'लापतागंज' के चौरसिया यानी अरविंद कुमार का निधन 10 जुलाई को हार्ट अटैक से हुआ। अब उनके कलीग रहे रोहिताश्व गौड़ ने खुलासा किया है कि वे लंबे समय से आर्थिक तंगी से जूझ रहे थे।
ट्रेजिडी क्वीन के नाम से मशहूर मीना कुमार के पास अंतिम वक्त में अस्पताल का बिल जमा करने के पैसे भी नहीं थे। उनका निधन 1 मार्च 1972 को 38 साल की उम्र में हुआ था।
'पीपली लाइव' और 'पान सिंह तोमर' जैसी फिल्मों के एक्टर सीताराम पांचाल का निधन अगस्त 2017 में किडनी और लंग कैंसर से हुआ। अंतिम वक्त में उनके पास अपने इलाज तक के पैसे नहीं थे।
70-80 के दशक की एक्ट्रेस परवीन बाबी अंतिम वक्त में आर्थिक तंगी में थीं। 20 जनवरी 2005 को उनकी लाश उनके अपार्टमेंट में मिली थी। उनका निधन इससे भी 2 दिन पहले हो गया था।
70 के दशक में 'हमराज' जैसी फिल्मों में दिखीं विमी के आखिरी दिन अकेलेपन और गरीबी में गुजरे। 22 अगस्त 1977 को उनका निधन हुआ।उनकी लाश हाथ ठेले से श्मशान घाट तक पहुंचाई गई थी।
काजोल की नानी शोभना समर्थ की चचेरी बहन नलिनी जयवंत 2010 में गरीबी में चल बसीं। अंतिम वक्त में उनके पास अस्पताल का बिल भरने तक के पैसे नहीं थे।
26 अगस्त 2012 को दुनिया छोड़ गए ए. के हंगल के पास जब इलाज के पैसे नहीं बचे तो अमिताभ बच्चन ने उन्हें 20 लाख रुपए दिए थे। 26 अगस्त 2012 को उनका निधन हो गया।
40-60 के दशक तक बॉलीवुड में एक्टिव रहीं एंग्लो-इंडियन एक्ट्रेस कुकू मोरे ने अंतिम दिन गरीबी में काटे। 30 सितम्बर 1981 को कैंसर से उनका निधन हुआ, तब तक इंडस्ट्री उन्हें भूल चुकी थी।
एक वक्त था, जब भगवान दादा के पास जुहू बीच पर 25 बेडरूम वाला बंगला, 7 लग्जरी कारें थीं। लेकिन अंतिम वक्त उन्हें चॉल में काटना पड़ा, जहां 2002 में गरीबी से जूझते उनका निधन हो गया था।
120 से ज्यादा फ़िल्में करने वाली अचला सचदेव के पास आखिर में इलाज तक के पैसे नहीं थे। 30 अप्रैल 2012 को गरीबी से जूझते हुए उन्होंने पुणे में अंतिम सांस ली थी।
कभी इंडियन सिनेमा के सबसे हैंडसम एक्टर रहे भारत भूषण को जुए ने बर्बाद किया था। उनका अंतिम वक्त चॉल में कटा और 27 जनवरी 1992 को वे गरीबी में ही चल बसे।
30 और 40 के दशक के पॉपुलर अभिनेता चंद्र मोहन का निधन 1949 में गरीबी में हुआ था। कहा जाता है कि उन्हें शराब और जुए की लत ऐसी लगी कि वे अपना सबकुछ गंवा बैठे थे।
20-70 के दशक तक फिल्मों में एक्टिव रहीं एक्ट्रेस रूबी मयेर्स यानी सुलोचना कभी बॉम्बे के गवर्नर से भी ज्यादा कमाती थीं। लेकिन 1983 में जब उन्होंने दुनिया छोड़ी तो वे कंगाल थीं।