रक्षाबंधन पर नदी किनारे ब्राह्मण करते हैं श्रावणी उपाकर्म, जानिए क्या है ये परंपरा?

हिंदू धर्म में हर त्योहार से जुड़ी कोई-न-कोई परंपरा जरूर होती है। रक्षाबंधन पर्व से जुड़ी ऐसी ही एक परंपरा है, जिसे श्रावणी उपाकर्म कहते हैं।

Asianet News Hindi | Published : Jul 27, 2020 1:53 AM IST

उज्जैन. इस परंपरा का पालन सिर्फ ब्राह्मणों द्वारा किया जाता है। इस बार रक्षाबंधन 3 अगस्त, सोमवार को है। श्रावणी क्रिया पवित्र नदी के घाट पर सामूहिक रूप से की जाती है। जानिए क्या है श्रावणी उपाकर्म-

- श्रावणी उपाकर्म के तीन पक्ष है- प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। सर्वप्रथम होता है- प्रायश्चित रूप में हेमाद्रि स्नान संकल्प।
- गुरु के सान्निध्य में ब्रह्मचारी गाय के दूध, दही, घी, गोबर, गोमूत्र तथा पवित्र कुशा से स्नान कर वर्षभर में जाने-अनजाने में हुए पाप कर्मों का प्रायश्चित कर जीवन को सकारात्मकता से भरते हैं।
- स्नान के बाद ऋषि पूजन, सूर्योपस्थान एवं यज्ञोपवीत पूजन तथा नवीन यज्ञोपवीत धारण करते हैं।
- यज्ञोपवीत या जनेऊ आत्मसंयम का संस्कार है। इस दिन जिनका यज्ञोपवित संस्कार हो चुका होता है, वह पुराना यज्ञोपवित उतारकर नया धारण करते हैं और पुराने यज्ञोपवित का पूजन भी करते हैं।
- इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति आत्म संयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म पाता है और द्विज कहलाता है।
- उपाकर्म का तीसरा पक्ष स्वाध्याय का है। इसकी शुरुआत सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, स्मृति, सदसस्पति, अनुमति, छंद और ऋषि को घी की आहुति से होती है।
- जौ के आटे में दही मिलाकर ऋग्वेद के मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। इस यज्ञ के बाद वेद-वेदांग का अध्ययन आरंभ होता है।
- इस प्रकार वैदिक परंपरा में वैदिक शिक्षा साढ़े पांच या साढ़े छह मास तक चलती है। वर्तमान में श्रावणी पूर्णिमा पर ही उपाकर्म और उत्सर्ग दोनों विधान कर दिए जाते हैं।
- प्रतीक रूप में किया जाने वाला यह विधान हमें स्वाध्याय और सुसंस्कारों के विकास के लिए प्रेरित करता है।

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