Kanwar Yatra 2022: किसने की थी कावड़ यात्रा की शुरूआत, क्या आप जानते हैं इस परंपरा से जुड़ी ये प्राचीन कथा?

सावन में हर कोई भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अलग-अलग तरीकों से प्रयास करता है। कोई जूते-चप्पल नहीं पहनता तो कोई पूरे महीने सिर्फ एक समय भोजन करता है। कुछ लोग तो और भी कठिन नियमों का पालन करते हैं। कावड़ यात्रा भी शिवजी की कृपा पाने का एक माध्यम है।

Manish Meharele | Published : Jul 17, 2022 11:35 AM IST / Updated: Jul 17 2022, 05:06 PM IST

उज्जैन. इस बार सावन मास (Sawan 2022) की शुरूआत 14 जुलाई से हो चुकी है। इस महीने में कावड़ यात्रा का विशेष महत्व रहता है। कावड़ यात्रा (Kanwar Yatra 2022) में भक्त एक स्थान से पवित्र जल लेकर पैदल चलते हुए मीलों की दूरी तय करके शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। इस दौरान कावड़ यात्री अनेक कठिन नियमों का पालन करते हैं। कावड़ यात्रा की परंपरा कैसे शुई इसका कोई उल्लेख तो किसी ग्रंथ में नहीं मिलता लेकिन भगवान परशुराम से जुड़ी एक कथा जरूर है, जो कावड़ यात्रा का महत्व बताती है। सावन के इस पवित्र महीने में जानिए इस कथा के बारे में

सबसे पहले भगवान परशुराम ने की थी कावड़ यात्रा (Kanwar Yatra Ki Katha)
- जनश्रुति है कि भगवान विष्णु के अवतार परशुराम एक बार मयराष्ट्र (वर्तमान मेरठ) से होकर निकले तो उन्होंने पुरा नामक स्थान पर विश्राम किया। वह स्थान परशुरामजी को बहुत सुंदर लगा।
- परशुरामजी ने उसी स्थान पर एक भव्य शिव मंदिर बनवाने का संकल्प लिया। मंदिर में शिवलिंग की स्थापना के लिए पत्थर लेने वे हरिद्वार के गंगा तट पर पहुंचे। वहां उन्होंने मां गंगा से एक पत्थर प्रदान करने का अनुरोध किया।
- परशुरामजी की बात सुनकर सभी पत्थर रोने लगे क्योंकि वे देवी गंगा से अलग नहीं होना चाहते थे। तब भगवान परशुराम ने उनसे कहा कि जो पत्थर वह ले जाएंगे, उसका चिरकाल तक गंगा जल से अभिषेक किया जाएगा। 
- भगवान परशुराम पत्थर लेकर आए और उसे शिवलिंग के रूप में परशुरामेश्वर महादेव मंदिर में स्थापित किया। इसके बाद से ही कावड़ यात्रा की परंपरा शुई। आज भी भक्त कावड़ यात्रा के दौरान हरिद्वार से गंगाजल लाकर मेरठ स्थित परशुरामेश्वर मंदिर में जल चढ़ाते हैं।  

ये हैं कावड़ यात्रा के नियम (Kanwar Yatra Ke Niyam)
1. कावड़ यात्रा में किसी भी तरह का नशा करने की मनाही होती है।
2. कावड़ यात्री तामसिक भोजन जैसे मांस, मछली, अंडा यहां तक कि लहसुन-प्याज भी नहीं खाते।
3. यात्रा के दौरान कावड़ को जमीन पर रखने की मनाही होती है। 
4. बिना स्नान किए कावड़ यात्री कावड़ को नहीं छूते। अगर किसी कारणवश कावड़ कंधे से उतारनी पड़े तो बिना शुद्ध हुए दोबारा कावड़ को हाथ नहीं लगाते। 
5. कावड़ यात्रा के दौरान तेल, साबुन, कंघी करने व अन्य श्रृंगार सामग्री का उपयोग भी वर्जित रहता है।
6. कावड़ यात्रियों चारपाई पर नहीं बैठ सकते और न ही किसी वाहन पर बैठ सकते हैं।
7. यात्रा के दौरान चमड़े से बनी चीजों जैसे बेल्ट, पर्स आदि का स्पर्श करना भी मना होता है। 


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