महाभारत हिंदू संस्कृति की एक अमूल्य धरोहर है। शास्त्रों में इसे पांचवा वेद भी कहा गया है।
उज्जैन. आज हम आपको महाभारत की ऐसी रोचक कथा के बारे मे बता रहे हैं, जिसमें अर्जुन अपने पुत्र के हाथों मारे गए थे और बाद में एक मणि के प्रभाव से पुनर्जीवित हो गए थे। इस रोचक प्रसंग इस प्रकार है-
पांडवों ने किया था अश्वमेध यज्ञ
- महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया। अर्जुन को घोड़े का रक्षक बनाया गया। वह घोड़ जहां भी जाता, अर्जुन उसके पीछे जाते। यज्ञ का घोड़ा घुमते-घुमते मणिपुर पहुंच गया। यहां की राजकुमारी चित्रांगदा अर्जुन की पत्नी थी और उनके पुत्र का नाम बभ्रुवाहन था।
- बभ्रुवाहन ही उस समय मणिपुर का राजा था। जब बभ्रुवाहन को अपने पिता अर्जुन के आने का समाचार मिला तो उनका स्वागत करने के लिए वह नगर के द्वार पर आया। लेकिन अर्जुन ने उसे युद्ध करने के लिए ललकारा।
- अर्जुन और बभ्रुवाहन में भयंकर युद्ध होने लगा। अपने पुत्र का पराक्रम देखकर अर्जुन बहुत प्रसन्न हुए। बभ्रुवाहन ने बिना परिणाम पर विचार कर उसने एक तीखा बाण अर्जुन पर छोड़ दिया।
- उस बाण को चोट से अर्जुन बेहोश होकर धरती पर गिर पड़े। बभ्रुवाहन भी उस समय तक बहुत घायल हो चुका था, वह भी बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा।
तभी वहां बभ्रुवाहन की माता चित्रांगदा भी आ गई।
- चित्रांगदा ने देखा कि उस समय अर्जुन के शरीर में जीवित होने के कोई लक्षण नहीं दिख रहे थे। अपने पति को मृत अवस्था में देखकर वह फूट-फूट कर रोने लगी। उसी समय बभ्रुवाहन को भी होश आ गया।
- जब बभ्रुवाहन ने देखा कि उसने अपने पिता की हत्या कर दी है तो वह भी शोक करने लगा। अर्जुन की मृत्यु से दुखी होकर चित्रांगदा और बभ्रुवाहन दोनों ही आमरण उपवास पर बैठ गए।
- तभी वहां नागकन्या उलूपी (ये भी अर्जुन की पत्नी थीं) आ गई। नागकन्या उलूपी ने संजीवन मणि के प्रभाव से अर्जुन को पुनर्जीवित कर दिया। अर्जुन द्वारा पूछने पर उलूपी ने बताया कि यह मेरी ही मोहिनी माया थी।
- उलूपी ने बताया कि भीष्म का वध करने के कारण वसु (एक प्रकार के देवता) आपको श्राप देना चाहते थे। वसुओं से प्रार्थना करने पर उन्होंने बताया कि अगर मणिपुर का राजा बभ्रुवाहन अर्जुन का वध कर देगा तो अर्जुन को अपने पाप से छुटकारा मिल जाएगा।
- उलूपी ने बताया कि आपको वसुओं के श्राप से बचाने के लिए ही मैंने यह मोहिनी माया दिखलाई थी। इस प्रकार पूरी बात जान कर अर्जुन, बभ्रुवाहन और चित्रांगदा भी प्रसन्न हो गए।