कौरवों और पांडवों ने मिलकर महाभारत युद्ध के लिए कुछ नियम बनाए थे जिनका दोनों ही पक्षों को पालन करना था। युद्ध शुरू होने से कुछ दिनों बाद तक तो इन नियमों का पालन किया गया, लेकिन बाद में इन नियमों को कई बार तोड़ा गया और छल का सहारा लेकर योद्धाओं को मारा गया। युद्ध में कब, किसने छल से योद्धाओं का वध किया, आज हम आपको यही बता रहे हैं-
उज्जैन. कौरवों और पांडवों ने मिलकर महाभारत युद्ध के लिए कुछ नियम बनाए थे जिनका दोनों ही पक्षों को पालन करना था। युद्ध शुरू होने से कुछ दिनों बाद तक तो इन नियमों का पालन किया गया, लेकिन बाद में इन नियमों को कई बार तोड़ा गया और छल का सहारा लेकर योद्धाओं को मारा गया। युद्ध में कब, किसने छल से योद्धाओं का वध किया, आज हम आपको यही बता रहे हैं-
युद्ध शुरू होने पर कौरवों की ओर से भीष्म पितामाह को सेनापति बनाया गया। भीष्म ने पांडवों की सेना में हाहाकार मचा दिया। तब अर्जुन ने शिखंडी को आगे कर भीष्म से युद्ध किया। भीष्म जानते थे कि शिखंडी का जन्म स्त्री के रूप में हुआ है और पिछले जन्म में भी वह एक स्त्री था। भीष्म ने स्त्री पर वार न करने की प्रतिज्ञा की थी। इसलिए वे अर्जुन पर वार नहीं कर पाए और अर्जुन ने भीष्म को पराजित कर दिया।
युद्ध शुरू होने से पहले ये नियम बनाया गया था कि एक योद्धा से एक योद्धा ही युद्ध करेगा। दूसरा कोई उनके बीच नहीं जाएगा, लेकिन कौरवों ने इस नियम को तोड़ा। जब अभिमन्यु अकेला चक्रव्यूह में फंस गया तो कर्ण, दुर्योधन, दु:शासन, शकुनि आदि योद्धाओं ने मिलकर अभिमन्यु का वध कर दिया। इसके बाद ही युद्ध के नियमों का टूटना शुरू हुआ।
भूरिश्रवा बहुत ही पराक्रमी योद्धा था। युद्ध में उसने कौरवों का साथ दिया था। सात्यकि अर्जुन का शिष्य था। कुरुक्षेत्र में जब ये दोनों महावीर मल्ल युद्ध कर रहे थे तब भूरिश्रवा ने सात्यकि को उठाकर जमीन पर पटक दिया और जब वह सात्यकि का वध करना चाहता था, उसी समय अर्जुन ने दूर से ही तीर चलाकर उसका हाथ काट दिया। अर्जुन के द्वारा इस प्रकार युद्ध के नियम तोड़ने पर भूरिश्रवा को बहुत क्रोध आया और वह उपवास लेकर वहीं बैठ गया। सात्यकि ने इसी का फायदा उठाते हुए भूरिश्रवा का वध कर दिया।
भीष्म के बाद द्रोणाचार्य को कौरवों का सेनापति बनाया गया। द्रोणाचार्य पर विजय पाना भी जब पांडवों के लिए मुश्किल हो गया तब भीम ने अश्वत्थामा नाम के हाथी का वध कर दिया और ऐसा कहने लगे कि- मैंने अश्वत्थामा का वध कर दिया। द्रोणाचार्य के पुत्र का नाम भी अश्वत्थामा था, इससे वे संशय में पड़ गए। जब उन्होंने इसके बारे में युधिष्ठिर से पूछा तो उन्होंने भी इसे सत्य बताया। पुत्र मोह के कारण द्रोणाचार्य ने अपने हथियार रख दिए और ध्यान की स्थिति में बैठ गए। इसी का फायदा उठाते हुए धृष्टद्युम्न (पांडवों का सेनापति) ने उनका वध कर दिया।
महाभारत युद्ध का एक नियम ये भी था कि असावधान व्यक्ति पर कोई वार नहीं करेगा और जो योद्धा अपने रथ से नीचे है, उसके साथ भी युद्ध नहीं किया जाएगा। युद्ध के दौरान जब कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धंस गया था और कर्ण उसे निकालने नीचे उतरे, उसी स्थिति में अर्जुन ने उसका वध कर दिया। उस समय कर्ण के पास शस्त्र भी वहीं थे और वह असावधान स्थिति में था।
जब कौरवों की सेना नष्ट हो गई तब भीम व दुर्योधन में निर्णायक गदा युद्ध हुआ। गदा युद्ध के नियमों के अनुसार योद्धा कमर के नीचे वार नहीं कर सकते, लेकिन भीम ने इस नियम को तोड़ते हुए अपनी गदा से दुर्योधन की जांघ पर वार किया। जांघ पर वार होने से दुर्योधन पराजित हो गया। वहीं तड़पते हुए दुर्योधन के प्राण निकल गए।
रात को कोई किसी पर वार नहीं करेगा, ये भी महाभारत युद्ध का एक नियम था। इस नियम को अश्वत्थामा ने तोड़ा था। दुर्योधन ने मरने से पहले अश्वत्थामा को कौरवों का अंतिम सेनापति बनाया। उस समय अश्वत्थामा के अलावा कौरवों की ओर से केवल कृपाचार्य व कृतवर्मा ही जीवित बचे थे। अश्वत्थामा रात के अंधेरे में पांडवों के शिविर में घुस गया और धृष्टद्युम्न, युधामन्यु के अलावा द्रौपदी के पांचों पुत्रों का वध कर दिया।
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