जैन धर्म की साधना के चातुर्मास को बहुत ही खास माना गया है। इन चार महीनों में मुनिजन एक ही जगह पर रहकर धर्मराधना और तप करते हैं। इस दौरान संकल्प का अवसर पर्यूषण पर्व भी मनाया जाता है। इसे पर्वराज कहा गया है।
उज्जैन. पयुर्षण पर्व से नई चेतना और स्फूर्ति का संचार होता है। इसलिए इसे खुद पर ही जीत हासिल करने के साथ ही खुद को नई राह देने का पर्व कहा गया है। इस बार श्वेतांबर पंथ के पर्युषण पर्व 4 सितंबर 2021 शनिवार से शुरू हो गए हैं। इसके बाद दिगंबर समाज का पर्युषण पर्व 10 से 19 सितंबर तक रहेंगे।
ये 18 दिन होते हैं बहुत खास
कुल मिलाकर 18 दिन तक जैन धर्म की आराधना के खास दिन होते हैं। इस दौरान 24 तीर्थंकरों के दिए गए सिद्धांतों से मोक्ष पाने और अपनी इंद्रियों पर जीत हासिल करने के लिए तप और आराधना की जाती है। वहीं दशलक्षण पर्व के आखिरी दिन श्वेताम्बर जैन समाज मिच्छामी दुक्कड़म और दिगंबर जैन समाज मन, वचन और कर्म से जाने-अनजाने में हुई गलतियों की माफी मांगते है। इसे विश्वमैत्री दिवस भी कहते हैं।
विकारों पर जीत पाना ही लक्ष्य
पर्युषण पर्व के दौरान खान-पान और विचारों में बदलाव होने से मन सदभावनाओं से जुड़ता है। विकारों पर जीत पाना यानी विकृति का विनाश करना ही इस पर्व का मकसद होता है। इस दौरान क्षमा-विनम्रता, सरलता, संतोष, सत्य, संयम, तप, त्याग और ब्रह्मचर्य जैसे आध्यात्मिक मानवीय गुणों की साधना की जाती है। उपवास करके मन और शरीर को एकाग्र करने की प्रक्रिया व्रतों को महत्वपूर्ण बनाती है।
5 पापों से बचने के लिए करते हैं तप
जैन धर्म में हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह इन 5 पापों से बचने और मुक्ति पाने पर जोर दिया जाता है। पर्युषण पर्व के दौरान इन पापों से पूरी तरह बचने की कोशिश के साथ ही तप किया जाता है। ये तप क्रोध, मोह, माया, लोभ से बचने के लिए किया जाता है। ताकि जीवन में सात्विकता बढ़े। जैन धर्म के मुताबिक पंचमी तिथि शांति समता और समृद्धि की प्रथम तिथि है। इसलिए इस तिथि को बहुत खास माना गया है।
ये हैं जैन धर्म के 3 मत
जैन धर्म के प्रमुख 3 मत हैं। इनमें दिगंबर जैन, श्वेतांबर जैन और तारण पंथ होते हैं। दिगंबर मत में तेरह पंथी और बीस पंथी, श्वेतांबर में मूर्तिपूजक और स्थानकवासी प्रमुख हैं। श्वेतांबर परंपरा के मुताबिक उनके व्रत 8 दिन तक किए जाते हैं और दिगंबरों में 10 दिनों के व्रत का महत्व है।
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