अलग-अलग रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 1 KM एक्सप्रेसवे बनाने में 30-70 करोड़ तक खर्च आता है।ये लागत कई फैक्टर पर डिपेंड करती है, जैसे- जमीन की कीमत, डिजाइन, टेक्नोलॉजी, सेफ्टी सिस्टम
एक एक्सप्रेसवे में हाई ग्रेड मटीरियल, स्टील ब्रिज, साउंड बैरियर, अंडरपास, सर्विस लेन, स्ट्रीट लाइट्स और रेन वॉटर सिस्टम जैसी चीजें होती हैं, जो हर एक एलिमेंट करोड़ों जोड़ देता है।
रोड प्रोजेक्ट में सबसे बड़ा खर्च जमीन खरीदने पर होता है। जैसे- दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे में लैंड एक्विजिशन पर 40% से ज्यादा बजट खर्च हुआ। इस रोड पर 1 KM का खर्च करीब ₹80 करोड़ रहा।
1 किलोमीटर एक्सप्रेसवे बनाने का औसत ब्रेकअप- जमीन: ₹10–25 करोड़, कंस्ट्रक्शन- ₹15–30 करोड़, टेक-सुरक्षा-ब्रिज- ₹5–15 करोड़, प्लानिंग, पर्यावरण मंजूरी और बाकी पर ₹1–5 करोड़।
NHAI के अनुसार, एक स्टैंडर्ड 4 लेन एक्सप्रेसवे (1 KM) की लागत ₹35-40 करोड़ होती है, लेकिन हाई-टेक 6 लेन, जैसे दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे में, ये खर्च 60-70 करोड़/KM तक पहुंच जाता है।
कुछ जगहों पर जमीन सस्ती होती है, तो खर्च कम आता है। पहाड़ी या नदी वाला इलाका हो, तो लागत दोगुनी हो जाती है, इसलिए कोई भी रोड की कॉस्ट फिक्स नहीं होती है।
एक्सप्रेसवे सिर्फ ट्रैफिक कम करने के लिए नहीं बनते हैं। ये पूरे रीजन की इकोनॉमी, रियल एस्टेट और बिजनेस को 10 गुना तक बूस्ट देते हैं। मतलब ये खर्च बिल्कुल इन्वेस्टमेंट जैसा होता है।
कई प्रोजेक्ट्स में NHAI, लार्सन एंड टूब्रो, IRB Infra, Adani Infra जैसी कंपनियां शामिल होती हैं। सरकार इन्हें कॉन्ट्रैक्ट देती है और बाद में टोल के जरिए पैसे वसूले जाते हैं।