मुस्लिम भक्त की मजार पर रुकता है भगवान जगन्नाथ का रथ, तभी पूर्ण होती है यात्रा, जानें पूरी कहानी
वीडियो डेस्क। कोरोना काल के बीच सुप्रीम कोर्ट ने जगन्नाथ रथ यात्रा की परमिशन दी तो भक्तों के चेहरे खिल गए। जगन्नाथ भगवान की ये रथ यात्रा पूरे देश की आस्था का प्रतीक है। कहते हैं कि ये रथ यात्रा भगवान और भक्त के मिलन का जरिया है। इसके पीछे की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। इतिहास में भगवान का एक मुस्लिम भक्त था सालबेग बताया जाता है कि रथ यात्रा के पहिए इस भक्त की मजार पर खुद ब खुद रुक जाते हैं।
वीडियो डेस्क। कोरोना काल के बीच सुप्रीम कोर्ट ने जगन्नाथ रथ यात्रा की परमिशन दी तो भक्तों के चेहरे खिल गए। जगन्नाथ भगवान की ये रथ यात्रा पूरे देश की आस्था का प्रतीक है। कहते हैं कि ये रथ यात्रा भगवान और भक्त के मिलन का जरिया है। इसके पीछे की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। इतिहास में भगवान का एक मुस्लिम भक्त था सालबेग बताया जाता है कि रथ यात्रा के पहिए इस भक्त की मजार पर खुद ब खुद रुक जाते हैं।
जानें कौन थे भक्त सालबेग
सालबेग 17वीं शताब्दी की शुरूआत में मुगलिया शासन के एक सैनिक थे। सालबेग की माता ब्राह्मण थीं, जबकि पिता मुस्लिम थे। एक बार मुगल सेना की तरफ से लड़ते हुए सालबेग बुरी तरह से घायल हो गए थे। तमाम इलाज के बावजूद उनका घाव सही नहीं हो रहा था। इस पर उनकी मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे भी प्रभु की शरण में जाने को कहा। मां की बात मानकर सालबेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू कर दी। कहते हैं कि सालबेग के घाव एक ही रात में भर गए थे। सालबेग जगन्नाथ भगवान के दर्शन करना चाहते थे लेकिन मुस्लिम होने की वजह से उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया। तब सालबेग ने कहा कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनकी मजार पर दर्शन देने के लिए आएंगे। सालबेग की मौत के बाद उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच ग्रांड रोड के करीब दफना दिया गया।
खुद रुक जाता है मजार पर रथ
ऐसा कहा जाता है कि सालबेग की मृत्यु के बाद जब रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी कोशिश की, लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला। जिसके बाद भगवान के भक्त के जयकारे लगाए गए रथ के पहिये आगे बढ़े। तब से हर साल ये रथ यात्रा इस मुस्लिम भक्त की मजार पर रुकती है।