होली के दूसरे दिन से ही शुरू हो जाता है चैत्र मास, लेकिन नववर्ष 15 दिन बाद क्यों?

हिंदू कालगणना के हिसाब से चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि (इस बार 13 अप्रैल, मंगलवार) से नववर्ष की शुरूआत होती है, जबकि चैत्र मास 15 दिन पहले ही शुरू हो जाता है। बहुत कम लोग इस बारे में जानते होंगे। इसके पीछे बहुत ही ऊंचे दर्जे की सोच और मान्यता है, जो भारतीय दर्शन की महानता को दिखाती है।

उज्जैन. हिंदू कालगणना के हिसाब से चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि (इस बार 13 अप्रैल, मंगलवार) से नववर्ष की शुरूआत होती है, जबकि चैत्र मास 15 दिन पहले ही शुरू हो जाता है। बहुत कम लोग इस बारे में जानते होंगे। इसके पीछे बहुत ही ऊंचे दर्जे की सोच और मान्यता है, जो भारतीय दर्शन की महानता को दिखाती है। जानिए नववर्ष से जुड़ी इस मान्यता की खास बातें...

1. वास्तव में चैत्र मास होली के दूसरे ही दिन से शुरू हो जाता है, लेकिन वो समय कृष्ण पक्ष का होता है, मतलब पूर्णिमा से अमावस्या तक का, इन 15 दिनों में चंद्रमा लगातार घटता है और अंधेरा बढ़ता जाता है।
2. सनातन धर्म “तमसो मां ज्योतिर्गमय्” यानी अंधेरे से उजाले की ओर जाने की मान्यता है। इस कारण चैत्र मास लगने के बाद भी शुरू के 15 दिन (पूर्णिमा से अमावस्या तक) छोड़ दिए जाते हैं।
3. अमावस्या के बाद जब शुक्ल पक्ष लगता है तो शुक्ल प्रतिपदा से नया साल मनाया जाता है, जो अंधेरे से उजाले की ओर जाने का संदेश देता है।
4. अमावस्या के अगले दिन से शुक्ल पक्ष शुरू होता है, जिसमें हर दिन चंद्रमा बढ़ता है, उजाला बढ़ता है। इसलिए भारतीय विद्वानों ने इसी तिथि को हिंदू नववर्ष आरंभ करने के लिए चुना।

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