23-24 अगस्त को जन्माष्टमीः ये है शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, उपाय, आरती और कृष्ण लीला के मैनेजमेंट फंड़े

इस बार 23 व 24 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया जाएगा। शुक्रवार को अष्टमी तिथि सुबह 8.10 बजे पर लगेगी, जो अगले दिन सुबह 8.11 तक रहेगी।

Asianet News Hindi | Published : Aug 22, 2019 2:51 PM IST

उज्जैन. 23 अगस्त को शैव संप्रदाय के लोग जन्माष्टमी मनाएंगे। इसके अगले दिन यानी 24 सितंबर को वैष्णव संप्रदाय के लोग जन्माष्टमी का पर्व मनाएंगे। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, उपाय, आरती और कृष्ण लीला के मैनेजमेंट फंड़े इस प्रकार हैं...

जन्माष्टमी पूजा के शुभ मुहूर्त (23 अगस्त, शुक्रवार)

निशिथ काल मुहूर्त

जन्माष्टमी पूजा के शुभ मुहूर्त (24 अगस्त, शनिवार)

इस विधि से करें श्रीकृष्ण की पूजा

जन्माष्टमी के उपाय
1) तुलसी की पूजा करें
भगवान श्रीकृष्ण की पूजा में तुलसी का विशेष महत्व है। इसलिए जन्माष्टमी पर तुलसी के पौधे के सामने गाय के घी का दीपक लगाएं और ऊं वासुदेवाय नम: मंत्र बोलते हुए 11 परिक्रमा करें। इस उपाय से घर में सुख-शांति बनी रहती है और किसी भी प्रकार का कोई संकट नहीं आता।

2) खीर का भोग लगाएं
यदि आप धन की इच्छा रखते हैं तो जन्माष्टमी पर किसी कृष्ण मंदिर जाएं और सफेद मिठाई या खीर का भोग लगाएं। उसमें तुलसी के पत्ते अवश्य डालें। इससे भगवान श्रीकृष्ण जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं।

3) जरूरतमंदों को दान करें
भगवान श्रीकृष्ण को पीतांबरधारी भी कहते हैं, जिसका अर्थ है पीले रंग के वस्त्र धारण करने वाला। जन्माष्टी पर पीले रंग के कपड़े, पीले फल व पीला अनाज पहले भगवान श्रीकृष्ण को अर्पण करें, इसके बाद ये सभी वस्तुएं गरीबों व जरूरतमंदों में दान कर दें।

4) पीपल पर जल चढ़ाएं
यदि आप कर्ज में फंसे हैं तो जन्माष्टमी पर किसी पीपल के पेड़ पर पानी चढ़ाएं और शाम के समय दीपक लगाएं। पीपल में भी भगवान का वास माना गया है। इस उपाय से जल्दी ही आप कर्ज मुक्त हो सकते हैं।

5) मंत्र का जाप करें
धन की कामना रखने वाले लोग जन्माष्टमी पर नीचे लिखे मंत्र का 5 माला जाप करें- ऊं ह्रीं ऐं क्लीं श्री:

मंत्र 1: कृं कृष्णाय नमः
यह भगवान श्रीकृष्ण का मूल मंत्र हैं। इस मंत्र का जाप करने से रुका हुआ पैसा मिलने की संभावना बढ़ सकती है। साथ ही परिवार में सुख-शांति भी बनी रहती है।

मंत्र 2: ऊं श्रीं नमः श्रीकृष्णाय परिपूर्णतमाय स्वाहा
यह भगवान श्रीकृष्ण का सप्तदशाक्षर मंत्र है। अधिक मास में इस मंत्र का जाप करने से हर तरह की समस्या का अंत हो सकता है साथ ही लाइफ में शांति बनी रहती है।

मंत्र 3: क्लीं ग्लौं क्लीं श्यामलांगाय नमः
ये तंत्र से संबंधित मंत्र है। भगवान श्रीकृष्ण के इस मंत्र का जाप करने से धन लाभ के योग तो बनते ही हैं साथ ही अगर घर में कोई नेगेटिव एनर्जी हो तो उससे भी छुटकारा मिलता है।

