Chanakya Niti: जीवन के लिए धन जरूरी है मगर ऐसा पैसा किसी काम का नहीं, ये सिर्फ परेशानी देता है

Published : Sep 04, 2021, 12:52 PM ISTUpdated : Sep 04, 2021, 02:23 PM IST
Chanakya Niti: जीवन के लिए धन जरूरी है मगर ऐसा पैसा किसी काम का नहीं, ये सिर्फ परेशानी देता है

सार

आचार्य चाणक्य द्वारा लिखी गई नीतियां (Chanakya Niti) आज भी व्यक्ति के जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं। आचार्य चाणक्य के अनुसार धन आवश्यक होता है लेकिन कुछ परिस्थितियों में धन लेना पाप के समान होता है। आगे जानिए उन परिस्थितियों के बारे में...

उज्जैन. आचार्य चाणक्य (Chanakya Niti) कौटिल्य व विष्णुगुप्त नाम से भी विख्यात हैं। आचार्य श्री चणक के शिष्य होने के कारण वह चाणक्य कहे गए। उन्होंने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र नामक ग्रन्थ राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। उन्होंने अपने जीवन में अच्छी और बुरी दोनों तरह की परिस्थितियों का सामना किया परंतु फिर भी कभी हार नहीं मानी और न ही अपने आदर्शों के साथ समझौता किया। आचार्य चाणक्य ने नीति शास्त्र में अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर मनुष्य के जीवन से जुड़ी हुई महत्पूर्ण नीतियां बताई हैं। आचार्य चाणक्य के अनुसार धन आवश्यक होता है लेकिन कुछ परिस्थितियों में धन लेना पाप के समान होता है। आगे जानिए उन परिस्थितियों के बारे में...

जिस धन के लिए सहनी पड़े यातनाएं

आचार्य चाणक्य (Chanakya Niti) के अनुसार मनुष्य को कभी ऐसे धन को कभी हाथ नहीं लगाना चाहिए, जिसके कारण आपको कठोर यातना सहनी पड़े। ऐसा धन लेने से न केवल आपको शारीरिक यातना सहनी पड़ती है बल्कि मान-सम्मान की हानि का सामना भी करना पड़ सकता है। बेहतर रहता है कि ऐसे धन का त्याग कर देना चाहिए।

धन के लिए न करें सदाचार का त्याग
आचार्य चाणक्य (Chanakya Niti) कहते हैं कि केवल मेहनत के द्वारा कमाया गया धन ही व्यक्ति के लिए कल्याणकारी होता है। आचार्य चाणक्य के अनुसार ऐसा धन कभी नहीं लेना चाहिए जिसमें आपको सदाचार का त्याग करना पड़े। नीति शास्त्र के अनुसार धन के लिए कभी धर्म का त्याग नहीं करना चाहिए। अधर्म से कमाया गया धन पाप के समान होता है।

शत्रु की चापलूसी से अर्जित धन पाप का समान
आचार्य चाणक्य (Chanakya Niti) ने कभी भी अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया फिर भी अपने शत्रु को पराजित किया। चाणक्य अपने नीतिशास्त्र में कहते हैं कि जिस धन के लिए आपको अपने शत्रु की चापलूसी करनी पड़े, ऐसे धन का त्याग करना ही उचित रहता है। शत्रु की चापलूसी से कमाया गया धन सदैव आपके मान-सम्मान की क्षति करता है।

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