भगवान श्रीकृष्ण का जीवन मनुष्य जाति के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है।
उज्जैन. श्रीकृष्ण ने अपने जीवन में ऐसी अनेक लीलाएं की, जिसमें लाइफ मैनेजमेंट के बहुत ही गहरे सूत्र छिपे हैं। जन्माष्टमी (23 अगस्त, शुक्रवार) के अवसर पर हम आपको भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से जुड़े कुछ रोचक किस्से तथा उनमें छिपे लाइफ मैनेजमेंट के सूत्र बता रहे हैं-
इसलिए बढ़ गई थी द्रौपदी की साड़ी
द्रौपदी का चीरहरण होते समय भगवान ने उनकी सहायता की और साड़ी को इतना बढ़ा दिया कि दु:शासन उतार न सका। इसके पीछे क्या कारण है ये महाभारत से पता चलता है।
बात उस समय की है जब पांडवों ने हस्तिनापुर से अलग होकर अपने लिए इंद्रप्रस्थ का निर्माण किया। भगवान कृष्ण के मार्गदर्शन में ही सारा निर्माण हुआ। उसके बाद युधिष्ठिर का राजतिलक करके राजसूय यज्ञ किया गया। इसमें दुनियाभर के राजाओं ने भाग लिया। यज्ञ में अग्रपूजा की बात आई। पंडितों ने युधिष्ठिर से पूछा कि सबसे पहले वे किसकी पूजा करेंगे। भीष्म के कहने पर भगवान कृष्ण का नाम अग्रपूजा के लिए तय हुआ।
लगभग सभी राजा इसके लिए तैयार थे, लेकिन कृष्ण की बुआ का बेटा शिशुपाल इसके लिए तैयार नहीं था। उसका कहना था कि राजाओं की सभा में एक ग्वाले की अग्रपूजा करना सभी राजाओं का अपमान करने जैसा है। उसने कृष्ण को गालियां देना शुरू कर दिया। शिशुपाल के जन्म के समय ही यह भविष्यवाणी हो चुकी थी कि इसकी मौत कृष्ण के हाथों होगी, लेकिन कृष्ण ने अपनी बुआ को ये भरोसा दिलाया था कि वे सौ बार शिशुपाल से अपना अपमान सहन करेंगे।
इसके बाद ही उसका वध करेंगे। सभा में शिशुपाल ने सारी मर्यादाएं तोड़ दी और अनेकों बार कृष्ण का अपमान किया। सौ बार पूरा होते ही कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध कर दिया। चक्र के प्रयोग से उनकी उंगली कट गई और उसमें से खून बहने लगा। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ कर कृष्ण की उंगली पर बांध दिया। उस समय कृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया था कि इस कपड़े के एक-एक धागे का कर्ज वे समय आने पर चुकाएंगे। यह ऋण उन्होंने चीरहरण के समय चुकाया।
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इसलिए गोवर्धन पर्वत उठाया कृष्ण ने
महाभारत काल में वर्षा ऋतु के बाद गांवों में देवराज इंद्र का आभार प्रकट करने के लिए यज्ञ किए जाते थे। इंद्र मेघों के देवता हैं और उन्हीं के आदेश से मेघ यानी बादल धरती पर पानी बरसाते हैं। हमेशा मेघ पानी बरसाते रहें, जिससे गांव और शहरों में अकाल जैसी स्थिति ना बने, इसके लिए यज्ञ के जरिए इंद्र को प्रसन्न किया जाता था। ब्रज मंडल में भी उस दिन ऐसे ही यज्ञ का आयोजन था। लोगों का मेला लगा देख, यज्ञ की तैयारियों को देख कृष्ण ने पिता नंद से पूछा कि ये क्या हो रहा है।
