जानें कैसे निकलते हैं शरीर से प्राण, क्या-क्या होता है मृत्यु के बाद

जब परिवार में किसी की मृत्यु हो जाती है तो ब्राह्मण द्वारा गरुड़ पुराण का पाठ करवाने की परंपरा है।

Asianet News Hindi | Published : Sep 14, 2019 7:49 AM IST / Updated: Sep 14 2019, 01:25 PM IST

उज्जैन. ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार इस ग्रंथ में भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को मृत्यु से संबंधित अनेक गुप्त बातें बताई हैं। मृत्यु के बाद आत्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है, इसका विस्तृत वर्णन भी गरुड़ पुराण में किया गया है। आज हम आपको गरुड़ पुराण में लिखी कुछ ऐसी ही खास व रोचक बातें बता रहे हैं-

ऐसे निकलते हैं शरीर से प्राण
गरुड़ पुराण के अनुसार, जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोलना चाहता है, लेकिन बोल नहीं पाता। अंत समय में उसकी सभी इंद्रियां (बोलने, सुनने आदि की शक्ति) नष्ट हो जाती हैं और वह हिल-डुल भी नहीं पाता। उस समय दो यमदूत आते हैं। उस समय शरीर से अंगूष्ठ मात्र (अंगूठे के बराबर) आत्मा निकलती है, जिसे यमदूत पकड़ लेते हैं।

ऐसे डराते हैं यमदूत
यमराज के दूत उस आत्मा को पकड़कर यमलोक ले जाते हैं, जैसे- राजा के सैनिक अपराध करने वाले को पकड़ कर ले जाते हैं। उस जीवात्मा को रास्ते में थकने पर भी यमराज के दूत डराते हैं और उसे नरक में मिलने वाले दुखों के बारे में बार-बार बताते हैं। यमदूतों की ऐसी भयानक बातें सुनकर आत्मा जोर-जोर से रोने लगती है, किंतु यमदूत उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते।

इतना कष्ट सहती है आत्मा
इसके बाद वह जीवात्मा आग की तरह गर्म हवा तथा गर्म बालू पर वह चल नहीं पाती और भूख-प्यास से तड़पती है। तब यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे ले जाते हैं। वह जीव जगह-जगह गिरती है और बेहोश हो जाती है। फिर उठ कर चलने लगती है। इस प्रकार यमदूत जीवात्मा को अंधकार वाले रास्ते से यमलोक ले जाते हैं।

इतनी दूर है यमलोक
गरुड़ पुराण के अनुसार, यमलोक 99 हजार योजन (योजन वैदिक काल की लंबाई मापने की इकाई है। एक योजन बराबर होता है चार कोस यानी 13-16 कि.मी) है। वहां यमदूत पापी जीव को थोड़ी ही देर में ले जाते हैं। इसके बाद यमदूत उसे सजा देते हैं। इसके बाद वह जीवात्मा यमराज की आज्ञा से यमदूतों के साथ फिर से अपने घर आती है।

तृप्त नहीं होती आत्मा
घर आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश करने की इच्छा करती है, लेकिन यमदूत के बंधन से वह मुक्त नहीं हो पाती और भूख-प्यास के कारण रोती है। पुत्र आदि जो पिंड और अंत समय में दान करते हैं, उससे भी उसकी तृप्ति नहीं होती। इस प्रकार भूख-प्यास से युक्त होकर वह जीव यमलोक जाता है।

इसलिए करते हैं पिंडदान
इसके बाद उस आत्मा के पुत्र आदि परिजन यदि पिंडदान नहीं देते हैं, तो वह प्रेत बन जाती है और लंबे समय तक सुनसान जंगल में रहती है। गरुड़ पुराण के अनुसार, मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए। पिंडदान से ही आत्मा को चलने की शक्ति प्राप्त होती है।

ऐसे बनता है आत्मा का शरीर
शव को जलाने के बाद मृत देह से अंगूठे के बराबर का शरीर उत्पन्न होता है। वही, यमलोक के मार्ग में शुभ-अशुभ फल को भोगता है। पहले दिन पिंडदान से मूर्धा (सिर), दूसरे दिन से गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से ह्रदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नौवें और दसवें दिन से भूख-प्यास आदि उत्पन्न होती है।

47 दिन में आत्मा पहुचंती है यमलोक
यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन आत्मा को पकड़ लिया जाता है। इसके बाद वह भूख-प्यास से तड़पती हुई यमलोक तक अकेली ही जाती है। यमलोक तक पहुंचने का रास्ता वैतरणी नदी को छोड़कर छियासी हजार योजन है। 47 दिन लगातार चलकर आत्मा यमलोक पहुंचती है। इस प्रकार मार्ग में सोलह पुरियों को पार कर जीव यमराज के पास पहुंचता है।
 

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