हिंदू पंचांग के अनुसार दोनों पक्षों (कृष्ण व शुक्ल) में एक-एक एकादशी (Ekadashi) तिथि होती है। एक प्रकार साल की 24 एकादशी मानी गई हैं। इस तिथि का धर्म ग्रथों में विशेष महत्व बताया गया है। इसी क्रम में श्रावण ( Sawan) मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका (Kamika Ekadashi) एकादशी कहते हैं। इस बार ये एकादशी 4 अगस्त, बुधवार को है। धर्म ग्रंथों में कामिका एकादशी (Kamika Ekadashi) को संसार में सभी पापों को नष्ट करने वाला बताया गया है।
उज्जैन. जो मनुष्य कामिका एकादशी (Kamika Ekadashi) पर भगवान विष्णु (Vishnu) की पूजा करता है, उससे देवता, गंधर्व और सूर्य आदि सभी की पूजा हो जाती है।
कब से कब तक रहेगी एकादशी (Ekadashi) तिथि?
एकादशी तिथि का प्रारंभ 3 अगस्त, मंगलवार की दोपहर 12.59 से होगा। यह तिथि अगले दिन यानी 4 अगस्त, बुधवार को दोपहर 3.17 तक रहेगी। एकादशी की उदया तिथि 4 अगस्त को होने से इस दिन व्रत पूजा करना श्रेष्ठ रहेगा। इस दिन सर्वार्थ सिद्धि नाम का शुभ योग भी बन रहा है। पूरे दिन पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा।
इस विधि से करें व्रत विधि
- कामिका एकादशी (Kamika Ekadashi) की सुबह स्नान आदि करने के बाद भगवान विष्णु की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराएं।
- इसके बाद विष्णु प्रतिमा को पंचामृत से स्नान कराएं। पंचामृत में दूध, दही, घी, शहद और शक्कर शामिल है। इसके बाद पुन: पानी से स्नान कराएं।
- भगवान को गंध (अबीर, गुलाल, इत्र आदि सुगंधित वस्तु), चावल, जौ तथा फूल अर्पित करें। धूप, दीप से आरती उतारें।
- भगवान विष्णु को मक्खन-मिश्री का भोग लगाएं, साथ में तुलसी दल अवश्य चढ़ाएं और अंत में क्षमा याचना करते हुए भगवान को नमस्कार करें। विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें।
कामिक एकादशी (Kamika Ekadashi) का महत्व
- कामिका एकादशी के व्रत से जीव मनुष्य योनि को ही प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस एकादशी के दिन भक्तिपूर्वक तुलसी दल भगवान विष्णु को अर्पण करते हैं, वे इस संसार के समस्त पापों से दूर रहता है।
- जो मनुष्य इस एकादशी की रात को भगवान विष्णु के मंदिर में घी या तेल का दीपक जलाता है, उसके पितर स्वर्गलोक में अमृतपान करते हैं तथा वे सौ करोड़ दीपकों से प्रकाशित होकर सूर्य लोक को जाते हैं।
- पापों को नष्ट करने वाली इस कामिका एकादशी का व्रत मनुष्य को अवश्य करना चाहिए। कामिका एकादशी के व्रत का महात्म्य श्रद्धा से सुनने और पढ़ने वाला मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर विष्णु लोक को जाता है।