शुभ दीपावलीः संपूर्ण पूजन विधि और शुभ मुहूर्त...देवी लक्ष्मी के साथ करें कलम, तराजू सहित इनकी भी पूजा

कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है। इस बार ये पर्व 14 नवंबर, शनिवार को है। इस दिन मुख्य रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

Asianet News Hindi | Published : Nov 13, 2020 8:09 AM IST / Updated: Nov 13 2020, 02:00 PM IST

उज्जैन. कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है। इस बार ये पर्व 14 नवंबर, शनिवार को है। इस दिन मुख्य रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इसके अलावा देहली विनायक, कलम-दवात, तराजू और बही खातों की पूजा भी की जाती है। इन सबकी पूजा विधि इस प्रकार है...

पूजा के शुभ मुहूर्त

महानिशीथ काल मुहूर्त

इस विधि से करें देवी लक्ष्मी व श्रीगणेश की पूजा


1- घर को स्वच्छ कर पूजा-स्थान को भी पवित्र कर लें। स्नान करके शाम को शुभ मुहूर्त में महालक्ष्मी व भगवान श्रीगणेश की पूजा करें।
2- दीपावली पूजन के लिए किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेशजी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। श्रीमहालक्ष्मीजी की मूर्ति के पास ही एक साफ बर्तन में कुछ रुपए रखें तथा एक साथ ही दोनों की पूजा करें।
3- सबसे पहले पूर्व या उत्तर की मुंह करके अपने ऊपर तथा पूजा-सामग्री पर निम्न मंत्र पढ़कर जल छिड़कें-
                                         ऊं अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
                                         य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।

4- इसके बाद हाथ में जल और चावल लेकर पूजा का संकल्प करें-
ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ वासरे (वार बोलें) गोत्रोत्पन्न: (गोत्र बोलें)/ गुप्तोहंश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदड्त्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।

5- ऐसा कहकर संकल्प का जल छोड़ दें। पूजा से पहले नई प्रतिमा की इस विधि से प्राण-प्रतिष्ठा करें-

6- बाएं हाथ में चावल लेकर इस मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन चावलों को प्रतिमा पर छोड़ते जाएं-

                                    ऊं मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु।
                                                          विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ।।
                                                    ऊं अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
                                                           अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।

7- सबसे पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। इसके बाद कलश पूजन तथा षोडशमातृका (सोलह देवियों का) पूजन करें। इसके बाद प्रधान पूजा में मंत्रों द्वारा भगवती महालक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करें।
ऊं महालक्ष्म्यै नम:- इस नाम मंत्र से भी पूजा की जा सकती है।

8- विधिपूर्वक श्रीमहालक्ष्मी का पूजन करने के बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें-

                                                            सुरासुरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-
                                                            र्युक्तं सदा यक्तव पादपकंजम्।
                                                            परावरं पातु वरं सुमंगल
                                                            नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये।।
                                                            भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।।
                                                            सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।।
                                                            नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
                                                            या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्।।
                                                          ऊं महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं समस्कारान् समर्पयामि।

9- प्रार्थना करते हुए नमस्कार करें। पूजा के अंत में कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम। यह बोलकर सभी पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा जल छोड़ें।

दुकान या ऑफिस की पूजा विधि - दुकान या ऑफिस में दीवारों पर ऊं श्रीगणेशाय नम:, स्वस्तिक चिह्न, शुभ-लाभ सिंदूर से लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दों पर ऊं देहलीविनायकाय नम: इस नाम मंत्र द्वारा गंध-पुष्पादि से पूजा करें।

दवात की पूजा - स्याहीयुक्त दवात (स्याही की बोतल) को महालक्ष्मी के सामने फूल तथा चावल के ऊपर रखकर उस पर सिंदूर से स्वस्तिक बना दें तथा मौली लपेट दें।
ऊं श्रीमहाकाल्यै नम:

- इस नाम मंत्र से गंध-फूल आदि पंचोपचारों से या षोडशोपचारों से दवात तथा भगवती महाकाली की पूजा करें और अंत में इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक प्रणाम करें-

                                                         कालिके त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे।
                                                         उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये।।
                                                         या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तै: समस्तैव्र्यवहारदक्षै:।
                                                         जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु।।

कलम की पूजा - लेखनी (कलम) पर मौली बांधकर सामने रख लें और-

                                                      लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना।
                                                      लोकानां च हितार्थय तस्मात्तां पूज्याम्यहम्।।
                                                       ऊं लेखनीस्थायै देव्यै नम:

