Sita Navami 2022: सीता स्वयंवर में श्रीराम गए थे या नहीं? ग्रंथों में लिखी ये बातें आपको चौंका सकती हैं

धर्म ग्रंथों के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी (Sita Navami 2022) या जानकी जयंती (Janaki Jayanti 2022) कहते हैं। मान्यता है कि इसी तिथि पर भगवान श्रीराम की पत्नी देवी सीता धरती से प्रकट हुई थीं। इस बार ये पर्व 10 मई, मंगलवार को मनाया जाएगा।

उज्जैन. देवी सीता के जन्म का संपर्ण विवरण वाल्मीकि रामायण में बताया गया है। वेदों में भी देवी सीता के संबंध में बताया गया है। ऋग्वेद ने सीता को कृषि की देवी माना है। इस वेद में कृषि के देवताओं की प्रार्थना के लिए लिखे गए सूक्त में वायु, इंद्र आदि के साथ सीता की भी स्तुति की गई है। काठक ग्राह्यसूत्र में भी देवी सीता के नाम का उल्लेख मिलता है। आगे जानिए देवी सीता से जुड़ी कुछ रोचक बातें…
 

सीता स्वयंवर में नहीं गए थे श्रीराम
गोस्वामी तुलसीदास की श्रीरामचरित मानस के अनुसार भगवान श्रीराम ने सीता स्वयंवर में शिव धनुष को भंग कर सीता से विवाह किया, लेकिन वाल्मीकि रामायण में सीता स्वयंवर का वर्णन नहीं है। उसके अनुसार, एक ऋषि विश्वामित्र श्रीराम और लक्ष्मण को लेकर मिथिला पहुंचे। वहां राजा जनक ने उन सभी को सीता स्वयंवर के बारे में बताया कि किस तरह कोई भी राजा शिव धनुष को उठाने में असमर्थ रहा। तब ऋषि विश्वामित्र ने वह शिवधनुष देखने की इच्छा प्रकट की। शिव धनुष के आने पर उन्होंने श्रीराम को शिव धनुष उठाने को कहा जिसे उन्होंने खेल ही खेल में उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ाते समय वह टूट गया। प्रसन्न होकर राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता का विवाह श्रीराम से कर दिया।

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पूर्व जन्म में सीता ने दिया था रावण को श्राप
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, एक बार रावण पुष्पक विमान पर सवार होकर कहीं जा रहा था, तभी उसे एक रूपवान स्त्री दिखाई दी, उसका नाम वेदवती था। वह स्त्री भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए कठिन तप रही थी। रावण ने उसके बाल पकड़े और अपने साथ लंका ले जाने लगा। क्रोधित होकर उस तपस्विनी ने रावण को श्राप दिया कि एक स्त्री के कारण ही तेरी मृत्यु होगी, इतना कहकर वह अग्नि में समा गई। उसी स्त्री ने दूसरे जन्म में देवी सीता के रूप में जन्म लिया। 

सती अनुसुइया ने दिए कपड़े और आभूषण
वाल्मीकि रामायण के अनुसार, जब श्रीराम, सीता और लक्ष्मण वनवास में रह रहे थे, तब एक दिन वे ऋषि अत्रि के आश्रम में पहुंचे। वहां ऋषि ने सभी का स्वागत सत्कार किया। उसी समय सती अनुसूइया ने देवी सीता को दिव्य वस्त्र और आभूषण दिए। इसके बाद सती अनुसूइया ने सीता जी को पत्नी धर्म का उपदेश भी दिया था।

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