आंवले के औषधीय गुणों से तो सभी परिचित हैं साथ ही इसका धार्मिक महत्व भी है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी (Amla Navami 2021) के रूप में मनाया जाता है। इसे अक्षय नवमी भी कहते हैं। इस बार ये पर्व 13 नवंबर, शनिवार को है।
उज्जैन. आंवला नवमी पर (Amla Navami 2021) मुख्य रूप से आंवले के वृक्ष का पूजन करने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवला वृक्ष की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और धन का वास होता है। आंवला को देवी लक्ष्मी का प्रिय वृक्ष भी कहा जाता है। आंवला नवमी की कथा भी देवी लक्ष्मी से जुड़ी है। आगे जानिए आंवला वृक्ष की पूजा विधि और इस दिन का महत्व…
इस विधि से करें आंवला वृक्ष की पूजा
- आंवला नवमी को सुबह स्नान कर दाहिने हाथ में जल, चावल, फूल आदि लेकर इस तरह व्रत का संकल्प लें-
अद्येत्यादि अमुकगोत्रोमुक (अपना गोत्र बोलें) ममाखिलपापक्षयपूर्वकधर्मार्थकाममोक्षसिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये।
- ऐसा संकल्प कर आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके ऊं धात्र्यै नम: मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके इन मंत्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें-
पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।
ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।
ते पिवन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।
- इसके बाद आंवले के पेड़ के तने में यह मंत्र बोलते सूत लपेटें-
दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तु ते।।
- इसके बाद कर्पूर या शुद्ध घी के दिए से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें -
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।
- इसके बाद आंवले के वृक्ष के नीचे ही ब्राह्मणों को भोजन भी कराना चाहिए और अंत में स्वयं भी आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करना चाहिए। एक पका हुआ कुम्हड़ा (कद्दू) लेकर उसके अंदर रत्न, सोना, चांदी या रुपए आदि रखकर निम्न संकल्प करें-
ममाखिलपापक्षयपूर्वक सुख सौभाग्यादीनामुक्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये।
- इसके बाद योग्य ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कद्दू दे दें और यह प्रार्थना करें-
कूष्णाण्डं बहुबीजाढयं ब्रह्णा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।
- पितरों की शांति के लिए कंबल आदि ऊनी कपड़े भी योग्य ब्राह्मण को देना चाहिए। घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि में आंवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा, दानादि करने की भी परंपरा है अथवा गमले में आंवले का पौधा लगाकर घर में यह पूजा करनी चाहिए।
ये है इस व्रत से जुड़ी कथा
कथा के अनुसार एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वीलोक पर भ्रमण करने आईं। पृथ्वी पर आने के पश्चात मां लक्ष्मी को श्री हरि भगवान विष्णु और शिव जी की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। तब उन्हें स्मरण हुआ कि नारायण की प्रिय तुलसी और भगवान शिव के स्वरूप बैल के गुण आंवले के वृक्ष में होते है। तब लक्ष्मी जी ने सोचा कि जब इस वृक्ष में दोनों का अंश है तो इस वृक्ष की ही पूजा की जाए। उसके बाद मां लक्ष्मी ने आंवले को ही शिव जी और विष्णु जी का स्वरूप मानकर पूजा की। जिससे प्रसन्न होकर दोनों देव एक साथ प्रकट हुए। तब मां लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को खिलाया था। कहा जाता है कि इसी कारण आज भी कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन आंवला के पेड़ की पूजा का प्रावधान है।