अचला एकादशी 18 मई को, इस विधि से करें व्रत व पूजा, ध्यान रखें ये 6 बातें
हिंदू धर्म में अनेक व्रत व उपवास किए जाते हैं। उन सभी में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अचला व अपरा एकादशी कहते हैं। इस बार यह व्रत 18 मई, सोमवार को है।
उज्जैन. हिंदू धर्म में अनेक व्रत व उपवास किए जाते हैं। उन सभी में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अचला व अपरा एकादशी कहते हैं। इस बार यह व्रत 18 मई, सोमवार को है। पुराणों के अनुसार, अचला एकादशी का व्रत करने से ब्रह्म हत्या, परनिंदा, भूत योनि जैसे पापों से छुटकारा मिल जाता है। अचला एकादशी व्रत की विधि इस प्रकार है-
व्रत विधि
Latest Videos
एकादशी की सुबह व्रती (व्रत करने वाला) पवित्र जल में स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। अपने परिवार सहित पूजा घर में या मंदिर में भगवान विष्णु व लक्ष्मीजी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें।
इसके बाद गंगाजल पीकर आत्म शुद्धि करें। रक्षा सूत्र बांधे। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। शंख और घंटी की पूजा अवश्य करें, क्योंकि यह भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। व्रत करने का संकल्प लें।
इसके बाद विधिपूर्वक भगवान की पूजा करें और दिन भर उपवास करें। रात को जागरण करें। व्रत के दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें और उसके बाद स्वयं भोजन करें।
अचला एकादशी व्रत में इन बातों का ध्यान रखें- 1. पूजा में चावल के स्थान पर तिल अर्पित करें। 2. आलस्य छोड़ें। 3. अधिक से अधिक प्रभु का भजन करें। 4. तुलसी के साथ भगवान को भोग लगाएं। 5. रात्रि में जागरण करते हुए प्रभु के चरणों में विश्राम करें। 6. ब्रह्मचर्य का पालन करें।
ये है अचला एकादशी व्रत की कथा
प्राचीन काल में महिध्वज नामक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई ब्रजध्वज बड़ा ही अन्यायी, अधर्मी और क्रूर था। वह अपने बड़े भाई को अपना दुश्मन समझता था।
एक दिन मौका देखकर ब्रजध्वज ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी व उसके मृत शरीर को जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे दबा दिया। इसके बाद राजा की आत्मा उस पीपल में वास करने लगी।
एक दिन धौम्य ऋषि उस पीपल वृक्ष के नीचे से निकले। उन्होंने तपोबल से प्रेत के उत्पात के कारण और उसके जीवन वृतांत को समझ लिया। ऋषि ने राजा के प्रेत को पीपल के वृक्ष से उतारकर परलोक विद्या का उपदेश दिया।
साथ ही प्रेत योनि से छुटकारा पाने के लिए अचला एकादशी का व्रत करने को कहा। अचला एकादशी व्रत रखने से राजा का प्रेत दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक चला गया।