हिंदू धर्म के अनुसार अतिथि यानी मेहमान होता है, इसलिए कहा भी जाता है कि अतिथि देवो भवः। धर्म कहता है, अतिथि का सत्कार और सम्मान जरूरी है।
उज्जैन. अगर अतिथि का सम्मान नहीं किया गया, तो पुण्य का नाश होता है। आचार्य विष्णु शर्मा ने पंचतंत्र में अतिथि सत्कार के बारे में काफी लिखा है। वेदों से लेकर महाभारत तक, गृहस्थों के लिए जो नियम बताए गए हैं, उनमें अतिथि और भिक्षुक के सम्मान की बात अनिवार्य बताई गई है। महाभारत के शांति पर्व में गृहस्थों के लिए कहा गया है....
अतिथिर्यस्य भग्नाशो गृहात् प्रतिनिवर्तते।
स दत्त्वा दुष्कृतम् तस्मै पुण्यमादाय गच्छति।। (महाभारत)
अर्थ - जिस गृह्स्थ के घर से कोई अतिथि बिना सम्मान, या भिक्षुक बिना भिक्षा के निराश होकर लौट जाता है, वह उस गृहस्थ को अपना पाप देकर, उसका पुण्य लेकर चला जाता है।