नंद ने उन्हें यज्ञ के बारे में बताया। कृष्ण ने कहा इंद्र को प्रसन्न रखने के लिए यज्ञ क्यों? पानी बरसाना तो मेघों का कर्तव्य है और उन्हें आदेश देना इंद्र का कर्तव्य। ऐसे में उनको प्रसन्न करने का सवाल ही कैसे उठता है? ये तो उन्हें अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए रिश्वत देने जैसी बात है। कृष्ण ने कहा कि अगर पूजा और यज्ञ ही करना है तो गोवर्धन पर्वत का किया जाना चाहिए, क्योंकि वो बिना किसी प्रतिफल की आशा में हमारे पशुओं का भरण-पोषण करता है, हमें औषधियां देता है। श्रीकृष्ण के कहने पर सभी ने ऐसा ही किया।
इससे इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने पूरे ब्रजमंडल पर भयंकर बरसात शुरू कर दी। सभी ने कृष्ण से कहा कि देखो तुम्हारे कहने पर इंद्र को नाराज किया तो उसने कैसा प्रलय मचा दिया है। अब ये गोवर्धन हमारी रक्षा करेगा क्या? कृष्ण ने कहा - हां, यही गोवर्धन हमारी रक्षा करेगा। कृष्ण ने अपने दाहिने हाथ की छोटी उंगली पर गोवर्धन को उठा लिया। सारे गांव वाले उसके नीचे आ गए।
वे बारिश की बौछारों से बच गए। भगवान ने ग्वालों से कहा कि सभी मेरी तरह गोवर्धन को उठाने में सहायता करो। अपनी-अपनी लाठियों का सहारा दो। ग्वालों ने अपनी लाठियां गोवर्धन से टिका दी। इंद्र को हार माननी पड़ी। उसका अहंकार नष्ट हो गया। वो कृष्ण की शरण में आ गया। भगवान ने उसे समझाया कि अपने कर्तव्यों के पालन के लिए किसी प्रतिफल की आशा नहीं करनी चाहिए। जो हमारा कर्तव्य है, उसे बिना किसी लालच के पूरा करना चाहिए।
लाइफ मैनेजमेंट: श्रीकृष्ण ने यहां सीधे रूप से लाइफ मैनेजमेंट के तीन सूत्र दिए हैं।
पहला सूत्र: भ्रष्टाचार बढ़ाने में दो पक्षों का हाथ होता है। एक जो कर्तव्यों के पालन के लिए अनुचित लाभ की मांग करता है, दूसरा वह पक्ष जो ऐसी मांगों पर बिना विचार और विरोध के लाभ पहुंचाने का काम करता है। इंद्र मेघों का राजा है, लेकिन पानी बरसाना उसका कर्तव्य है। इसके लिए उसकी पूजा की जाए या उसके लिए यज्ञ किए जाएं, आवश्यक नहीं है। अनुचित मांगों पर विरोध जरूरी है। जो लोग किसी अधिकारी या जनप्रतिनिधि को उसके कर्तव्य की पूर्ति के लिए रिश्वत देते हैं तो वे भी भ्रष्टाचार फैलाने के दोषी हैं।
दूसरा सूत्र: प्राकृतिक संसाधनों के सम्मान का। पहाड़, नदी, वन, पेड़-पौधे ये सब हमारे रक्षक हैं, मित्र हैं। हमें इनका सम्मान करना चाहिए, क्योंकि ये हमारे लिए कई कष्ट झेलते हैं, लेकिन हमेशा हमारी सहायता करते हैं। उनके सम्मान से ही प्रकृति का संतुलन बना रहेगा।
तीसरा सूत्र: अपनी जिम्मेदारी खुद उठाने का। भगवान ने जब गोवर्धन पर्वत को उठाया तो ग्वालों से भी अपनी लाठियों का सहारा देने के लिए कहा, जबकि सारा भार खुद श्रीकृष्ण ने उठा रखा था। भगवान समझा रहे हैं कि तुम्हारी रक्षा की सारी जिम्मेदारी मेरी ही है, लेकिन फिर भी तुम्हें अपने प्रयास खुद करने होंगे। सिर्फ मेरे भरोसे रहने से काम नहीं चलेगा, कर्म तो तुम्हें ही करने होंगे। अगर पूरी तरह से भगवान के भरोसे बैठ जाएंगे तो आत्मविश्वास खो जाएगा। फिर हर मुसीबत में भगवान को ही याद करेंगे।