श्रीकृष्ण ने गर्भ में कैसे बचाए थे परीक्षित के प्राण, पूर्वजन्म में कौन थे देवकी-वसुदेव?

श्रीमद्भागवत में भगवान श्रीकृष्ण के पूरे जीवन का वर्णन मिलता है। जन्माष्टमी (23 अगस्त, शुक्रवार) के अवसर पर हम आपको श्रीमद्भागवत में लिखी श्रीकृष्ण के जीवन की कुछ रोचक बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-

Asianet News Hindi | Published : Aug 23, 2019 11:11 AM IST / Updated: Aug 23 2019, 04:58 PM IST

उज्जैन. श्रीमद्भागवत में भगवान श्रीकृष्ण के पूरे जीवन का वर्णन मिलता है। जन्माष्टमी (23 अगस्त, शुक्रवार) के अवसर पर हम आपको श्रीमद्भागवत में लिखी श्रीकृष्ण के जीवन की कुछ रोचक बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-

श्रीकृष्ण के कारण बची पांडवों की जान
महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद जब पांडव अपने शिविर में आराम के लिए जाने लगे तो श्रीकृष्ण ने ही उनसे कहा कि आज विजय की रात है इसलिए हम सभी आज रात कौरवों के शिविर में आराम करेंगे। पांडव जब कौरवों के शिविर में आराम कर रहे थे, उसी समय अश्वत्थामा, कृतवर्मा व कृपाचार्य ने पांडव शिविर पर हमला कर दिया। अचानक हुए इस हमले में पांडव सेना के सभी वीर योद्धा मारे गए। अश्वत्थामा ने भगवान शिव की तलवार से द्रौपदी के पांचों पुत्रों का भी पांडव समझकर वध कर दिया। श्रीकृष्ण को ऐसी घटना का पहले से ही अनुमान था। इस तरह श्रीकृष्ण ने पांडवों की रक्षा की।

गर्भ में बचाए परीक्षित के प्राण
श्रीमद्भागवत के अनुसार महाभारत के युद्ध के बाद जब अश्वत्थामा ने सोए हुए द्रौपदी के पुत्रों का वध किया था, तब उसका प्रतिशोध लेने के लिए श्रीकृष्ण व पांडव अश्वत्थामा के पीछे गए। पांडवों का विनाश करने के लिए अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की कृपा से पांडव जीवित रहे। तब अश्वत्थामा ने पांडवों के वंश का नाश करने के लिए अपने ब्रह्मास्त्र की दिशा अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी, जिससे उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को प्राणों का भय हो गया। तब श्रीकृष्ण ने पाण्डवों के वंश को विनाश से बचाने के लिए सूक्ष्म रूप धारण किया तथा उत्तरा के गर्भ में जाकर ब्रह्मास्त्र के तेज से उस बालक की रक्षा की। इस तरह भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ में पल रहे अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित के प्राणों की रक्षा की तथा पाण्डवों के वंश का नाश होने से बचाया।

पूर्वजन्म में कौन थे देवकी-वसुदेव?
कृष्ण जन्म से पूर्व भी भगवान विष्णु वासुदेव व देवकी के पुत्र बनकर दो बार जन्म ले चुके थे। श्रीमद्भागवत के अनुसार, प्रथम जन्म में वासुदेव का नाम सुतपा तथा देवकी का पृश्नि था। उस जन्म में सुतपा और पृश्नि ने भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की। भगवान विष्णु ने प्रकट होकर इनसे वरदान मांगने के लिए कहा। तब सुतपा और पृश्नि ने कहा कि हमें आपके समान पुत्र प्राप्त हो। भगवान विष्णु ने उन्हें ये वरदान दे दिया।

समय आने पर भगवान विष्णु ने पृश्नि के गर्भ से जन्म लिया। पृश्नि के गर्भ से उत्पन्न होने के कारण इनका नाम पृश्निगर्भ प्रसिद्ध हुआ। दूसरे जन्म में वासुदेव ऋषि कश्यप तथा देवकी ने अदिति के रूप में जन्म लिया। इस जन्म में भगवान विष्णु वामन रूप में इनके पुत्र बने। इसके बाद श्रीकृष्ण बनकर वासुदेव व देवकी को संतान सुख प्रदान किया।

कंस को हो गया था मृत्यु का पूर्वाभास
कंस को अपनी मृत्यु का पूर्वानुमान संकेत तथा स्वप्न के माध्यम से हो चुका था। श्रीमद्भागवत के अनुसार, मृत्यु से एक दिन पूर्व कंस ने देखा कि जल या दर्पण में शरीर की परछाई तो दिखाई देती थी, लेकिन सिर नहीं दिखाई देता था। कानों में उंगली डालकर सुनने पर भी प्राणों का घूं-घूं शब्द नहीं सुनाई पड़ता था
कंस ने सपने में देखा कि वह प्रेतों को गले लग रहा है। गधे पर चढ़कर चलता है और विष खा रहा है। उसका सारा शरीर तेल से तर है, गले में अड़हुल (एक प्रकार का फूल) की माला है और नग्न अवस्था में कहीं जा रहा है। पुराणों में ये सभी मृत्यु के संकेत माने गए हैं।

क्या राधा सचमुच श्रीकृष्ण की प्रेमिका थीं?
वैसे तो अनेक धर्म ग्रंथों में भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़ी घटनाओं के बारे में लिखा है, लेकिन उन सभी में श्रीमद्भागवत सबसे अधिक प्रमाणिक है। इस ग्रंथ में श्रीकृष्ण के बचपन से लेकर स्वधामगमन तक का वर्णन मिलता है। इस ग्रंथ में कहीं भी राधा का वर्णन नहीं है और न ही श्रीकृष्ण की किसी और प्रेमिका का। श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा का जिक्र महाभारत में कहीं भी नहीं मिलता है। इसके अलावा सबसे पुराने हरिवंश और विष्णु पुराण में भी राधा का वर्णन नहीं मिलता। 


 

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