श्रीमद्भागवत महापुराण हिंदू धर्म ग्रंथों में बहुत महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। इसमें खुद भगवान कृष्ण ने ज्ञान और नीति के कई उपदेश दिए हैं।
उज्जैन. श्रीमद्भागवत महापुराण में भगवान कृष्ण ने 5 ऐसे लोगों के बारे में बताया है, जिनके बारे में बुरा सोचने पर मनुष्य का ही नुकसान होता है। इन 5 लोगों का अपमान करने पर मनुष्य को खुद ही इसके दुष्परिणाम झेलना पड़ते हैं।
श्लोक-
यदा देवेषु वेदेषु गोषु विप्रेषु साधुषु।
धर्मो मयि च विद्वेषः स वा आशु विनश्यित।।
अर्थात- जो व्यक्ति देवताओं, वेदों, गौ, ब्रह्माणों-साधुओं और धर्म के कामों के बारे में बुरा सोचता है, उसका जल्दी ही नाश हो जाता है।
1. देवताओं से दुश्मनी ही बनी थी रावण के विनाश का कारण
रावण सभी देवताओं को अपना शत्रु मानता था। वह एक-एक करके सभी देवताओं को पीड़ा देने लगा था। उसके इसी व्यवहार और घमण्ड ही उसके नाश का कारण बना । इसलिए कहा जाता है कि किसी को भी देवताओं के लिए मन में द्वेष की भावना नहीं आने देना चाहिए। चाहे किसी भी परिस्थिति का सामना क्यों न करना पड़ रहा हो, लेकिन हमेशा भगवान पर विश्वास रखना चाहिए।
2. वेदों का अपमान बना कई असुरों की मृत्यु का कारण
हर मनुष्य को अपने धर्म ग्रंथों और धर्मिक पुस्तकों का सम्मान करना चाहिए। रोज अपने दिन की शुरुआत कोई न कोई धार्मिक पुस्तक या ग्रंथ पढ़ कर ही करनी चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य के अपने हर काम में सफलता जरूर मिलती है। कई असुरों ने भगवान ब्रह्मा से वेदों को छिनने और उन्हें नष्ट करने की भी कोशिश की। जिन-जिन असुरों ने वेदों का सम्मान नहीं किया, उन्हें खुद भगवान मे दण्ड दिया है।
3. गायों का अपमान करने की वजह से ही हुई थी बलासुर की मृत्यु
जो मनुष्य गायों का सम्मान नहीं करता, उन्हें पीड़ा देता है, वह भी राक्षस के समान ही माना जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार, जो मनुष्य रोज सुबह गाय को भोजन या चारा देता है और उनकी पूजा करता है, उसे धन-संपत्ति के साथ-साथ मान-सम्मान भी प्राप्त होता है।
4. ऋषि का अपमान करने पर मिला था दुर्योधन को श्राप
सभी लोगों को ऋषियों और साधुओं का हमेशा सम्मान करना चाहिए। उनकी दी गई सलाह का पालन अपने जीवन में करना चाहिए। ऋषियों और साधुओं के मार्गदर्शन से मनुष्य की हर कठिनाई आसान हो जाती है और वह किसी भी मुसीबत का सामना बहुत ही आसानी से कर लेता है।
5. धर्म-कर्मों के बारे में बुरी सोच से मिली अश्वत्थामा को पीड़ा
अश्वत्थामा गुरु द्रोण का पुत्र था, लेकिन उसका मन हमेशा ही अधर्म के कामों में लगा रहता था। वह हमेशा से ही पांडवों को अपना शत्रु और दुर्योधन को अपना मित्र मानता था। इसी वजह से उसने दुर्योधन के साथ मिलकर जीवनभर अधर्म के साथ दिया और अधर्म ही करता रहा। धर्म की निंदा करने और अधर्म का साथ देने की वजह से ही भगवान कृष्ण ने उसे दर-दर भटकने और उसकी मुक्ति न होने का श्राप दिया था। जो मनुष्य धर्म कामों को छोटा मान कर, गलत कामों में अपना मन लगाता है, वह हमेशा ही अपना नुकसान करता है।