भगवान जगन्नाथ का रथ बनाने में नहीं होता धातु का उपयोग, बहुत कम लोग जानते हैं रथ से जुड़ी ये खास बातें

विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथयात्रा पुरी में आज (12 जुलाई, सोमवार) से शुरू हो चुकी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति रथयात्रा में शामिल होकर इस रथ को खींचता है उसे सौ यज्ञ करने के बराबर पुण्य प्राप्त होता है।

Asianet News Hindi | Published : Jul 12, 2021 3:42 AM IST / Updated: Jul 12 2021, 11:14 AM IST

उज्जैन. इस रथ यात्रा को लेकर मान्यता है कि एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनसे द्वारका के दर्शन कराने की प्रार्थना की थी। तब भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन की इच्छा पूर्ति के लिए उन्हें रथ में बिठाकर पूरे नगर का भ्रमण करवाया था और इसके बाद से इस रथयात्रा की शुरुआत हुई थी। इस रथयात्रा से जुड़ी कई खास बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। आज हम आपको उसी के बारे में बता रहे हैं…

ये हैं रथ से जुड़ी खास बातें…
1.
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं क्योंकि ये अन्य लकड़ियों से हल्की होती है। भगवान जगन्नाथ का नाम हैं, जैसे- गरुड़ध्वज, नंदीघोष व कपिध्वज आदि। इस रथ के सारथी का नाम दारुक है।
2. भगवान जगन्नाथ के रथ के घोड़ों का नाम बलाहक, शंख, श्वेत व हरिदाश्व है। इनका रंग सफेद होता है। रथ के रक्षक पक्षीराज गरुड़ है। भगवान जगन्नाथ के रथ पर हनुमानजी और नृसिंह का प्रतीक चिह्न व सुदर्शन स्तंभ भी होता है। ये रथ की रक्षा का प्रतीक है।
3. भगवान जगन्नाथ के रथ का रंग लाल और पीला होता है और ये अन्य रथों से आकार में थोड़ा बड़ा भी होता है। रथ की ध्वजा यानी झंडा त्रिलोक्यवाहिनी कहलाता है। रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है वह शंखचूड़ नाम से जानी जाती है।
4. बलरामजी के रथ का नाम तालध्वज है। इस रथ पर महादेव का चिह्न होता है। रथ के रक्षक वासुदेव व सारथि का नाम मतालि है। सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है। इनके रथ पर देवी दुर्गा का चिह्न होता है। रथ की रक्षक जयदुर्गा व सारथि अर्जुन होते हैं।
5. भगवान के रथ में एक भी कील या कांटे आदि का प्रयोग नहीं होता। यहां तक की कोई धातु भी रथ में नहीं लगाई जाती है। रथ की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी के दिन और रथ बनाने की शुरुआत अक्षय तृतीया के दिन से होती है।
6. तीनों रथ के तैयार होने के बाद इसकी पूजा के लिए पुरी के गजपति राजा की पालकी आती है। इस पूजा अनुष्ठान को 'छर पहनरा' नाम से जाना जाता है। इन तीनों रथों की वे विधिवत पूजा करते हैं और सोने की झाड़ू से रथ मण्डप और यात्रा वाले रास्ते को साफ किया जाता है।
7. स्कंद पुराण में वर्णित है कि जो व्यक्ति रथ यात्रा में शामिल होकर जगत के स्वामी जगन्नाथजी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है वह सारे कष्टों से मुक्त हो जाता है, जबकि जो व्यक्ति जगन्नाथ को प्रणाम करते हुए मार्ग के धूल-कीचड़ आदि में लोट-लोट कर जाता है वो सीधे भगवान विष्णु के उत्तम धाम को प्राप्त होता है और जो व्यक्ति गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करता है उसे मोक्ष मिलता है।

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