सुप्रीम कोर्ट ने लगाई जगन्नाथ रथयात्रा पर रोक, जानिए क्या है इस परंपरा से जुड़ी कथा

सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा के पुरी में 23 जून से शुरू होने वाली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा पर रोक लगा दी है।

Asianet News Hindi | Published : Jun 20, 2020 4:12 AM IST

उज्जैन. चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने कहा- अगर कोरोना के बीच हमने इस साल रथयात्रा की इजाजत दी तो भगवान जगन्नाथ हमें माफ नहीं करेंगे। मंदिर समिति ने पहले रथयात्रा को बिना श्रद्धालुओं के निकालने का फैसला लिया था। जानिए क्या है जगन्नाथ रथयात्रा से जुड़ी परंपरा और कथा-

क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ रथयात्रा?
- एक बार द्वारिका में भगवान श्रीकृष्ण रात्रि में सो रहे थे। समीप ही रुक्मिणी भी सो रही थीं। नींद के दौरान श्रीकृष्ण ने राधा के नाम बोला। सुबह होने पर रुक्मिणी ने यह बात अन्य पटरानियों को बताकर कहा कि हमारे इतने सेवा, प्रेम और समर्पण के बाद भी स्वामी राधा को याद करना नहीं भूलते।
- इस बात का रहस्य जानने के लिए सभी रानियां माता रोहिणी के पास गई और उनसे राधा और श्रीकृष्ण की लीला के बारे में जानना चाहा क्योंकि माता रोहिणी वृंदावन में राधा और श्रीकृष्ण की रास लीलाओं के बारे में बहुत अच्छे से जानती थी।
- रानियों के आग्रह और जिद करने पर माता ने यह शर्त रखी कि मैं जब तक श्रीकृष्ण-राधा के प्रसंग को सुनाऊं, तब तक कोई भी कक्ष के अंदर न आ पाए। इसके लिए श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा को द्वार पर निगरानी के लिए रखा गया।
- इसके बाद माता रोहिणी ने श्रीकृष्ण-राधा लीला पर अपनी बात शुरु की। कुछ समय बीतते ही सुभद्रा ने देखा कि उनके भाई बलराम और श्रीकृष्ण माता के कक्ष की ओर चले आ रहे हैं।
- तब सुभद्रा ने किसी बहाने माता के कक्ष में जाने से उन्हें रोका किंतु कक्ष के द्वार पर खड़े होने पर भी श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा को श्रीकृष्ण और राधा की रासलीला के प्रसंग सुनाई दे रहा था।
- तीनों राधिका के नाम और कृष्ण के प्रति अद्भुत प्रेम व भक्ति भावना को सुनकर इतने भाव विभोर हो गए कि श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के शरीर गलने लगे, उनके हाथ-पैर आदि अदृश्य हो गए।
- यह भी कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र ने गलकर लंबा आकार ले लिया। इसी दौरान वहां से देवर्षि नारद का गुजरना हुआ। वह भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के अलौकिक स्वरूप के दर्शन कर अभिभूत हो गए।
- किंतु तीनों नारद को देखकर अपने मूल स्वरूप में आ गए। यह सोचकर कि नारद ने संभवत: यह दृश्य न देखा हो। किंतु नारद मुनि ने तीनों से प्रार्थना की कि मैंने अभी आपके जिस स्वरूप के दर्शन किए हैं उसी स्वरूप के दर्शन कलयुग में सभी भक्तों को भी हो।
- तब भगवान श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा ने श्री नारद की विनय को मानकर ऐसा करना स्वीकार किया। यही कारण है कि धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं में भगवान जगन्नाथ को श्रीकृष्ण और राधा का दिव्य युगल स्वरुप मानकर उनके साथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की अधूरी बनी काष्ठ यानी लकड़ी की प्रतिमाओं के साथ रथयात्रा निकालने की परंपरा है।
 

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