चड़क पूजा को चरक और नीला पूजा भी कहते हैं। यह भगवान शिव के प्रति अपनी आस्था और निष्ठा जताने होती है। यह पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में भी होती है
चड़क या चरक पूजा का सबसे हैरतअंगेज करतब आसमां छूते बांस के सहारे झूलना है। यह बेहद खतरनाक स्टंट होता है
अराध्य देव के प्रति अपनी निष्ठा और भक्ति दिखाने श्रद्धालु पीठ की चमड़ी में छेद कराकर कीलें बांधते हैं। इनके जरिये बैलगाड़ी तक खींची जाती है
चड़क पूजा के दौरान महिला-पुरुष और बच्चे; सभी आग के शोलों पर चलते हैं। हैरानी की बात यह है कि उनके पैर बिलकुल भी नहीं जलते
चड़क पूजा राजा-महाराजाओं के समय से होती आ रही है। रियासतकाल में राजकीय खजाने से चड़क पूजा पर खर्च किया जाता था
झारखंड में कई जगहों पर सरकार चड़क पूजा का आयोजन कराती है, आंचलिक कार्यालय इसकी देखरेख करते हैं, आयोजन के लिए बजट जारी करते हैं
सरायकेला के भुरकुली में 1908 में सबसे पहले चड़क पूजा हुई थी। उस समय सहां शिवलिंग मिला था, तब से इसे विश्वनाथ महादेव का नाम देकर पूजा शुरू हुई थी, कुछ इसे 150 साल पुराना बताते हैं
चड़क पूजा अनुष्ठान को करने वाले पूरे चैत्र महीने में संन्यासी जीवन गुजारते हैं। वे पारंपरिक वेशभूषा में भिक्षा मांग एक समय ही भोजन करते हैं