वरियान नाम के शुभ योग में 29 सितंबर को किया जाएगा जीवित्पुत्रिका व्रत, ये हैं विधि और शुभ मुहूर्त

धर्म ग्रंथों के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत (Jivitputrika Vrat 2021) किया जाता है। ये व्रत महिलाएं अपने पुत्रों की लंबी आयु के लिए रखती हैं। इस बार ये व्रत 29 सितंबर, बुध‌वार को है। इसे जिमूतवाहन और जिऊतिया व्रत भी कहते हैं।

Asianet News Hindi | Published : Sep 27, 2021 1:55 PM IST

उज्जैन. इस बार 29 सितंबर को को जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाएगा। ज्योतिषियों के अनुसार, इस बार वरियान नाम का शुभ योग भी बन रहा है। चंद्रमा की स्थिति मिथुन राशि पर जिसका स्वामी बुध ग्रह है और बुधवार के दिन ही है। इसलिए श्रेष्ठ योग बन रहा है। जो व्रत के फल को कई गुना वृद्धिकारक बनाएगा।

जीवित्पुत्रिका (Jivitputrika Vrat 2021) व्रत का महत्व
इस व्रत को संतान प्राप्ति, उनकी लंबी आयु और सुखी निरोग जीवन की कामना के साथ किया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से संतान के ऊपर आने वाले कष्ट दूर होते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाभारत काल में भगवान श्री कृष्ण ने अपने पुण्य कर्मों को अर्जित करके उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु को जीवनदान दिया था, इसलिए इस व्रत को संतान की रक्षा की कामना के साथ किया जाता है। माना जाता है कि इस व्रत के फलस्वरुप भगवान श्रीकृष्ण संतान की रक्षा करते हैं। इस व्रत का पारण अष्टमी में नही होता है। अष्टमी के बाद नवमी में ही पारण करना चाहिए।

जीवित्पुत्रिका (Jivitputrika Vrat 2021) व्रत शुभ मुहूर्त
अश्विन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी आरंभ- 28 सितंबर 2021 दिन मंगलवार की शाम को 06 बजकर 16 मिनट से 
अश्विन मास कृष्ण पक्ष अष्टमी समाप्त- 29 सिंतबर 2021 दिन बुधवार को रात 08 बजकर 29 मिनट पर 

व्रत की विधि
- व्रती महिलाओं को पवित्र होकर संकल्प के साथ प्रदोष काल में गाय के गोबर से पूजन स्थल को लीप दें और छोटा तालाब भी खोदकर बना लें। तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर दें।
- जिमूतवाहन की कुश निर्मित मूर्ति, जल या मिट्टी के पात्र में स्थापित कर पीली और लाल रूई से उसे अलंकृत करें तथा धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों से पूजन करें।
- मिट्टी या गाय के गोबर से चिल्होरिन (मादा चील) और सियारिन की मूर्ति बनाकर उसका मस्तक लाल सिंदूर से विभूषित कर दें। अपने वंश की वृद्धि और प्रगति के लिए दिनभर उपवास कर बांस के पत्तों से पूजन करना चाहिए। पूजन के बाद व्रत माहात्म्य की कथा श्रवण करना चाहिए। अगले दिन दान-पुण्य के पश्चात व्रत का पारण करें।
 

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