Jagannath Rath Yatra: आंखों पर पट्टी बांधकर पुजारी बदलते हैं भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा, रहस्यमयी है ये परंपरा

उड़ीसा के पुरी में स्थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है और हर साल यहां निकाली जाने वाली रथयात्रा (Jagannath Rath Yatra 2022) भी। कहते हैं जो भी इस रथयात्रा के दर्शन करता है औ भगवान जगन्नाथ का रथ खींचता है, उसके जन्मों-जन्मों का पाप नष्ट हो जाते हैं और वह जन्म-मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर मोक्ष पा लेता है।

Manish Meharele | Published : Jul 1, 2022 3:11 AM IST

उज्जैन. रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को तीन अलग-अलग दिव्य रथों पर नगर भ्रमण कराया जाता है। इस बार जगन्नाथ रथयात्रा का आरंभ 1 जुलाई, शुक्रवार से हो रहा है। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की प्रतिमा किसी धातु से नहीं बल्कि लकड़ी से बनाई जाती है, इसके पीछे भी कई कथाएं प्रचलित हैं। इन प्रतिमाओं का निर्माण करते समय बहुत-सी बातों का ध्यान रखा जाता है। आगे जानिए इन प्रतिमाओं के निर्माण से जुड़ी खास बातें…

कब बदली जाती हैं भगवान जगन्नाथ की प्रतिमाएं?
भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा हर साल नहीं बदली। ये देव प्रतिमाएं उसी साल बदली जाती है, जिस साल में आषाढ़ के दो महीने आते हैं यानी आषाढ़ का अधिक मास आता है। ऐसा योग लगभग 19 साल में एक बार बनता है। इस मौके को नव-कलेवर कहते हैं। भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के लिए पेड़ चुनने के लिए कुछ खास चीजों पर भी ध्यान दिया जाता है। 

इस लकड़ी से बनती है जगन्नाथ भगवान की प्रतिमा
भगवान जगन्नाथ व अन्य देव प्रतिमाओं का निर्माण नीम की लकड़ी से ही किया जाता है। भगवान जगन्नाथ का रंग सांवला होता है,नीम का वृक्ष उसी रंग का होना चाहिए। उस पेड़ में चार प्रमुख शाखाएं होनी चाहिए। पेड़ के नजदीक तालाब, श्मशान और चीटियों की बांबी होना जरूरी है। पेड़ की जड़ में सांप का बिल भी होना चाहिए। वह किसी तिराहे के पास हो या फिर तीन पहाड़ों से घिरा हुआ हो। पेड़ के पास वरूण, सहादा और बेल का वृक्ष होना चाहिए। इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए वृक्ष का चयन किया जाता है और उसी पेड़ की लकड़ी से भगवान की प्रतिमा बनाई जाती है।

ऐसी बदली जाती है मूर्तियां
भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां बदलने की प्रक्रिया भी काफी रहस्यमयी है। जब भगवान की पुरानी मूर्तियां हटाकर नई मूर्तियां स्थापित की जाती है, उस समय पूरे शहर की बिजली काट दी जाती है। मंदिर के आस-पास भी पूरी तरह अंधेरा कर दिया जाता है। मंदिर में किसी को भी आने की इजाजत नहीं होती, सिर्फ उसी पुजारी को मंदिर के अंदर जाने की इजाजत होती है जिन्हें मूर्तियां बदलनी होती हैं। पुजारी की आंखों पर भी पट्टी बांधी जाती है। हाथों में दस्ताने पहनाए जाते हैं। इसके बाद मूर्तियां बदलने की प्रक्रिया शुरू होती है।

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