संकष्टी चतुर्थी 27 जून को, इस दिन करते हैं श्रीगणेश के इस विशेष रूप की पूजा, जानिए इस व्रत का महत्व

हिंदू पंचांग के अनुसार हर महीने में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस बार यह व्रत 27 जून, रविवार को है।

Asianet News Hindi | Published : Jun 26, 2021 3:14 AM IST / Updated: Jun 26 2021, 10:54 AM IST

उज्जैन. संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश के कृष्णपिंगाक्ष रूप की पूजा और चंद्र देवता को अर्घ्य देकर उपासना करने का विधान है। ऐसा करने से हर तरह के संकट दूर हो सकते हैं।

गणेश पुराण में बताया है ये व्रत
गणेश पुराण में आषाढ़ महीने की संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में बताया गया है। कहा गया है कि आषाढ़ महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेशजी की पूजा और व्रत करना चाहिए और इस व्रत में गणेश जी के कृष्णपिंगाक्ष रूप की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से हर तरह के संकट दूर हो जाते हैं।

कैसा होता है कृष्णपिंगाक्ष रूप?
ये नाम कृष्ण पिंग और अक्ष, इन शब्दों से बना है। इनका अर्थ कुछ ऐसे समझ सकते हैं। कृष्ण यानी सांवला, पिंग यानी धुएं के समान रंग वाला और अक्ष का मतलब होता है आंखें। भगवान गणेश का ये रूप प्रकृति पूजा के लिए प्रेरित करता है। सांवला पृथ्वी के संदर्भ में है, धूम्रवर्ण यानी बादल। यानी पृथ्वी और मेघ जिसके नेत्र हैं। वो शक्ति जो धरती से लेकर बादलों तक जो कुछ भी है, उसे पूरी तरह देख सकती है। वो शक्ति हमें लगातार जीवन दे रही है। उन्हें प्रणाम करना चाहिए।

इस व्रत का महत्व
चतुर्थी पर चन्द्र दर्शन को बहुत ही शुभ माना जाता है। चन्द्रोदय के बाद ही व्रत पूर्ण होता है। मान्यता यह है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है उसकी संतान संबंधी समस्याएं भी दूर होती हैं। अपयश और बदनामी के योग कट जाते हैं। हर तरह के कार्यों की बाधा दूर होती है। धन तथा कर्ज संबंधी समस्याओं का समाधान होता है।

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