मंत्र 4: ऊं नमो भगवते श्रीगोविन्दाय
पति-पत्नी के बीच यदि कोई समस्या हो या वैवाहिक जीवन में परेशानियां आ रही हो तो रोज इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

ऐसे करें इन मंत्रों का जाप
जन्माष्टमी की सुबह स्नान आदि करने के बाद तुलसी की माला से इन मंत्रों का जाप करें। कम से कम 5 माला जाप जरूर करें। सामने भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति हो तो और भी अच्छा रहेगा।

6) भगवान श्रीकृष्ण को साबूत पान चढ़ाएं 
बाद में इस पर कुंकुम से श्रीं लिखकर अपनी तिजोरी में रख लें। इससे धन प्राप्ति के योग बन सकते हैं।

7) जन्माष्टमी पर 7 कन्याओं को घर बुलाकर खीर खिलाएं 
ये उपाय लगातार 5 एकादशी को करें। इस उपाय से आपके प्रमोशन के योग बन सकते हैं।

8) जन्माष्टमी से शुरू कर 27 दिन तक लगातार नारियल व बादाम किसी कृष्ण मंदिर में चढ़ाने से सभी इच्छाएं पूरी हो सकती हैं।

9) जन्माष्टमी की सुबह किसी राधा-कृष्ण मंदिर जाकर दर्शन करें व पीले फूलों की माला अर्पण करें। इससे आपकी परेशानियां कम हो सकती हैं।

10) सुख-समृद्धि के लिए जन्माष्टमी पर पीले चंदन या केसर में गुलाब जल मिलाकर माथे पर टीका अथवा बिंदी लगाएं। ऐसा रोज करें।

11) जन्माष्टमी पर दक्षिणावर्ती शंख में कच्चा दूध व केसर डालकर भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक करें। इससे धन लाभ के योग बन सकते हैं।

12) जन्माष्टमी की शाम को पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाएं और शुद्ध घी का दीपक लगाएं। इससे आपकी समस्याओं का समाधान हो सकता है।

13) किसी कृष्ण मंदिर में अनाज (गेहूं, चावल) अर्पित करें और बाद में इसे गरीबों को दान कर दें। परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी।

कृष्ण लीला के मैनेजमेंट फंड़े

1) बिना सोचे-समझे कभी कोई असंभव वादा नहीं करना चाहिए, वरना बाद में पछताना पड़ता है
द्वारिका में भगवान कृष्ण की राजसभा का नाम था सुधर्मा सभा। एक दिन सुधर्मा सभा में भगवान कृष्ण के साथ अर्जुन भी बैठे हुए थे। तभी एक ब्राह्मण आकर भगवान कृष्ण को उलाहने देने लगा। ब्राह्मण के घर जब भी कोई संतान होती, वो पैदा होते ही मर जाती थी। ब्राह्मण ने कृष्ण पर आरोप लगाया कि तुम्हारे छल-कपट भरे कामों के कारण द्वारिका में नवजात बच्चों की मौत हो जाती है। भगवान कृष्ण चुप रहे। ब्राह्मण लगातार भगवान पर आरोप लगाता रहा। यह देख रहे अर्जुन से रहा नहीं गया।

उसने ब्राह्मण से कहा कि वो भगवान पर आरोप लगाना बंद करे। वो उसके पुत्र की रक्षा करेगा। कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि ये सब नियति का खेल है, इसमें हस्तक्षेप न करे, लेकिन अर्जुन ने भगवान कृष्ण की बात नहीं मानी और उसने ब्राह्मण को वचन दे दिया। जब उसकी पत्नी को बच्चा होने वाला था, अर्जुन ने ब्राह्मण के घर की घेराबंदी कर दी, लेकिन जैसे ही बच्चे ने जन्म लिया, यमदूत नवजात बच्चे के प्राण को लेकर चले गए। 

वचन का पालन करने के लिए अर्जुन ने अपने प्राण त्यागने का प्रण किया। ये बात भगवान को पता लगी। वे अर्जुन को लेकर अपने धाम गए। वहां पर अर्जुन ने देखा कि ब्राह्मण के सारे बच्चे भगवान की शरण में हैं। भगवान ने अर्जुन को समझाया कि कभी बिना सोचे-समझे किसी को कोई वचन नहीं देना चाहिए। फिर भगवान ने अर्जुन को बचाने के लिए ब्राह्मण पुत्रों के प्राण यमराज से लौटा लिए।

