भारतीय संस्कृति में पर्व एवं त्योहारों की एक समृद्ध परंपरा है। पर्युषण (Paryushana 2021) इसी परंपरा में जैन धर्म का एक महान पर्व है। पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है- चारों ओर से सिमट कर एक स्थान पर निवास करना या स्वयं में वास करना। इस अवधि में व्यक्ति आधि, व्याधि और उपाधि की चिकित्सा कर समाधि तक पहुंच सकता है।
उज्जैन. श्वेतांबर परंपरा के जैन मतावलंबी 3 से 10 सितंबर तक व दिगंबर परंपरा के मतावलंबी इसे 10 से 19 सितंबर तक यह महापर्व मनाएंगे। पर्युषण पर्व (Paryushana 2021) के दौरान जैन साधना पद्धति को अधिकाधिक जीने का प्रयास किया जाता है। आगे जानिए इस पर्व से जुड़ी खास बातें…
- पर्युषण (Paryushana 2021) का अर्थ है परि यानी चारों ओर से, उषण यानी धर्म की आराधना। श्वेतांबर और दिगंबर समाज के पर्युषण पर्व भाद्रपद मास में मनाए जाते हैं। श्वेतांबर के व्रत समाप्त होने के बाद दिगंबर समाज के व्रत प्रारंभ होते हैं।
- यह पर्व महावीर स्वामी के मूल सिद्धांत अहिंसा परमो धर्म, जिओ और जीने दो की राह पर चलना सिखाता है तथा मोक्ष प्राप्ति के द्वार खोलता है। इस पर्वानुसार- 'संपिक्खए अप्पगमप्पएणं' अर्थात आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो।
- पर्युषण (Paryushana 2021) के 2 भाग हैं- पहला तीर्थंकरों की पूजा, सेवा और स्मरण तथा दूसरा अनेक प्रकार के व्रतों के माध्यम से शारीरिक, मानसिक व वाचिक तप में स्वयं को पूरी तरह समर्पित करना। इस दौरान बिना कुछ खाए और पिए निर्जला व्रत करते हैं।
- श्वेतांबर समाज 8 दिन तक पर्युषण पर्व मनाते हैं जबकि दिगंबर 10 दिन तक मनाते हैं जिसे वे 'दसलक्षण' कहते हैं। ये दसलक्षण हैं- क्षमा, मार्दव, आर्नव, सत्य, संयम, शौच, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य।
- इन दिनों साधुओं के लिए 5 कर्तव्य बताए गए हैं- संवत्सरी, प्रतिक्रमण, केशलोचन, तपश्चर्या, आलोचना और क्षमा-याचना। गृहस्थों के लिए भी शास्त्रों का श्रवण, तप, अभयदान, सुपात्र दान, ब्रह्मचर्य का पालन, आरंभ स्मारक का त्याग, संघ की सेवा और क्षमा-याचना आदि कर्तव्य कहे गए हैं।
- पर्युषण (Paryushana 2021) पर्व के समापन पर विश्व-मैत्री दिवस अर्थात संवत्सरी पर्व मनाया जाता है। अंतिम दिन दिगंबर उत्तम क्षमा तो श्वेतांबर मिच्छामि दुक्कड़म् कहते हुए लोगों से क्षमा मांगते हैं।