वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन माता सीता का प्राकट्य हुआ था। इसे पर्व को जानकी नवमी भी कहते हैं। इस बार यह पर्व 2 मई, शनिवार को है।
उज्जैन. वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी पर पुष्य नक्षत्र में जब राजा जनक संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए भूमि जोत रहे थे, उसी समय उन्हें पृथ्वी में दबी हुई एक बालिका मिली। जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को सीता कहते हैं। इसलिए उस बालिका का नाम सीता रखा गया।
इस दिन वैष्णव संप्रदाय के भक्त माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजा करते हैं। ऐसा कहते हैं जो भी इस दिन व्रत रखता व श्रीराम सहित माता सीता का पूजा करता है। उसे पृथ्वी दान का फल, सोलह महान दानों का फल, सभी तीर्थों के दर्शन का फल अपने आप मिल जाता है और उसकी हर इच्छा पूरी हो सकती है। इसलिए इस दिन व्रत अवश्य करना चाहिए।
सीता नवमी पर ऐसे करें पूजा
सीता नवमी पर व्रती (व्रत करने वाला) को सुबह जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और इसके बाद माता जानकी को प्रसन्न करने के लिए व्रत व पूजा का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद एक चौकी पर सीतारामजी सहित जनकजी, माता सुनयना, कुल पुरोहित शतानंदजी, हल और पृथ्वी माता की प्रतिमा या चित्र स्थापित करके उनकी पूजा करनी चाहिए। सबसे पहले भगवान श्रीगणेश एवं माता अंबिका की पूजा करके माता जानकी की पूजा करनी चाहिए। पूजा में सबसे पहले ये ध्यान मंत्र बोलना चाहिए-
माता जानकी का ध्यान-
ताटम मण्डलविभूषितगण्डभागां,
चूडामणिप्रभृतिमण्डनमण्डिताम्।
कौशेयवस्त्रमणिमौक्तिकहारयुक्तां,
ध्यायेद् विदेहतनयां शशिगौरवर्णाम्।।
पिता जनक का ध्यान-
देवी पद्मालया साक्षादवतीर्णा यदालये।
मिथिलापतये तस्मै जनकाय नमो नम:।।
माता सुनयना का ध्यान-
सीताया: जननी मातर्महिषी जनकस्य च।
पूजां गृहाण मद्दतां महाबुद्धे नमोस्तु ते।।
कुल पुरोहित शतानंदजी का ध्यान-
निधानं सर्वविद्यानां विद्वत्कुलविभूषणम्।
जनकस्य पुरोधास्त्वं शतानन्दाय ते नम:।।
हल का ध्यान-
जीवनस्यखिलं विश्वं चालयन् वसुधातलम्।
प्रादुर्भावयसे सीतां सीत तुभ्यं नमोस्तु ते।।
पृथ्वी का ध्यान-
त्वयैवोत्पदितं सर्वं जगतेतच्चराचरम्।
त्वमेवासि महामाया मुनीनामपि मोहिनी।।
त्वदायत्ता इमे लोका: श्रीसीतावल्लभा परा।
वंदनीयासि देजवानां सुभगे त्वां नमाम्यहम्।।
इसके बाद पंचोपचार से सभी की पूजा करनी चाहिए। अंत में इस मंत्र से आरती करना चाहिए-
कदलीगर्भसम्भूतं कर्पूरं च प्रदीपितम्।
आरार्तिक्यमहं कुर्वे पश्य मे वरदा भव।।
परिकरसहित श्रीजानकीरामाभ्यां नम:।
कर्पूरारार्तिक्यं समर्पयामि।।
अंत में फूल चढ़ाते हुए और क्षमा याचना करके जानकी स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।