Shani Jayanti 2022 Date: कब है शनि जयंती, क्यों मनाते हैं ये पर्व? जानिए इससे जुड़ी कथा व अन्य खास बातें

धर्म ग्रंथों के अनुसार, ज्येष्ठ मास की अमावस्या को शनि जयंती (Shani Jayanti 2022) का पर्व मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 30 मई, सोमवार को है। मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान शनिदेव का जन्म हुआ था।

Manish Meharele | Published : May 24, 2022 4:09 AM IST / Updated: May 24 2022, 10:41 AM IST

उज्जैन. ज्योतिष शास्त्र में शनिदेव को न्यायाधीश कहा जाता है क्योंकि ये देवता ही मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों का फल उन्हें प्रदान करते हैं। इस समय शनि ग्रह कुंभ राशि में है। ये स्वयं शनि की ही राशि है इसलिए ये कह सकते हैं शनि अपने ही घर में विराजमान है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार, जिन राशियों पर शनि की साढ़ेसाती और ढय्या का प्रभाव होता है, उन्हें अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आगे जानिए शनिदेव से जुड़ी खास बातें…

ये है शनि देव के जन्म से जुड़ी कथा
धर्म ग्रंथों के अनुसार, सूर्य देव का विवाह देव पुत्री संज्ञा से हुआ था। यमराज और यमुना इन्हीं की संतान हैं, लेकिन संज्ञा अधिक समय तक सूर्य के तेज सहन नहीं कर पाई तो उन्होंने अपनी छाया को सूर्य की सेवा में लगा दिया और स्वयं अपने पिता के घर चली गई। ये बात उन्होंने किसी को नहीं बताई। संज्ञा की छाया से ही शनिदेव का जन्म हुआ। छाया पुत्र होने के कारण ही शनि का रंग काला माना जाता है। शनिदेव को घोर तपस्या की और ग्रहों में न्यायाधीश का पद प्राप्त किया। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए ही शनि जयंती पर विशेष पूजा, उपाय आदि किए जाते हैं। 

किससे हुआ शनिदेव का विवाह?
पुराणों में लिखा है कि शनिदेव का विवाह चित्ररथ गंधर्व की पुत्री से हुआ था। एक बार उनकी पत्नी मिलन की इच्छा से उनके पास गई ,लेकिन शनिदेव भगवान की आराधना में लीन थे। जब शनिदेव की आराधना खत्म हुई, तब तक उनकी पत्नी का ऋतुकाल समाप्त हो चुका था। क्रोधित होकर शनिदेव की पत्नी ने उन्हें श्राप दे दिया कि अब आप जिसे भी देखेंगे, उसका कुछ न कुछ अहित हो जाएगा। यही कारण है कि शनिदेव की नजर को अशुभ माना गया है।

जब शनिदेव भी डरकर भागने लगे
पुराणों के अनुसार, भगवान शिव ने दधीचि मुनि के पुत्र पिप्पलाद के रूप में जन्म लिया। लेकिन उसके पहले ही शनि की दृष्टि के कारण दधीचि मुनि की मृत्यु हो गई।  बाद में जब ये बात पिप्पलाद को बता चली तो उन्होंने शनिदेव पर ब्रह्म दंड का प्रहार किया। ब्रह्मदंड उनके पैर पर आकर लगा, जिससे शनिदेव लंगड़े हो गए। तब देवताओं ने पिप्पलाद मुनि से शनिदेव को क्षमा करने के लिए कहा। पिप्पलाद मुनि ऐसा ही किया और वचन लिया कि जन्म से लेकर 16 साल तक की आयु तक वे शिवभक्तों को परेशान नहीं करेंगे।

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