जीवन की इस आपा-धापी में हर कोई आगे निकलता चाहता है। चाहे इसके लिए उसे कुछ भी क्यों न करना पड़े। सभी लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ पूरे करने में लगे हैं। अपने आस-पास रहने वाले लोगों के बारे में कोई सोच ही नहीं रहा है।
उज्जैन. अपने स्वार्थ के चलते हम अपनी आने वाली पीढ़ी को सिर्फ स्वार्थी होने की सीख दे रहे हैं ना कि लोगों की मदद करने की। भविष्य के लिए ये स्थिति तकलीफदेह साबित हो सकती है। Asianetnews Hindi Life Management सीरीज चला रहा है। इस सीरीज के अंतर्गत आज हम आपको ऐसा प्रसंग बता रहे हैं जिसका सार यही है हमें दूसरों की मदद करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
जब गुरु ने ली अपने शिष्यों की परीक्षा
किसी गांव में एक आश्रम था। वहां गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे। उस दिन वर्षों से शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों की शिक्षा पूर्ण हो रही थी और सभी बड़े ही उत्साह से अपने-अपने घर लौटने की तैयारी में थे। जाने के पहले गुरु ने सभी शिष्यों को अपने पास बुलाया।
सभी शिष्य उनके सामने आकर एकत्रित हो गए। गुरु ने सभी शिष्यों से कहा कि “आज आप सबका इस गुरूकुल में अंतिम दिन है। मेरी इच्छा है कि यहाँ से जाने से पहले आप सब एक दौड़ में सम्मिलित हो। ये एक बाधा दौड़ है, जिसमें आपको विभिन्न प्रकार की बाधाओं का सामना करना होगा। क्या आप सब इस दौड़ में सम्मिलित होने के लिए तैयार है?”
“हम तैयार है।” सभी शिष्य एक स्वर में बोले।
दौड़ प्रारंभ हुई। सभी तेजी से भागने लगे। समस्त बाधाओं को पार करने के बाद वे अंत में वे एक सुरंग में पहुँचे। सुरंग में बहुत अंधेरा था, जब शिष्यों ने सुरंग में भागना प्रारंभ किया तो पाया कि उसमें जगह-जगह नुकीले पत्थर पड़े हुए है। वे पत्थर उनके पांव में चुभने लगे और उन्हें असहनीय पीड़ा होने लगी, लेकिन जैसे-तैसे दौड़ समाप्त कर वे सब वापस गुरु के सामने एकत्रित हो गए।
गुरु के उनसे प्रश्न किया, “शिष्यों, आप सबमें से कुछ लोंगों ने दौड़ पूरी करने में अधिक समय लिया और कुछ ने कम, भला ऐसा क्यों?”
उत्तर में एक शिष्य बोला, “गुरुवर! हम सभी साथ-साथ ही दौड़ रहे थे. लेकिन सुरंग में पहुँचने के बाद स्थिति बदल गई। कुछ लोग दूसरों को धक्का देकर आगे निकलने में लगे हुए थे, तो कुछ लोग संभल-संभल कर आगे बढ़ रहे थे। कुछ तो ऐसे भी थे, जो मार्ग में पड़े पत्थरों को उठा कर अपनी जेब में रख रहे थे, ताकि बाद में आने वालों को कोई पीड़ा न सहनी पड़े, इसलिए सबने अलग-अलग समय पर दौड़ पूरी की।”
उस शिष्य की बात सुनने के बाद गुरु ने कहा कि “ठीक है। अब वे लोग सामने आएं, जिन्होंने मार्ग में से पत्थर उठाये हैं और वे पत्थर मुझे दिखायें।”
गुरु की बात सुनकर कुछ शिष्य सामने आए और अपनी जेबों से पत्थर निकालने लगे, लेकिन उन्होंने देखा कि जिसे वे पत्थर समझ रहे थे, वास्तव में वे बहुमूल्य हीरे थे। सभी आश्चर्यचकित होकर गुरु की ओर देखने लगे।
“ मैं जानता हूं कि आप लोग इन हीरों को देखकर अचरज में पड़ गए हैं। इन हीरों को मैंने ही सुरंग में डाला था। ये हीरे उन शिष्यों को मेरा पुरुस्कार है, जिन्होंने दूसरों के बारे में सोचा। शिष्यों यह दौड़ जीवन की भागमभाग को दर्शाती है, जहाँ हर कोई कुछ-न-कुछ पाने के लिए भाग रहा है, किन्तु अंत में समृद्ध वही होता है, जो इस भागमभाग में भी दूसरों के बारे में सोचता है और उनका भला करता है।
लाइफ मैनेजमेंट
आज के समय में हर कोई दूसरे से आगे निकलना चाहता है, इसके लिए वो तमाम तरह के हथकंडे भी अपनाता है। लेकिन ऐसी सफलता का क्या अर्थ जब साथ देने वाला ही कोई न हो। इसलिए आगे बढ़ने के बारे में सोचें, लेकिन दूसरों के हितों का त्याग न करें।
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