 26 जनवरी-- जैसी कोई घटना नहीं घटी, यह बहुत ही सराहनीय है। उत्तरप्रदेश के किसान नेताओं ने जिस अनुशासन और मर्यादा का पालन किया है, उससे यह भी सिद्ध होता है कि 26 जनवरी को हुई लालकिला- जैसी घटना के लिए किसान लोग नहीं, बल्कि कुछ उदंड और अराष्ट्रीय तत्व जिम्मेदार हैं। जहां तक वर्तमान किसान-आंदोलन का सवाल है, यह भी मानना पड़ेगा कि उसमें तीन बड़े परिवर्तन हो गए हैं। एक तो यह कि यह किसान आंदोलन अब पंजाब और हरयाणा के हाथ से फिसलकर उत्तरप्रदेश के पश्चिमी हिस्से के जाट नेताओं के हाथ में आ गया है। राकेश टिकैत के आंसुओं ने अपना सिक्का जमा दिया है। दूसरा, इस चक्का-जाम का असर दिल्ली के बाहर नाम-मात्र का हुआ है। भारत का आदमी इस आंदोलन के प्रति तटस्थ तो है ही, पंजाब, हरयाणा और पश्चिमी उ.प्र. के किसानों के अलावा भारत के सामान्य और छोटे किसानों के बीच यह अभी तक नहीं फैला है। तीसरा, इस किसान आंदोलन में अब राजनीति पूरी तरह से पसर गई है। देखिए एशियानेट न्यूज हिन्दी के साथ इस वीडियो में पूरी बातचीत।