Chaitra Navratri: झांसी के महाकाली मंदिर में कन्या रूप में होती है देवी की पूजा, 1687 में हुआ था इसका निर्माण

Published : Apr 02, 2022, 08:07 AM IST
Chaitra Navratri: झांसी के महाकाली मंदिर में कन्या रूप में होती है देवी की पूजा, 1687 में हुआ था इसका निर्माण

सार

देवी की आराधना का पर्व चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri 2022) 2 अप्रैल, शनिवार से शुरू हो चुका है। भक्त देवी मंदिरों में उमड़ने लगे हैं। हर कोई अपने तरीके से देवी को प्रसन्न करने में जुटा है। इस दौरान प्रमुख देवी मंदिरों में विशेष आयोजन भी शुरू हो चुके हैं। कहीं अखंड ज्योति जलाई जा रही है तो कहीं नौ दिनों तक मंत्र जाप किए जा रहे हैं।

उज्जैन. चैत्र नवरात्रि के दौरान एक विशाल आयोजन बुंदेलखंड के झांसी स्थित लक्ष्मी तालाब स्थित प्रसिद्ध देवी मंदिर महाकाली विद्यापीठ (Mahakali Temple Bundelkhand ) में भी किया जा रहा है। मंदिर के प्रधान पुजारी अजय त्रिवेदी बताया कि नवरात्रि के दौरान चैत्र नवरात्रि के दौरान मंदिर में मां महाकाली के सवा करोड़ मंत्रों का जाप होगा। इसके बाद नवमी तिथि परर चांदी का मंडप, जो देवी मंत्रों से अभिमंत्रित होगा, महाकाली को अर्पण किया जाएगा। इसके अलावा अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे।

ये आयोजन भी होंगे
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन यानी 2 अप्रैल को मंदिर में 5100 दीपक जलाएं जाएंगे। नवरात्रि इसके साथ ही नवरात्रि के 9 दिनों में विश्व शांति के लिए मां महाकाली के मंत्रों का जाप व अनुष्ठान होगा। सप्तमी को फूल बंगला सजाया जाएगा। इसके साथ ही विशाल भंडारा भी होगा, जिसमें भक्त माता का प्रसाद पाएंगे।

मराठाओं द्वारा बनावाया गया है ये मंदिर
बुंदेलखंड के लक्ष्मी तालाब के तट पर बना महाकाली मंदिर मराठाओं द्वारा बनवाया गया है। इस मंदिर की खास विशेषता ये है कि यहां आकर माता के सामने दीप जलाने से हर तरह की परेशानी दूर हो जाती है, ऐसी मान्यता है। यही कारण है कि नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में दूर- दूर से श्रद्धालु दर्शन करने आते है।

यहां कन्या रूप में है देवी की प्रतिमा
आमतौर पर देवी महाकाली की प्रतिमाएं रौद्र रूप में देखने को मिलती हैं, लेकिन झांसी स्थिति इस मंदिर में मां कन्या रूप में विराजित हैं। यहां सात्विक पूजा का मह्तव है, किसी भी तरह की तामसिक पूजा इस मंदिर में नहीं का जाती। इतिहास कारों की मानें तो इस मंदिर का निर्माण 1687 में ओरछा के महाराज वीर सिंह जूदेव ने करवाया था।  1977 में चुनाव हारने के बाद 1978 में इंदिरा गांधी ने यहां धार्मिक अनुष्ठान करवाया था। इसके बाद जब 1980 में वे दोबारा जीतीं तो तब एक बार फिर मंदिर में पूजा करने के लिए आई थीं।

 

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