ये 5 IAS ऑफिसर की कहानी हर किसी को प्रेरित करने वाली हैं। इन्होंने बचपन में क्या कुछ नहीं झेला लेकिन फिर भी उन बाधाओं को पार कर अपनी राह बनाई। जानिए
एक पुरस्कार विजेता आईएएस अधिकारी, आरती डोगरा का जीवन कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उत्तराखंड के देहरादून में जन्मी आरती की लंबाई महज 3.5 फीट है।
उसे बताया गया था कि वह नियमित जीवन नहीं जी पाएगी और सामान्य स्कूल नहीं जा पाएगी। हालांकि सभी बाधाओं को पार करते हुए, आरती ने देहरादून के एक प्रतिष्ठित गर्ल्स स्कूल में पढ़ाई की।
दिल्ली विवि के लेडी श्री राम कॉलेज से अर्थशास्त्र में स्नातक डिग्री प्राप्त की। उपहास का सामना करने से कभी भी उनकी मजबूत भावना कम नहीं हुई। वह पहले ही प्रयास में UPSC में सफल हुई।
राजस्थान कैडर में उन्होंने मतदान में भाग लेने के लिए सभी निर्वाचन क्षेत्रों में विकलांगों के लिए व्हीलचेयर, वाहनों की व्यवस्था की जिससे रिकॉर्ड 17,000 विकलांग मतदाता दे पाये।
केरल के वनम समुदाय से संबंधित विवेक के पिता उत्तरी केरल क्षेत्र की औपचारिक नृत्य के कलाकारों में से थे। शराबी पिता के साथ विवेक का बचपन एक बुरे सपने जैसा था।
परीक्षा से पंद्रह दिन पहले उसे पता चला कि उनके पिता का निधन हो गया है। हालांकि इससे वह रुके नहीं बल्कि उसका संकल्प और मजबूत हुआ।
वह जानते थे कि एक सिविल सेवक के रूप में काम करने से वह सैकड़ों लोगों को ऐसी शराब की लत से छुटकारा दिला सकेंगे।
2017 में उन्होंने UPSC परीक्षा उत्तीर्ण की और अब अपने पिता जैसे लोगों को नशे की लत से लड़ने में मदद कर रहे हैं।
केरल के मलप्पुरम जिले के एडवन्नप्पारा गांव में 80 के दशक में पैदा हुए मोहम्मद अली शिहाब अपने दमा पीड़ित पिता की अस्थायी पान की दुकान में मदद के लिए वह ज्यादातर स्कूल छोड़ देते थे।
परिवार पर दुख तब टूटा जब मोहम्मद 11 वर्ष के थे उनके पिता का निधन हो गया, जिससे उनकी मां फातिमा पांच बच्चों की देखभाल के लिए अकेली रह गईं।
वित्तीय संकट ने फातिमा को अपने बेटों और दो बेटियों को कोझिकोड के एक अनाथालय में भेजने के लिए प्रेरित किया। मोहम्मद अली शिहाब ने अगले दस साल अनाथालय में बिताए।
उन्होंने फिर केरल जल प्राधिकरण में चपरासी और ग्राम पंचायत में क्लर्क के रूप में छोटी-मोटी नौकरियां करना शुरू कर दिया।
आखिरकार 2011 में महीनों की तैयारी के बाद उन्होंने यूपीएससी परीक्षा पास कर ली।
सकरी तालुका के छोटे से गांव समोदे में जन्मे और पले-बढ़े डॉ. राजेंद्र भारूद बंडू भारूद और कमलाबाई की तीन संतानों में से हैं।
जन्म से ठीक पहले अपने पिता को खोने के बाद राजेंद्र अपनी मां, दादी द्वारा देसी शराब बेचकर चलाए जाने वाले घर में बड़े हुए।परिवार गन्ने के पत्तों से बनी छोटी झोपड़ी के नीचे रहता था।
जब राजेंद्र कक्षा 5 में थे, तो उनके स्कूल ने उन्हें एक बुद्धिमान छात्र के रूप में पहचाना। उनकी मां ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए बेहतर संस्थान में दाखिला दिलाने का फैसला किया।
उन्होंने न केवल यूपीएससी क्लियर करके बल्कि उससे पहले मेडिकल की पढ़ाई करके डॉक्टर बनकर यह साबित कर दिया कि उनकी मां का फैसला सही था।
अंसार शेख का बचपन चुनौतीपूर्ण था।रिक्शा चालक का बेटा, जो शराब की लत से जूझ रहा था, अंसार बड़े होकर घरेलू हिंसा के शिकार हुए। उनकी मां पिता की तीसरी पत्नी थीं। खेत में काम करती थीं।
अत्यधिक गरीबी के कारण, उन्होंने अपनी बहनों की शादी 15 साल की उम्र में होते देखी और उनके भाई ने अपने चाचा के गैरेज में काम करने के लिए छठी कक्षा छोड़ दी।
घर पर ऐसी परिस्थितियां के बीच भी उन्होंने पढ़ाई नहीं छोड़ी और 2016 में अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास कर ली।
21 साल की छोटी उम्र में अंसार सबसे कम उम्र के आईएएस अधिकारी बन गए।