Maghi Purnima 2022: इस तीर्थ को कहते हैं छत्तीसगढ़ का “प्रयाग”, एक भक्त के नाम से जाना जाता है ये स्थान

Published : Feb 15, 2022, 12:08 PM ISTUpdated : Feb 15, 2022, 12:09 PM IST
Maghi Purnima 2022: इस तीर्थ को कहते हैं छत्तीसगढ़ का “प्रयाग”, एक भक्त के नाम से जाना जाता है ये स्थान

सार

इस बार 16 फरवरी, बुधवार को माघी पूर्णिमा (Maghi Purnima 2022) है। इस मौके पर देश के कई हिस्सों में धार्मिक कार्यक्रम होते हैं। ऐसा ही एक विशाल उत्सव छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के गरियाबंद जिले में स्थित राजिम (Rajim) नामक तीर्थ स्थान पर भी होता है। इसे राजिम मेला (Rajim Mela 2022) या राजिम कुंभ (Rajim Kumbh 2022) भी कहा जाता है।

उज्जैन. माघी पूर्णिमा (Maghi Purnima2022) से शुरू होकर राजिम मेला महाशिवरात्रि (Mahashivaratri 2022) तक चलता है। राजिम में लगने वाला माघ पूर्णिमा का मेला संपूर्ण भारत में प्रसिद्ध है। इस मेले में देश के लाखों श्रृद्धालु जुटते हैं और पवित्र नदियों के संगम में स्नान करते हैं। इसे मेले को अब राजिम माघी पुन्नी मेला (Rajim Maghi Punni Mela 2022) कहा जाता है। मान्यता है कि जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक संपूर्ण नहीं होती, जब तक भक्त राजिम की यात्रा नहीं कर लेते।

इसलिए कहते हैं छत्तीसगढ़ का प्रयाग
राजिम महानदी के तट पर स्थित प्रसिद्ध तीर्थ है। राजिम में महानदी के साथ सोंढूर और पैरी नदी का संगम होता है। इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का प्रयाग भी कहते हैं। यहां कई प्राचीन मंदिर भी हैं, जो यहां का धार्मिक महत्व बढ़ाते हैं। इस मेले का मुख्य आकर्षण संगम तट पर स्थित कुलेश्वर महादेव का मंदिर है। इस मंदिर का संबंध राजिम की भक्तिन माता से है। यहां भक्तिन माता के त्याग की कथा प्रचलित है और भगवान कुलेश्वर महादेव का आशीर्वाद इस क्षेत्र को प्राप्त है। दोनों ही कारणों से राजिम मेला आयोजित होता है।

पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक तीन स्नान
रायपुर से महज 50 किलोमीटर दूर स्थित त्रिवेणी संगम राजिम में 15 दिनों तक मेले की धूम रहेगी। 16 फरवरी को पुन्नी मेला का शुभारंभ होगा जो 1 मार्च को महाशिवरात्रि तक चलेगा। 15 दिवसीय मेले के दौरान पहला स्नान 16 फरवरी को दूसरा 23 फरवरी को और तीसरा स्नान 1 मार्च महाशिवरात्रि के दिन होगा।

ये है भक्तिन माता की कथा
- प्राचीन समय में राजिम का नाम पद्मावती पुरी था। यहां एक व्यक्ति जिसका नाम धर्मदास था अपनी बेटी राजिम के साथ रहता था। धर्मदास तेल निकालने का व्यापार करता था। उसकी बेटी राजिम भगवान विष्णु की परम भक्त थी। 
- एक दिन राजिम एक विशाल शिला घर लेकर आई, उसे उसने धानी (तेल निकालने की मशीन) के ऊखल पर रख दिया। उखल लकड़ी का बना होता है, उसके भारीपन और रगड़ से ही तेल निकलता है। इसके बाद उसके व्यापार में वृद्धि होने लगी। 
- उस समय वहां का राजा जगपाल हुआ करता था, वह भी विष्णु भक्त था। एक दिन भगवान ने उसे सपने में दर्शन दिए और कहा कि “तुम्हारे राज्य में राजिम नाम की एक लड़की रहती है, उसी के घर में स्थित शिला में मेरा निवास है। तुम उसे वहां से लाकर मेरी प्रतिष्ठा करो, लेकिन राजिम को कोई कष्ट नहीं होना चाहिए।”
- अगले ही दिन राजा जगपाल राजिम के घर पहुंच गए। उन्होंने उस शिला के बराबर सोने देने की बात कही, जिसे राजिम के पिता ने स्वीकार कर ली। एक पलड़े पर उस शिला को और दूसरे पर सोने रखा जाने लगा। खजाने का पूरा सोना रखने के बाद भी उस शिला के बराबर नहीं हुआ। ये देख राजा को बहुत दुख हुआ।
- उसी रात राजा को एक बार फिर भगवान ने दर्शन दिए और कहा कि “तुम्हें अपने धन पर बहुत अहंकार था, इसलिए ऐसा हुआ। कल तुम दूसरे पलड़े में तुलसी के पत्ते रख देना।” राजा ने अगले दिन यही किया और शिला को मंदिर में स्थापित कर दिया। लोग राजिम को भक्तिन माता के नाम से पुकारने लगे।
- एक दिन भक्तिन माता राजीव लोचन मंदिर के बाहर ध्यान लगाकर बैठी थी और उसी अवस्था में उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई। राजीव लोचन मंदिर के परिसर में ही भक्तिन माता का मंदिर बनाया और इस स्थान का नाम बदलकर राजिम रख दिया गया। 

 

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