- इस नाममंत्र द्वारा गंध, फूल, चावल आदि से पूजा कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
                                                     शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्युयाद्यात:।
                                                   अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव।।

बहीखाता की पूजा - बहीखाता पर रोली या केसर युक्त चंदन से स्वस्तिक का चिह्न बनाएं एवं थैली में पांच हल्दी की गांठें, धनिया, कमलगट्टा, चावल, दूर्वा और कुछ रुपए रखकर उससे सरस्वती का पूजन करें। सर्वप्रथम सरस्वती का ध्यान इस प्रकार करें-

                                                      या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
                                                      या वीणावरदण्डण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
                                                      या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
                                                      सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।
                                                     ऊं वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम:

- इसके बाद गंध, फूल, चावल आदि अर्पित कर पूजा करें।

कुबेर की पूजा - तिजोरी अथवा रुपए रखे जाने वाले संदूक के ऊपर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और फिर भगवान कुबेर का आह्वान करें-

                                                        आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
                                                        कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।

- आह्वान के बाद ऊं कुबेराय नम: इस नाम मंत्र से गंध, फूल आदि से पूजन कर अंत में इस प्रकार प्रार्थना करें-

                                                         धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
                                                         भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।

- इस प्रकार प्रार्थना कर हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, रुपए, दूर्वादि से युक्त थैली तिजोरी मे रखें।

तराजू की पूजा - सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक बना लें। मौली लपेटकर तुला देवता का इस प्रकार ध्यान करें-

                                                       नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता।
                                                       साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना।।

- ध्यान के बाद- ऊं तुलाधिष्ठातृदेवतायै नम:  इस नाम मंत्र से गंध, चावल आदि उपचारों द्वारा पूजन कर नमस्कार करें।

दीपक की पूजा - एक थाली में 11, 21 या उससे अधिक दीपक जलाकर महालक्ष्मी के समीप रखकर उस दीपज्योति का ऊं दीपावल्यै नम:इस नाम मंत्र से गंधादि उपचारों द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-

                                                               त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चनद्रो विद्युदग्निश्च तारका:।
                                                              सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नम:।।

- दीपकों की पूजा कर संतरा, ईख, धान इत्यादि पदार्थ चढ़ाएं। धान का लावा (खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करें।

आरती के लिए एक थाली में स्वस्तिक आदि मांगलिक चिह्न बनाकर चावल तथा फूलों के आसन पर शुद्ध घी का दीपक जलाएं। एक अलग थाली में कर्पूर रख कर पूजन स्थान पर रख लें। आरती की थाली में ही एक कलश में जल लेकर स्वयं पर छिड़क लें। पुन: आसन पर खड़े होकर अन्य पारिवारजनों के साथ घंटी बजाते हुए महालक्ष्मीजी की आरती करें-

ऊं जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसिदिन सेवत हर विष्णु-धाता।। ऊं।।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।। ऊं...।।
दुर्गारूप निरंजनि, सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, रिद्धि-सिद्धि धन पाता।। ऊं...।।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधिकी त्राता।। ऊं...।।
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता।
सब संभव हो जाता, मन नहिं घबराता।। ऊं...।।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता।। ऊं...।।
शुभ-गुण-मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता।। ऊं...।।
महालक्ष्मी(जी) की आरती, जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।। ऊं...।।

- दोनों हाथों में कमल आदि के फूल लेकर हाथ जोड़ें और यह मंत्र बोलें-

ऊं या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां ह्रदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्।।
ऊं श्रीमहालक्ष्म्यै नम:, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयमि।

- ऐसा कहकर हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें। प्रदक्षिणा कर प्रणाम करें, पुन: हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें-

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि।।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
सरजिजनिलये सरोजहस्ते धनलतरांशुकगंधमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्वभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।

- पुन: प्रणाम करके ऊं अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मी: प्रसीदतु। यह कहकर जल छोड़ दें। ब्राह्मण एवं गुरुजनों को प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करें।

- इसके बाद चावल लेकर श्रीगणेश व महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं पर चावल छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जित करें-

यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनरागमनाय च।।

इस प्रकार दीपावली पर पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।

1. दिवाली पर देवी लक्ष्मी की पूजा में थोड़ी हल्दी की साबूत गांठ भी रखें। पूजा के बाद इस एक लाल कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी में रखें। इससे पैसों की आवक बनी रहेगी।
2. दीपावली की रात विधि-विधान से श्रीसूक्त या लक्ष्मी सूक्त का पाठ करें। ऐसा करने से धन लाभ होने की संभावना बढ़ जाती है।
3. पूजन के दौरान जो चावल उपयोग करें, उन्हें फेकें नहीं बल्कि एक पुड़िया में रखकर अपने पर्स में रख लें। इससे आपके पर्स की बरकत बनी रहेगी।
4. दीपावली पर दक्षिणावर्ती शंख में गाय का दूध लेकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें। इससे भी देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
5. दीपावली पर अपने घर के मुख्य द्वार पर आम या अशोक के पत्तों का बंदनवार लगाएं। इससे आपके घर में पॉजिटिव एनर्जी बनी रहेगी।
6. इस दिन अगर कोई किन्नर दिख जाए तो उसे सम्मान के साथ थोड़े पैसे दें और उनसे 1 सिक्का लेकर अपनी तिजोरी में रखें।
7. लक्ष्मी पूजा में कौड़ी और गोमती चक्र भी रखें। बाद में इसे अपने धन स्थान पर रख दें। ये चीजें तंत्र उपायों में काम आती हैं।

राशि अनुसार लक्ष्मी मंत्र का जाप किया जाए तो धन से संबंधित सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। जानिए राशि अनुसार मंत्र और जाप करने की विधि...

1. मेष राशि
मंत्र- ऊं ऐं क्लीं सौ:

2. वृषभ राशि
मंत्र- ऊं ऐं क्लीं श्रीं

3. मिथुन राशि
मंत्र- ऊं क्ली ऐं सौ:

4. कर्क राशि
मंत्र- ऊं ऐं क्ली श्रीं

5. सिंह राशि
मंत्र- ऊं ह्रीं श्रीं सौ:

6. कन्या राशि
मंत्र- ऊं श्रीं ऐं सौ:

7. तुला राशि
मंत्र- ऊं ह्रीं श्रीं सौं

8. वृश्चिक राशि
मंत्र-
ऊं ऐं क्लीं सौ:

9. धनु राशि
मंत्र-
ऊं ह्रीं क्लीं सौ:

10. मकर राशि
मंत्र-
ऊं ह्रीं क्लीं ह्रीं श्रीं सौ:

11. कुंभ राशि
मंत्र-
ऊं ह्रीं ऐं क्लीं श्रीं

12 मीन राशि
मंत्र-
ऊं ह्रीं क्लीं सौ:

मंत्र जाप करने की विधि इस प्रकार है…

1. दीपावली की रात 12 बजे के बाद इन मंत्रों का जाप करना चाहिए।
2. जाप शुरू करने से पहले पूर्व दिशा की ओर मुख करके गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाएं। ये दीपक मंत्र जाप तक जलते रहना चाहिए।
3. कम से कम 11 माला का जाप अवश्य करें। मंत्र जाप कुश (एक प्रकार की घास) के आसन पर बैठकर करें तो बेहतर रहेगा।
4. मंत्र जाप के लिए स्फटिक की माला का उपयोग करें। मंत्र जाप के बाद माला को पूजा स्थान पर ही रखें।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार अगर पूजा में ये चीजें भी रखी जाती हैं तो लक्ष्मी की प्रसन्नता जल्दी प्राप्त हो सकती है...

1. खीर - दिवाली पर लक्ष्मी पूजा में मिठाई के साथ ही घर पर बनी खीर भी रखनी चाहिए। शास्त्रों के अनुसार खीर लक्ष्मी का प्रिय व्यंजन है। इसीलिए प्रसाद के रूप में खीर अवश्य रखनी चाहिए।

2. वंदनवार - आम, पीपल और अशोक के नए कोमल पत्तों की माला को वंदनवार कहा जाता है। इसे दिवाली पर मुख्य द्वार पर बांधना चाहिए। इस संबंध में मान्यता है कि सभी देवी-देवता इन पत्तियों की महक से आकर्षित होकर घर में प्रवेश करते हैं।

3. पीली कौड़ी - लक्ष्मी पूजा की थाली में पीली कौड़ियां रखने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है। ये पीली कौड़ियां धन और श्री यानी लक्ष्मी की प्रतीक हैं।

4. पान - ये भी दिवाली पूजा के लिए बहुत शुभ माना जाता है। पान खाने पर जिस प्रकार हमारे पेट की शुद्धि होती है, पाचन तंत्र को मदद मिलती है, ठीक उसी प्रकार पूजा के समय पान रखने पर घर की शुद्धि होती है और वातावरण सकारात्मक और पवित्र बनता है।

