दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों की दमघोंटू हवा को साफ करने के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) कानपुर ने एक संभावित समाधान विकसित किया है।
यह है क्लाउड सीडिंग टेक्निक जिसके माध्यम से "कृत्रिम बारिश" करके बादलों से प्रदूषक और धूल को हटाया जाएगा। पांच वर्षों से आईआईटी कानपुर इसके लिए लगन से काम कर रहा है।
जुलाई में कृत्रिम बारिश का सफल परीक्षण किया गया। क्लाउड सीडिंग की सुविधा के लिए, शोधकर्ताओं ने सरकारी अधिकारियों से, डीजीसीए से अनुमति भी ले ली है।
हालांकि कृत्रिम बारिश की सफलता पर्याप्त नमी वाले बादलों की उपस्थिति सहित मौसम संबंधी स्थितिया, उपयुक्त पवन पैटर्न पर भी निर्भर है।
कृत्रिम बारिश को लागू करने के लिए डीजीसीए, गृह मंत्रालय और प्रधान मंत्री की सुरक्षा एजेंसियों से अनुमोदनों की आवश्यकता होती है। क्योंकि इसमें दिल्ली के ऊपर विमान उड़ाना शामिल है।
क्लाउड सीडिंग वर्षा कराने की बादलों में जानबूझकर की गई विधि है। इसमें सूखी बर्फ (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड), सिल्वर आयोडाइड, नमक पाउडर को बारिश के लिए बादलों पर फैलाया जाता है।
क्लाउड सीडिंग हवाई जहाज या रॉकेट का उपयोग करके किया जाता है। यह मौसम की स्थिति को रिवाइज्ड करने में मदद करता है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
दिल्ली की वायु प्रदूषण से निपटने के लिए आईआईटी-कानपुर के विशेषज्ञ ने कृत्रिम वर्षा के कॉन्सेप्ट को प्रस्तुत किया, जिसके बाद इस पर और विचार किया गया।
आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल के अनुसार कृत्रिम बारिश के माध्यम से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) की खराब वायु गुणवत्ता की परेशानी को दूर करने में मदद मिल सकती है।
बता दें कि दिल्ली की हवा की गुणवत्ता 'गंभीर प्लस' श्रेणी में प्रवेश कर गई है। जिसके कारण कई प्रतिबंध लागू किये गये हैं। हाल ही में प्राइमरी स्कूलों को भी बंद रखा गया था।