कौन थे संत रामानुजाचार्य, 1400 करोड़ की लागत से बनाया जा रहा जिनका मंदिर, 120 किलो सोने से बनाई है प्रतिमा

सनातन धर्म में समय-समय पर अनेक संत हुए, जिन्होंने समाज को सही राह दिखाई और मानवता के नए-नए सिद्धांत दिए। ऐसे ही एक संत थे रामानुजाचार्य (Sant Ramanujacharya)। इन्होंने ही सबसे पहले समाज में समानता का संदेश दिया था। समाज में उनके योगदान को आज तक वो स्थान नहीं मिल पाया, जिसके वो अधिकारी थे।
 

उज्जैन. हैदराबाद (Hyderabad) के निकट श्रीराम नगर (Sriram Nagar) में इनकी 216 फीट ऊंची प्रतिमा बनाकर स्थापित की गई है। इस प्रतिमा की लागत 400 करोड़ बताई जा रही है, जो अष्टधातु से निर्मित है। साथ ही इसी स्थान पर संत रामानुजाचार्य की एक अन्य प्रतिमा भी 120 किलो सोने से बनाई गई है, जिसकी स्थापना मंदिर के गर्भगृह में की जाएगी। वैष्णव संप्रदाय के संत चिन्ना जीयर स्वामी की देखरेख में पूरे हुए इस प्रोजेक्ट पर अब तक 1400 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। इस प्रतिमा का अनावरण 5 फरवरी, शनिवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) द्वारा किया जाएगा। आगे जानिए कौन थे संत रामानुजाचार्य...

कौन थे संत रामानुजाचार्य?

वैष्णव संत रामानुजाचार्य का जन्म सन 1017 में तमिलनाड़ु में हुआ था। उन्होंने कांची में अलवार यमुनाचार्य से दीक्षा ली थी। श्रीरंगम के यतिराज नाम के संन्यासी से उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली। पूरे भारत में घूमकर उन्होंने वेदांत और वैष्णव धर्म का प्रचार किया। उन्होंने कई संस्कृत ग्रंथों की भी रचना की। उसमें से श्रीभाष्यम् और वेदांत संग्रह उनके सबसे प्रसिद्ध ग्रंथ रहे। 120 वर्ष की आयु में 1137 में उन्होंने देहत्याग किया। रामानुजाचार्य पहले संत थे, जिन्होंने भक्ति, ध्यान और वेदांत को जाति बंधनों से दूर रखने की बात की। धर्म, मोक्ष और जीवन में समानता की पहली बात करने वाले भी संत रामानुजाचार्य ही थे।

ये 3 काम करने के लिया था संकल्प
गुरु की इच्छानुसार रामानुजाचार्य ने तीन विशेष काम करने का संकल्प लिया था - ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबन्धम् की टीका लिखना। मैसूर के श्रीरंगम् से चलकर रामानुज शालिग्राम नामक स्थान पर रहने लगे। रामानुज ने उस क्षेत्र में बारह वर्ष तक वैष्णव धर्म का प्रचार किया। उसके बाद तो उन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिये पूरे भारतवर्ष का ही भ्रमण किया। वैष्णव आचार्यों में प्रमुख रामानुजाचार्य की शिष्य परम्परा में ही रामानन्द हुए, जिनके शिष्य कबीर, रैदास और सूरदास थे। रामानुज ने वेदान्त दर्शन पर आधारित अपना नया दर्शन विशिष्ट अद्वैत वेदान्त लिखा था।


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