9 जनवरी को इस विधि से करें सफला एकादशी व्रत, घर में बनी रहेगी सुख-समृद्धि

धर्म ग्रंथों के अनुसार, पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 9 जनवरी, शनिवार को है। इस व्रत को करने से भगवान श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

Asianet News Hindi | Published : Jan 8, 2021 3:29 AM IST

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, पौष मास के कृष्णपक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहते हैं। इस बार यह एकादशी 9 जनवरी, शनिवार को है। इस व्रत को करने से भगवान श्रीकृष्ण बहुत प्रसन्न होते हैं और घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है। इस विधि से करें ये व्रत…

इस विधि से करें सफला एकादशी का व्रत...

- सफला एकादशी (9 जनवरी) की सुबह स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहनें। इसके बाद माथे पर चंदन लगाकर फूल, फल, गंगा जल, पंचामृत व धूप-दीप से भगवान लक्ष्मीनारायण की पूजा व आरती करें।
- भगवान श्रीहरि के विभिन्न नाम-मंत्रों को बोलते हुए भोग लगाएं। पूरे दिन निराहार (बिना कुछ खाए-पिए) रहें, शाम को दीपदान के बाद फलाहार कर सकते हैं। रात को जागरण करें।
- द्वादशी तिथि (10 जनवरी, रविवार) को भगवान की पूजा के बाद ब्राह्मणों को भोजन करवा कर जनेऊ एवं दक्षिणा देकर विदा करने के बाद ही स्वयं भोजन करें। इस प्रकार सफला एकादशी का व्रत करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।

ये है सफला एकादशी की कथा...

- चम्पावती नगर का राजा महिष्मत था। उसके पाँच पुत्र थे। महिष्मत का बड़ा बेटा लुम्भक हमेशा बुरे कामों में लगा रहता था। उसकी इस प्रकार की हरकतें देख महिष्मत ने उसे अपने राज्य से बाहर निकाल दिया।
- लुम्भक वन में चला गया और चोरी करने लगा। एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया किन्तु जब उसने अपने को राजा महिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया।

- फिर वह वन में लौट आया और वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा। वह एक पुराने पीपल के वृक्ष के नीचे रहता था। एक बार अंजाने में ही उसने पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत कर लिया।
- उसी समय आकाशवाणी हुई- राजकुमार लुम्भक! सफला एकादशी व्रत के प्रभाव से तुम राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे। आकाशवाणी के बाद लुम्भक का रूप दिव्य हो गया। तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी।
- उसने पंद्रह वर्षों तक सफलतापूर्वक राज्य का संचालन किया। उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। जब वह बड़ा हुआ तो लुम्भक ने राज्य अपने पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में रम गया। अंत में सफला एकादशी के व्रत के प्रभाव से उसने विष्णुलोक को प्राप्त किया।

ये है सफला एकादशी का महत्व...

- सफला एकादशी के महत्व का वर्णन भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर को बताया है। पद्मपुराण के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि- बड़े-बड़े यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना सफला एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है।
- सफला एकादशी का व्रत अपने नाम के अनुसार सभी कामों में मनोवांछित सफलता प्रदान करता है। इस एकादशी के व्रत से व्यक्ति को जीवन में उत्तम फल की प्राप्ति होती है और वह जीवन का सुख भोगकर मृत्यु पश्चात विष्णु लोक को प्राप्त होता है।
- यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है। जो भक्त सफला एकादशी का व्रत रखते हैं व रात्रि में जागरण एवं भजन कीर्तन करते हैं उन्हें श्रेष्ठ यज्ञों से जो पुण्य मिलता उससे कहीं बढ़कर फल की प्राप्ति होती है। ऐसा पुराणों में लिखा है।
 

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