लाइफ मैनेजमेंट: हमें अपने ऊपर कितना भी आत्मविश्वास हो, लेकिन फिर भी असंभव-सा वादा नहीं करना चाहिए।

2) जब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को लगाई थी फटकार, कहा था- आपकी एक गलती और हार जाएंगे पांडव
महाभारत युद्ध का आखिरी दिन था। दुर्योधन कुरुक्षेत्र स्थित तालाब में जाकर छुप गया। सारी कौरव सेना समाप्त हो चुकी थी। दुर्योधन के अलावा कृपाचार्य, अश्वत्थामा, कृतवर्मा ही कौरव सेना में शेष बचे थे। पांडव दुर्योधन को खोजते हुए उस तालाब के किनारे पहुंचे। तालाब में छिपे दुर्योधन से युधिष्ठिर ने बात की। दुर्योधन ने कहा कि तुम पांच भाई हो और मैं अकेला हूं। हममें युद्ध कैसे हो सकता है? तो युधिष्ठिर ने दुर्योधन से कहा कि हम पांचों तुम्हारे साथ नहीं लड़ेंगे। तुम हममें से किसी एक को युद्ध के लिए चुन लो। अगर तुमने उसे हरा दिया तो हम तुम्हें युद्ध में जीता मानकर राज्य तुम्हें सौंप देंगे।

युधिष्ठिर की बात सुन श्रीकृष्ण को क्रोध आ गया। उन्होंने युधिष्ठिर से कहा कि तुमने ये क्या किया? इतने भीषण युद्ध के बाद हाथ आई जीत को हार में बदल लिया। अगर दुर्योधन ने नकुल, सहदेव में से किसी एक को युद्ध के लिए चुन लिया तो वे प्राणों से भी जाएंगे और हमारे हाथ से वो राज्य भी चला जाएगा।

लाइफ मैनेजमेंट: आपको किसी भी वादे को करने से पहले उस पर ठीक से विचार तो करना चाहिए। ऐसे बिना सोचे-समझे ही अपना सबकुछ दांव पर कैसे लगाया जा सकता है।

3) जब करना हो कोई बड़ा काम तो किन बातों का ध्यान रखना चाहिए
महाभारत युद्ध में भीष्म के तीरों की शय्या पर सो जाने के बाद गुरु द्रोणाचार्य को कौरव सेना का सेनापति नियुक्त किया गया। द्रोण को हराना मुश्किल होता जा रहा था और वो पांडवों की सेना को लगातार खत्म कर रहे थे। ऐसे में सभी पांडव भाई कृष्ण की शरण में आए। उन्होंने कृष्ण से पूछा कि गुरु द्रोण को कैसे रोका जाए? तब कृष्ण ने एक युक्ति सुझाई। उन्होंने कहा कि अवंतिका नगरी के राजपुत्रों विंद और अनुविंद की सेना में अश्वत्थामा नाम का हाथी है। उसे खोजकर मारा जाए और गुरु द्रोण तक ये संदेश पहुंचाया जाए कि अश्वत्थामा मारा गया।

अश्वत्थामा द्रोण के पुत्र का भी नाम था, जो उन्हें बहुत प्रिय था। भीम ने उस हाथी को खोजकर मार डाला और गुरु द्रोण के सामने चिल्लाने लगा कि मैंने अश्वत्थामा को मार दिया। गुरु द्रोण ने युधिष्ठिर से पूछा तो उन्होंने कहा कि अश्वत्थामा मरा है, वो हाथी है या नर, ये पता नहीं। इस पर गुरु द्रोण ध्यान लगाकर अपनी शक्ति से ये पता लगाने के लिए बैठे और धृष्टधुम्न ने उनको मार दिया।

लाइफ मैनेजमेंट: किसी भी युद्ध में जहां योद्धाओं के नाम याद रखना मुश्किल होता है, कृष्ण ने एक हाथी तक का नाम याद रखा। इसी तरह इस प्रतियोगी दुनिया में किसी भी तरह की जानकारी का होना अच्छा है, लेकिन उस जानकारी का सही उपयोग ही आपको सफल बना सकता है।

