Jivitputrika Vrat Katha: त्याग और बहादुरी से भरी है जीवित्पुत्रिका व्रत की ये कथा, एक बार जरूर सुनें

Published : Sep 18, 2022, 12:23 PM ISTUpdated : Sep 18, 2022, 04:16 PM IST
Jivitputrika Vrat Katha: त्याग और बहादुरी से भरी है जीवित्पुत्रिका व्रत की ये कथा, एक बार जरूर सुनें

सार

Jivitputrika Vrat 2022: धर्म ग्रंथों के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है। इस बार ये व्रत 18 सितंबर, रविवार को किया जाएगा। वैसे तो ये व्रत पूरे देश में किया जाता है, लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश में इसकी खास मान्यता है।  

उज्जैन. हिंदू धर्म में संतान की लंबी आयु और अच्छी सेहत के लिए कई व्रत किए जाते हैं, जीवित्पुत्रिका (Jivitputrika Vrat 2022) भी इनमें से एक है। इसे जिउतिया, जीवतिया व अन्य कई नामों से जाना जाता है। इस बार ये व्रत 18 सितंबर, रविवार को किया जाएगा। बिहार व उत्तर प्रदेश में इसकी खास मान्यता है। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से बच्चों की उम्र लंबी होती है और सेहत भी ठीक रहती है। आगे जानिए इस व्रत से जुड़ी कथा…

ये है जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा (Jivitputrika Vrat Katha)
- सतयुग में गंधर्वों के एक राजकुमार थे, उनका नाम जिमूतवाहन था। एक दिन वे अपना राजपाठ भाइयों को सौंपकर पिता की सेवा करने वन में चल दिए। वन में ही उनका विवाह मलयवती नाम की कन्या के साथ हो गया। एक दिन वन में घूमते हुए उन्होंने एक वृद्धा को रोते हुए देखा। 
- उन्होंने वृद्धा से रोने का कारण पूछा तो उसने बताया “मैं नागवंश की स्त्री हूं। हमारे वंश में रोज एक बलि पक्षीराज गरुड़ को देने की परंपरा है। आज मेरा पुत्र की बारी है। मेरा एक ही पुत्र है, उसका नाम शंकचूड़ है। आज अगर गरुड़ उसे अपना भोजन बना लेंगे तो मैं इस संसार में अकेली रह जाऊंगी।”
- महिला की बात सुनकर जिमूतवाहन ने कहा कि “डरो मत, मैं तुम्हारे पुत्र के प्राणों की रक्षा करूंगा। आज तुम्हारे पुत्र की जगह मैं स्वयं गरुड़देव का आहार बनूंगा।“ ऐसा कहकर जिमूतवाहन स्वयं उस जगह जाकर खड़े हो गए जहां पक्षीराज गरुड़ आने वाले थे।
- जब गरुड़देव भोजन के लिए आए तो उन्होंने नागवंशी न होकर किसी अन्य व्यक्ति को उसकी जगह देखकर इसका कारण पूछा तो उन्होंने पूरी बात गरुड़ देव को सच-सच बता दी। जिमूतवाहन की बात सुनकर गरुड़ जी उसकी बहादुरी देखकर बहुत खुश हुए और जीमूतवाहन को जीवनदान देकर नागों की बलि ना लेने का वचन भी दिया। 
- इस तरह जिमूतवाहन के त्याग और साहस से नाग जाति की रक्षा हुई। तभी से संतान की सुरक्षा और उसकी अच्छी सेहत के लिए जीमूतवाहन की पूजा की शुरुआत हो गई। जिमूतवाहन के नाम से इस व्रत का नाम जीवित्पुत्रिका और जिउतिया पड़ा।

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