संगम तट पर श्रृद्धालु करते हैं कल्पवास, जानिए क्या हैं इससे जुड़े कठोर नियम

11 जनवरी, शनिवार से माघ मास शुरू हो चुका है। मघा नक्षत्र से युक्त पूर्णिमा होने के कारण इस महीने का नाम माघ पड़ा।

Asianet News Hindi | Published : Jan 14, 2020 3:33 AM IST

उज्जैन. हिंदू कैलेंडर के अनुसार भारतीय संस्कृति में वैसे तो सभी महीनों का महत्व है, लेकिन माघ मास को विशेष स्थान प्राप्त है। ऐसी मान्यता है कि इस महीने में तीर्थ और पवित्र नदियों के जल में डुबकी लगाने से पापमुक्त होकर स्वर्ग प्राप्त होता है।

कल्पवास और दान का महत्व
माघ मास में पुण्य प्राप्ति के लिए श्रद्धालु गंगा-यमुना के संगम स्थल पर माघ मास में पूरे तीस दिनों तक यानी पौष पूर्णिमा से माघ मास की पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं। कल्पवास शब्द में 'कल्प' का अर्थ है युग और 'वास कर अर्थ है रहना। अर्थात किसी पवित्र भूमि में कठिनाई के साथ अनुरक्ति और विरक्ति दोनों भावनाओं से प्रेरित होकर निश्चित समय तक रहने को कल्पवास कहते हैं।

ये हैं कल्पवास के नियम
- कल्पवास करने वाले श्रृद्धालु को एक महीने यानी पौष पूर्णिमा से माघ पूर्णिमा तक संगम तट पर कुटिया बनाकर रहना होता है।
- इस महीने के दौरान कल्पवासी सिर्फ 1 समय सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।
- कल्पवासी प्रतिदिन तीन बार गंगा में स्नान करते हैं और अधिकांश समय भगवान के भजन में लगे रहते हैं।
- कल्पवास के दौरान जमीन पर सोना और ब्रह्मचर्य का पालन करना प्रमुख है।
- जो भी व्यक्ति कल्पवास करता है, उसे अपने व्यसनों पर नियंत्रण रखना होता है जैसे- धू्म्रपान, तंबाकू आदि।
- कल्पवास के दौरान व्यक्ति संकल्पित क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकता।

दान का विशेष महत्व
शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि इस महीने में पवित्र नदियों में स्नान के साथ जरूरतमंद लोगों को सर्दी से बचने के लिए ऊनी कपड़े, कंबल और आग तापने के लिए लकड़ी आदि का दान एवं धन और अनाज देने से अनंत पुण्य फल प्राप्त होता है।

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