4) हमेशा होना चाहिए प्लान बी
एक बार भगवान कृष्ण ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए बहुत दूर निकल गए। उन्हें भूख लगने लगी। उन्होंने ग्वालों से कहा कि पास ही एक यज्ञ का आयोजन हो रहा है, वहां जाओ और भोजन मांग कर ले आओ। ग्वालों ने वैसा ही किया।, लेकिन यज्ञ का आयोजन कर रहे ब्राह्मणों ने भोजन देने से मना कर दिया। ग्वाले लौट आए। ऐसा एक नहीं कई बार हुआ। कृष्ण ने ग्वालों से कहा एक बार फिर जाओ, लेकिन इस बार ब्राह्मणों से नहीं, उनकी पत्नियों से भोजन मांगना। ग्वालों ने जब ब्राह्मण की पत्नियों से कृष्ण के लिए भोजन मांगा तो वे तत्काल उनके साथ भोजन लेकर वहां आ गईं। सबने प्रेम से भोजन किया। 

लाइफ मैनेजमेंट: अगर एक ही दिशा में लगातार प्रयासों में असफलता मिल रही है तो अपने प्रयासों की दिशा भी बदल देनी चाहिए। किसी भी समस्या पर हमेशा दो नजरिये से सोचना चाहिए, अर्थात् आपके पास हमेशा दूसरा प्लान जरूर होना चाहिए।

5) अपना काम ईमानदारी से करें, भगवान आपका साथ देंगे
महाभारत युद्ध में कर्ण और अर्जुन आमने-सामने थे। कर्ण ने अर्जुन को हराने के लिए सर्प बाण के उपयोग करने का विचार किया। पाताललोक में अश्वसेन नाम का नाग था, जो अर्जुन को अपना शत्रु मानता था। कर्ण को सर्प बाण का संधान करते देख अश्वसेन खुद बाण पर बैठ गया। अर्जुन का रथ चला रहे भगवान कृष्ण ने अश्वसेन को पहचान लिया। उन्होंने अपने पैरों से रथ को दबा दिया। घोड़े बैठ गए और तीर अर्जुन के गले की बजाय उसके मस्तक पर जा लगा। तभी मौका देखकर कर्ण ने अर्जुन पर वार शुरू कर दिया। अर्जुन की रक्षा के लिए भगवान ने वो तीर भी अपने ऊपर झेल लिए।

लाइफ मैनेजमेंट: जब आप अपना काम ईमानदारी से करते हैं और भगवान पर पूर्णरूप से भरोसा करते हैं तो वो सब तरह से आपकी जिम्मेदारी ले लेते हैं। हर तरह के संकट से आपकी रक्षा करते हैं।

6) जब अश्वत्थामा ने मांग लिया श्रीकृष्ण से उनका सुदर्शन चक्र
एक बार पांडव और कौरवों के गुरु द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा द्वारिका पहुंच गया। कुछ दिन वहां रहने के बाद एक दिन अश्वत्थामा ने श्रीकृष्ण से कहा कि वो उसका अजेय ब्रह्मास्त्र लेकर उसे अपना सुदर्शन चक्र दे दें। भगवान ने कहा ठीक है, मेरे किसी भी अस्त्र में से जो तुम चाहो, वो उठा लो। अश्वत्थामा ने भगवान के सुदर्शन चक्र को उठाने का प्रयास किया, लेकिन वो टस से मस नहीं हुआ।
भगवान ने उसे समझाया कि अतिथि की अपनी सीमा होती है। उसे कभी वो चीजें नहीं मांगनी चाहिए जो उसके सामर्थ्य से बाहर हो। अश्वत्थामा बहुत शर्मिंदा हुआ। वह बिना किसी शस्त्र-अस्त्र को लिए ही द्वारिका से चला गया।

लाइफ मैनेजमेंट: अपनी कोशिश के अनुपात में ही फल की आशा करनी चाहिए। साथ ही, किसी से कुछ भी मांगते समय भी अपनी मर्यादाओं का ध्यान रखना चाहिए।

