ये बात तो सभी जानते हैं कि दूसरों का भला करने पर हमारा भी भला होता है, लेकिन आचार्य चाणक्य ने एक नीति में तीन लोग ऐसे बताए हैं, जिनका भला करने पर भी हमें दुख मिल सकता है।
उज्जैन. चाणक्य के अनुसार इन तीनों लोगों से दूर रहने में ही हमारा भलाई रहती है। चाणक्य कहते हैं-
मूर्खाशिष्योपदेशेन दुष्टास्त्रीभरणेन च।
दु:खिते सम्प्रयोगेण पंडितोऽप्यवसीदति।।
1. मूर्ख शिष्य
इस श्लोक में बताया गया है कि अगर की व्यक्ति मूर्ख है तो उसे ज्ञान या उपदेश नहीं देना चाहिए। हम मूर्ख को ज्ञान देकर उसका भला करना चाहते हैं, लेकिन बुद्धिहीन लोग ज्ञान की बातों में भी व्यर्थ तर्क-वितर्क करते हैं, जिससे हमारा ही समय बर्बाद होता है। इसीलिए ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए।
2. दुष्ट स्वभाव की स्त्री
अगर कोई स्त्री चरित्रहीन है, कर्कशा है, दुष्ट यानी बुरे स्वभाव वाली है तो उसका भरण-पोषण करने वाले व्यक्ति को कभी भी सुख प्राप्त नहीं होता है। जो स्त्री धर्म पथ से भटक जाती है, वह स्वयं तो पाप करती है साथ ही दूसरों को भी पाप का भागी बना लेती है। इसीलिए सज्जन पुरुष को इस प्रकार की स्त्रियों से किसी भी प्रकार का संपर्क नहीं रखना चाहिए।
3. अकारण दुखी रहने वाला
आचार्य कहते हैं कि जो लोग भगवान के दिए हुए संसाधनों और सुखों से संतुष्ट न होकर हमेशा दुखी रहते हैं, उनके साथ रहने पर हमें भी दुख ही प्राप्त होता है। समझदार इंसान को जो मिल जाता है, वह उसी में संतोष प्राप्त कर लेता है और प्रसन्न रहता है। इसलिए ऐसे लोगों से दूर रहने में ही हमारी भलाई है।