यूं तो हमारे देश में श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण के लिए कई तीर्थ हैं, लेकिन उनमें से कुछ तीर्थ ऐसे भी हैं, जिनका वर्णन धर्म ग्रंथों में भी मिलता है।
उज्जैन (Ujjain). यूं तो हमारे देश में श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण के लिए कई तीर्थ हैं, लेकिन उनमें से कुछ तीर्थ ऐसे भी हैं, जिनका वर्णन धर्म ग्रंथों में भी मिलता है। आज हम आपको श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण के लिए ऐसे ही प्रसिद्ध 5 तीर्थ स्थानों के बारे में बता रहे हैं-
1- लोहागर ( राजस्थान)
श्राद्ध कर्म करने के लिए यूं तो अनेक तीर्थ प्रसिद्ध हैं, उन्हीं में से एक तीर्थ ऐसा भी है जिसकी रक्षा स्वयं ब्रह्माजी करते हैं, ऐसी धार्मिक मान्यता है। वह तीर्थ है- लोहागर। यह राजस्थान का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। यह स्थान पिंडदान और अस्थि विसर्जन के लिए भी जाना जाता है। मान्यता के अनुसार, जिस व्यक्ति का श्राद्ध यहां किया जाता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां का मुख्य तीर्थ पर्वत से निकलने वाली सात धाराएं हैं। यहां के प्रधान देवता सूर्य हैं। लोहागर की परिक्रमा भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की नवमीं तिथि से पूर्णिमा तक होती है।
कैसे पहुचें- पश्चिम रेलवे की एक लाइन राजस्थान में सवाई माधोपुर से लुहारू तक गई है। इसी लाइन पर सीकर या नवलगढ़ स्टेशन पड़ता है। यही लोहागर का नजदीकी स्टेशन है। यहां से तीर्थ स्थल तक जाने के लिए आसानी से साधन मिल जाते हैं।
2- गया (बिहार)
गया बिहार का दूसरा बड़ा शहर है। यह बिहार की सीमा से लगा फल्गु नदी के तट पर स्थित है। पितृ पक्ष के दौरान यहां रोज हजारों श्रद्धालु अपने पितरों का पिंडदान के लिये आते हैं। मान्यता है कि यहां फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृतात्मा को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। इसलिए गया को श्राद्ध, पिंडदान व तर्पण के लिए सर्वश्रेष्ठ स्थान माना गया है। इस तीर्थ का वर्णन रामायण में भी मिलता है। गया में पहले विविध नामों से 360 वेदियां थी, लेकिन उनमें से अब कुछ ही शेष बची हैं।
कैसे पहुचें- पूर्वी रेलवे पर गया मुख्य स्टेशन है। कलकत्ता से गया होकर दिल्ली तक सीधी ट्रेनें जाती हैं। पटना से भी गया तक रेलवे लाइन है। गया सड़क मार्ग से भी आसपास के सभी बड़े नगरों से जुड़ा हुआ है।
3- प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
जैसे ग्रहों में सूर्य है, वैसे ही तीर्थों में प्रयाग सर्वोत्तम है। यहां श्राद्ध कर्म कराने की बड़ी मान्यता है। प्रयाग का मुख्य कर्म है, मुंडन और श्राद्ध। त्रिवेणी संगम के पास निश्चित स्थान पर मुंडन होता है। यहां विधवा स्त्रियां भी मुंडन कराती हैं। प्रयाग में श्राद्धकर्म प्रमुख रूप से संपन्न कराए जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि जिस किसी भी पुण्यात्मा का तर्पण एवं अन्य श्राद्ध कर्म यहां विधि-विधान से संपन्न हो जाते हैं वह जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है।
कैसे पहुचें- प्रयाग जाने के लिए इलाहाबाद, नैनी, प्रयाग, झूसी स्टेशनों में से किसी भी एक पर अपनी सुविधानुसार उतरा जा सकता है। इनमें से इलाहाबाद स्टेशन जंक्शन है। इलाहाबाद में उत्तर रेलवे और मध्य रेलवे की लाइनें मिलती हैं। यहां से संगम ज्यादा दूर नहीं है। प्रयाग से बनारस, लखनऊ, रीवां, मिर्जापुर, जौनपुर को पक्की सड़कें जाती हैं। इसलिए सड़क मार्ग से भी प्रयाग पहुंचा जा सकता है।
4. ब्रह्मकपाल (उत्तराखंड)
ब्रह्मकपाल श्राद्ध कर्म के लिए पवित्र तीर्थ है। यहां पर तीर्थयात्री अपने पूर्वजों की शांति के लिए पिंडदान करते हैं। यह स्थान बद्रीनाथ धाम के समीप स्थित है। धार्मिक मान्यता है कि ब्रह्मकपाल में श्राद्ध कर्म करने के बाद पूर्वजों की आत्माएं तृप्त होती हैं और उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इसके बाद कहीं भी पितृ श्राद्ध और पिंडदान करने की जरूरत नहीं होती। इस तीर्थ के समीप ही अलकनंदा नदी बहती है। किवदंती यह भी है कि पांडवों ने भी यहां अपने परिजनों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान किया था।
कैसे पहुचें- ब्रह्मकपाल तीर्थ हिंदू धर्म के प्रमुख वैष्णव तीर्थ और चार धामों में से एक बद्रीनाथ के पास स्थित है। हरिद्वार, दिल्ली, बनारस, गोरखपुर आदि जगहों से बद्रीनाथ के लिए आसानी से बसें मिल जाती हैं।
5. पिण्डारक (गुजरात)
इस क्षेत्र का प्राचीन नाम पिण्डतारक है। यह स्थान गुजरात में स्थित द्वारिका से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। यहां एक सरोवर है। सरोवर के तट पर यात्री श्राद्ध करके दिए हुए पिंड सरोवर में डाल देते हैं। यहां कपालमोचन महादेव, मोटेश्वर महादेव और ब्रह्माजी के मंदिर हैं। साथ ही श्रीवल्लभाचार्य महाप्रभु की बैठक भी है। प्राचीन मान्यता है कि किसी समय यहां महर्षि दुर्वासा का आश्रम था। महर्षि दुर्वासा के वरदान के कारण ही इस स्थान पर पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है।
कैसे पहुचें- पिंडारक का निकटतम हवाई अड्डा जामनगर में है। द्वारिका ओखा ब्रॉड गेज रेलवे लाइन पर स्थित है जहाँ से राजकोट, अहमदाबाद और जामनगर के लिए रेल सेवा उपलब्ध है। इसके अलावा कुछ ट्रेन सूरत, वड़ोदरा, गोवा, कर्नाटक, मुंबई तथा केरल तक भी जाती हैं। द्वारका बस की यात्रा कई राज्य राजमार्गों द्वारा जुड़ा हुआ है।