कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 14 नवंबर, शनिवार को है। दीपावली से जुड़ी अनेक परंपराएं हैं। ऐसी ही एक परंपरा है दिवाली पूजन में देवी लक्ष्मी को खील-बताशे का भोग लगाना। दिवाली की इस परंपरा के पीछे व्यवहारिक, दार्शनिक और ज्योतिषीय कारण छिपे हैं।
उज्जैन. कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 14 नवंबर, शनिवार को है। दीपावली से जुड़ी अनेक परंपराएं हैं। ऐसी ही एक परंपरा है दिवाली पूजन में देवी लक्ष्मी को खील-बताशे का भोग लगाना। दिवाली की इस परंपरा के पीछे व्यवहारिक, दार्शनिक और ज्योतिषीय कारण छिपे हैं, जो इस प्रकार हैं...
इसलिए देवी लक्ष्मी को चढ़ाते हैं खील-बताशे
- दीपावली धन और ऐश्वर्य की प्राप्ति का त्योहार है। इस दिन मां लक्ष्मी का पूजन कर जीवनभर धन-संपत्ति की कामना की जाती है।
- खील-बताशे का प्रसाद किसी एक कारण से नहीं बल्कि उसके कई महत्व है, व्यवहारिक, दार्शनिक, और ज्योतिषीय ऐसे सभी कारणों से दीपावली पर खील-बताशे का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
- खील यानी धान मूलत: धान (चावल) का ही एक रूप है। यह चावल से बनती है और उत्तर भारत का प्रमुख अन्न भी है।
- दीपावली के पहले ही इसकी फसल तैयार होती है, इस कारण लक्ष्मी को फसल के पहले भाग के रूप में खील-बताशे चढ़ाए जाते हैं।
- खील बताशों का ज्योतिषीय महत्व भी होता है। दीपावली धन और वैभव की प्राप्ति का त्योहार है और धन-वैभव का दाता शुक्र ग्रह माना गया है।
- शुक्र ग्रह का प्रमुख धान्य धान ही होता है। शुक्र को प्रसन्न करने के लिए हम लक्ष्मी को खील-बताशे का प्रसाद चढ़ाते हैं।
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