7) शांति के लिए अंत तक प्रयास करते रहना चाहिए
जब पांडवों का वनवास खत्म हो गया और वे अपने वास्तविक स्वरूप में आ गए तो एक दिन उनके सभी मित्र और रिश्तेदार आदि राजा विराट नगर में एकत्रित हुए। सभी ने एकमत से निर्णय लिया कि हस्तिनापुर पर आक्रमण कर कौरवों का नाश कर देना चाहिए। तब श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि- हमें शांति के लिए एक और प्रयास करना चाहिए, जिससे किसी के प्राण न जाएं और पांडवों को उनका अधिकार भी मिल जाए। जब श्रीकृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिापुर जा रहे थे तो द्रौपदी ने इसका विरोध किया। तब श्रीकृष्ण ने उसे समझाया कि हस्तिनापुर के विनाश से तुम्हारे अपमान का बदला पूरा हो भी जाता है तो भी तुम्हारे हिस्से में सिर्फ कुटुंबियों का रक्त ही आएगा। इसलिए शांति का अंतिम अवसर देना हमारे हाथ में है। युद्ध करना या नहीं, इसका विचार कौरवों को करने दो।

लाइफ मैनेजमेंट: हमें अंतिम समय तक शांति के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। क्योंकि विनाश से किसी का भला नहीं होगा।

8) श्रीकृष्ण के बचपन से सीखें 3 बातें
भगवान श्रीकृष्ण का बचपन नंद गांव में बीता। यहां बालपन में भगवान श्रीकृष्ण रोज गायों को चराने जंगल में ला जाते थे। जंगल यानी प्रकृति। कृष्ण अपने बचपन में प्रकृति के काफी निकट रहे। श्रीकृष्ण का बचपन से ही संगीत की ओर विशेष रूझान था, इसलिए बांसुरी श्रीकृष्ण का ही पर्याय बन गई। भगवान श्रीकृष्ण को बचपन में मक्खन बहुत पसंद था। आज भी श्रीकृष्ण को मुख्य रूप से मक्खन का ही भोग लगाया जाता है।

लाइफ मैनेजमेंट:
1. हमें भी अपने बच्चों को खुला माहौल देना चाहिए। बच्चों को गार्डनिंग के लिए प्रेरित करें, जिससे वे अपने आस-पास के वातावरण को महसूस करें और समझें। 
2. अपने बच्चों को भी संगीत से जोड़ें। संगीत से मन तो प्रसन्न रहता ही है साथ ही उनका मनोवैज्ञानिक विकास भी होता है। वे भावनाओं को समझने लगते हैं।
3. तीसरी और सबसे अहम बात है भोजन। मक्खन यानी स्वस्थ्य आहार। मन आपका तभी स्वस्थ्य होगा, जब आपका आहार अच्छा हो।

9) जब श्रीकृष्ण ने खेल-खेल में कालिया नाग को हराकर दिया नदियों को प्रदूषण से मुक्ति का संदेश
एक बार श्रीकृष्ण मित्रों के साथ यमुना नदी के किनारे गेंद से खेल रहे थे। भगवान ने जोर से गेंद फेंकी और वो यमुना में जा गिरी। भारी होने से वो सीधे यमुना के तल पर चली गई। उस समय यमुना में कालिया नाग रहता था जिसके विष से यमुना काली हो रही थी और उसी जहर के कारण गोकुल के पशु यमुना का पानी पीकर मर रहे थे।

कान्हा बहुत छोटे थे, लेकिन मित्रों के जोर के कारण गेंद निकलने के लिए यमुना में छलांग लगाई और तल में पहुंच गए। उन्होंने कालिया नाग को यमुना छोड़कर सागर में जाने के लिए कहा, लेकिन वो नहीं माना और अपने विष से उन पर प्रहार करने लगा। कृष्ण ने कालिया नाग की पूंछ पकड़कर उसे मारना शुरू कर दिया। भगवान ने उसके फन पर चढ़कर उसका सारा विष निकाल दिया। 

