जन्माष्टमी: कैसे बना दुर्योधन श्रीकृष्ण का समधी ? जानें भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की ऐसी रोचक बातें

श्रीमद्भागवत में भगवान श्रीकृष्ण के पूरे जीवन का वर्णन मिलता है।

Asianet News Hindi | Published : Aug 18, 2019 10:25 AM IST

उज्जैन. जन्माष्टमी (23 अगस्त, शुक्रवार) के अवसर पर हम आपको श्रीमद्भागवत में लिखी श्रीकृष्ण व बलराम के जीवन की कुछ रोचक बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं-

जानिए श्रीकृष्ण की पुत्री का नाम
भगवान श्रीकृष्ण को प्रत्येक रानी से दस-दस पुत्र उत्पन्न हुए। वे सभी रूप, बल आदि गुणों में अपने पिता के समान थे। उन रानियों में 8 पटरानियां थीं। रुक्मिणी के गर्भ से जो पुत्र हुए, उनके नाम- प्रद्युम्न, चारुदेष्ण, सुदेष्ण, चारुदेह, सुचारु, चारुगुप्त, भद्रचारु, चारुचंद्र, विचारु व चारु था। इनके अलावा रुक्मिणी की एक पुत्री भी थी, जिसका नाम चारुमती था। उसका विवाह कृतवर्मा के पुत्र बली से हुआ था।
रुक्मिणी के अलावा भगवान श्रीकृष्ण की जो 7 पटरानियां थी, उनका नाम सत्यभामा, जांबवती, सत्या, कांलिदी, लक्ष्मणा, मित्रविंदा व भद्रा था। श्रीकृष्ण के इन सभी से 10-10 पुत्र थे। इन पटरानियों के अतिरिक्त भगवान श्रीकृष्ण की 16 हजार एक सौ और भी पत्नियां थीं। उनके भी दीप्तिमान और ताम्रतप्त आदि दस-दस पुत्र हुए।

ऐसे बना दुर्योधन श्रीकृष्ण का समधी
श्रीमद्भागवत के अनुसार, दुर्योधन की पुत्री का नाम लक्ष्मणा था। विवाह योग्य होने पर दुर्योधन ने उसका स्वयंवर किया। उस स्वयंवर में भगवान श्रीकृष्ण का पुत्र साम्ब भी गया। वह लक्ष्मणा के सौंदर्य पर मोहित हो गया और स्वयंवर से उसका हरण कर ले गया। कौरवों ने उसका पीछा किया और बंदी बना लिया। यह बात जब यदुवंशियों को पता चली तो वे कौरवों के साथ युद्ध की तैयारी करने लगे, लेकिन श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम ने उन्हें रोक दिया और स्वयं कौरवों से बात करने हस्तिनापुर आए।
यहां आकर उन्होंने कौरवों से साम्ब व लक्ष्मणा को द्वारिका भेजने के लिए कहा। तब कौरवों ने उनका खूब अपमान किया। अपने अपमान से क्रोधित होकर बलराम ने अपने हल से हस्तिनापुर को उखाड़ दिया और गंगा नदी की ओर खींचने लगे। कौरवों ने जब देखा कि बलराम तो हस्तिनापुर को गंगा में डूबाने वाले हैं तब उन्होंने साम्ब व लक्ष्मणा को छोड़ दिया और बलराम से माफी मांग ली।

क्यों थी श्रीकृष्ण की 16100 रानियां ?
प्राग्ज्योतिषपुर का राजा भौमासुर बहुत अत्याचारी था। उसने बलपूर्वक राजाओं से 16 हजार राजकुमारियां छीनकर अपने महल में रखी हुई थीं। भगवान श्रीकृष्ण ने भौमासुर का वध कर उन सभी को बंधनमुक्त कर दिया। जब उन राजकुमारियों ने भगवान श्रीकृष्ण को देखा तो वह उन पर मोहित हो गई और विचार करने लगी कि ये श्रीकृष्ण ही मेरे पति हों।
भगवान श्रीकृष्ण ने उन सभी के मन के भावों को जानकर एक ही मुहूर्त में अलग-अलग भवनों में अलग-अलग रूप धारण कर एक साथ उन सभी से विवाह किया था।

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