श्राद्ध करने से पहले सभी को जान लेना चाहिए ये 10 बातें, मिल सकती है पितृ दोष से मुक्ति

हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास का पहला पखवाड़ा यानी 15 दिन पितरों की पूजा के लिए नियत हैं। इस अवधि में पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण करने का विशेष महत्व है।

Asianet News Hindi | Published : Sep 2, 2020 3:34 AM IST / Updated: Sep 02 2020, 12:33 PM IST

उज्जैन. ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, पूर्वजों के लिए किए जाने वाले श्राद्ध शास्त्रों में बताए गए उचित समय पर करना ही फलदायी होता है। जानिए तर्पण और श्राद्ध कर्म के लिए श्रेष्ठ समय क्या है...

1. पितृ शांति के लिए तर्पण का श्रेष्ठ समय संगवकाल यानी सुबह 8 से लेकर 11 बजे तक माना जाता है। इस दौरान किए गए जल से तर्पण से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
2. तर्पण के बाद बाकी श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ और फलदायी समय कुतपकाल होता है। यह समय हर तिथि पर सुबह 11.36 से दोपहर 12.24 तक होता है।
3. मान्यता है कि इस समय पितरों का मुख पश्चिम की ओर हो जाता है। इससे पितर अपने वंशजों द्वारा श्रद्धा से भोग लगाए कव्य बिना किसी कठिनाई के ग्रहण करते हैं।
4. इसलिए इस समय पितृ कार्य करने के साथ पितरों की प्रसन्नता के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए।
5. पितरों की भक्ति से मनुष्य को पुष्टि, आयु, वीर्य और धन की प्राप्ति होती है।
6. ब्रह्माजी, पुलस्त्य, वसिष्ठ, पुलह, अंगिरा, क्रतु और महर्षि कश्यप- ये सात ऋषि महान योगेश्वर और पितर माने गए हैं।
7. अग्नि में हवन करने के बाद जो पितरों के निमित्त पिंडदान दिया जाता है, उसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं करते। श्राद्ध में अग्निदेव को उपस्थित देखकर राक्षस वहां से भाग जाते हैं।
8. सबसे पहले पिता को, उनके बाद दादा को उसके बाद परदादा को पिंड देना चाहिए। यही श्राद्ध की विधि है।
9. प्रत्येक पिंड देते समय एकाग्रचित्त होकर गायत्री मंत्र का जाप तथा सोमाय पितृमते स्वाहा का उच्चारण करना चाहिए।
10. तर्पण करते समय पिता, दादा और परदादा आदि के नाम का स्पष्ट उच्चारण करना चाहिए।
 

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