विषहीन होने और थक जाने पर कालिया नाग ने भगवान से हार मानकर उनसे माफी मांगी। श्रीकृष्ण ने उसे पत्नियों सहित सागर में जाने का आदेश दिया। खुद कालिया नाग भगवान को अपने फन पर सवार करके यमुना के तल से ऊपर लेकर आया। कालिया नाग चला गया। यमुना को उसके विष से मुक्ति मिल गई।

लाइफ मैनेजमेंट: वास्तव में कालिया नाग प्रदूषण का प्रतीक है। हमारे देश की अधिकतर नदियां अभी भी प्रदूषण के जहर से आहत हैं। भगवान कृष्ण इस कथा के जरिए ये संदेश दे रहे हैं कि नदियों को प्रदूषण से मुक्त रखना हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। अगर हम अपने प्राकृतिक संसाधनों के प्रति संवेदनशील नहीं हैं तो इसका नुकसान भी हमें ही उठाना होगा। जैसे गोकुलवासियों ने विष के डर के कारण कालिया नाग को यमुना से भगाने का प्रयास नहीं किया तो उनके ही पशु उसके विष से मारे गए।

10) इसलिए बढ़ गई थी द्रौपदी की साड़ी
शिशुपाल कृष्ण की बुआ का बेटा था जिसके जन्म के समय ही यह भविष्यवाणी हो चुकी थी कि इसकी मौत कृष्ण के हाथों होगी, लेकिन कृष्ण ने अपनी बुआ को ये भरोसा दिलाया था कि वे सौ बार शिशुपाल से अपना अपमान सहन करेंगे।

एक सभा में शिशुपाल ने सारी मर्यादाएं तोड़ दी और अनेकों बार कृष्ण का अपमान किया। सौ बार पूरा होते ही कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध कर दिया। चक्र के प्रयोग से उनकी उंगली कट गई और उसमें से खून बहने लगा। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया।

उस समय कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया था कि इस कपड़े के एक-एक धागे का कर्ज वे समय आने पर चुकाएंगे। यह ऋण उन्होंने चीरहरण के समय द्रौपदी की साड़ी को बढ़ा कर चुकाया।

लाइफ मैनेजमेंट: अच्छा काम भविष्य के फिक्स डिपॉजिट की तरह होता है, जो समय आने पर आपको पूरे ब्याज सहित वापस मिलता है।

11) मित्रता निभाना
अर्जुन, सुदामा व श्रीदामा श्रीकृष्ण के प्रमुख मित्र थे। जब-जब इनमें से किसी पर भी कोई मुसीबत आई, श्रीकृष्ण ने उनकी हरसंभव मदद की। आज भी श्रीकृष्ण और अर्जुन की मित्रता की मिसाल दी जाती है।

12) सुखी दांपत्य 
ग्रंथों के अनुसार, श्रीकृष्ण की 16108 रानियां थीं। इनमें से 8 प्रमुख थीं। श्रीकृष्ण के दांपत्य जीवन में आपको कहीं भी अशांति नहीं मिलेगी। वे अपनी हर पत्नी को संतुष्ट रखते थे ताकि उनमें कोई मन-मुटाव न हो। श्रीकृष्ण की तरह हमें भी अपने दांपत्य जीवन में खुश रहना सीखना चाहिए।

13) रिश्ते निभाना
भगवान श्रीकृष्ण ने अपना हर रिश्ता पूरी ईमानदारी से निभाया। यहां तक कि अपने परिजन व अन्य लोगों के लिए द्वारिका नगरी ही बसा दी। माता-पिता, बहन, भाई श्रीकृष्ण ने हर रिश्ते की मर्यादा रखी।

14) युद्धनीति
महाभारत के युद्ध में जब-जब पांडवों पर कोई मुसीबत आई, श्रीकृष्ण ने अपनी युद्ध नीति से उसका हल निकाला। भीष्म, द्रोणाचार्य आदि अनेक महारथियों के वध का रास्ता श्रीकृष्ण ने ही पांडवों को सुझाया था।


भगवान श्रीकृष्ण की आरती
आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली;
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक;
ललित छवि श्यामा प्यारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै;
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग;
अतुल रति गोप कुमारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा;
बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच;
चरन छवि श्रीबनवारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…
चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू;
हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद;
टेर सुन दीन भिखारी की ॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की…

Share this article
click me!