5. बताशे या गुड़ - ये भी दिवाली के लिए शुभ सामग्री है। लक्ष्मी-पूजन के बाद गुड़-बताशे का दान करने से धन में वृद्धि होती है। घर-परिवार में सुख और समृद्धि का विस्तार होता है, इसी वजह से प्रसाद के रूप में बताशे भगवान को अर्पित किए जाते हैं।

6. ईख या गन्ना - महालक्ष्मी का एक रूप गजलक्ष्मी भी है और इस रूप में वे ऐरावत हाथी पर सवार दिखाई देती हैं। लक्ष्मी के ऐरावत हाथी की प्रिय खाद्य-सामग्री ईख यानी गन्ना है। दिवाली के दिन पूजा में गन्ना रखने से ऐरावत प्रसन्न रहते हैं और ऐरावत की प्रसन्नता से महालक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं।

7. ज्वार यानी जवारे का पोखरा - पुरानी मान्यता है कि दिवाली पर ज्वार का पोखरा रखने से धन में वृद्धि होती है, सभी देवी-देवताओं के साथ ही माता अन्नपूर्णा की कृपा भी प्राप्त होती है।

उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार दीपावली की रात 9 खास जगहों पर दीपक जरूर जलाना चाहिए।

1. दिवाली की शाम पर लक्ष्मी पूजा से पहले मुख्य द्वार पर दीपक जलाना चाहिए। अगर घर में आंगन है तो एक दीपक आंगन में जलाएं और अगर आंगन नहीं तो है ड्राइंगरूम या घर के बीचों-बीच दीपक जला सकते हैं।
2. घर के पास मंदिर में भी दीपक जलाना चाहिए। मंदिर में कम से कम 5 दीपक जरूर जलाएं और भगवान से सुख-समृद्धि बनाए रखने की प्रार्थना करें।
3. घर के पास जो भी चौराहा हो वहां भी एक दीपक जलाना चाहिए।
4. लक्ष्मी पूजन के बाद पीपल के नीचे भी दीपक जलाएं।
5. घर के आंगन में तुलसी के पास दीपक जलाएं।
6. मुख्य द्वार पर दोनों तरफ एक-एक दीपक जलाएं।
7. दिवाली के दिन घर की छत पर भी अंधेरा नहीं होना चाहिए। छत पर रोशनी करें और रात में एक दीपक भी जलाएं।
8. लक्ष्मी पूजा के समय घर के मंदिर में एक दीपक ऐसा जलाएं जो रातभर जलता रहे।
9. दिवाली पर आंगन में एक रंगोली बनाएं और उस रंगोली में बीच में भी एक दीपक जलाएं।

इस दिन माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय किए जाते हैं व भोग लगाए जाते हैं...

मखाना - मखाना एक तरह का ड्रॉय फ्रूट है। माता लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र यानी पानी से ही हुई है और मखाना भी पानी में ही पैदा होता है इसलिए माता लक्ष्मी को मखाने का भोग लगाने से वे अति प्रसन्न होती हैं।

सिंघाड़ा - सिंघाड़ा एक तरह का मौसमी फल है। इसकी खेती भी तालाब के पानी में की जाती है। जल से उत्पन्न होने के कारण ही यह माता लक्ष्मी को बहुत प्रसन्न है। सिंघाड़ा स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छा माना गया है।

श्रीफल यानी नारियल - नारियल को श्रीफल भी कहते हैं। श्री का एक अर्थ लक्ष्मी भी है। इसलिए नारियल को देवी लक्ष्मी का फल भी कहा जाता है। महालक्ष्मी को नारियल चढ़ाने से कई प्रकार के संकट अपने आप ही दूर हो जाते हैं।

बताशा - बताशा शक्कर से बनता है और शक्कर गन्ने के रस से। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, गन्ने का रस चंद्रमा से संबंधित है और चंद्रमा को लक्ष्मी का भाई माना गया है। इसलिए लक्ष्मी पूजा में बताशे का उपयोग किया जाता है।

खीर - दूध व चावल शुक्र ग्रह से संबंधित हैं। शुक्र के कारण ही जीवन में भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसलिए माता लक्ष्मी को खीर का भोग लगाने से शुक्र ग्रह से संबंधित दोष दूर होते हैं व धन, वैभव मिलते हैं।

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