पिंडदान के लिए प्रसिद्ध है ये तीर्थ, यहां आज भी मौजूद है देवी पार्वती द्वारा स्थापित वट वृक्ष

16 दिनों तक चलने वाले श्राद्ध पक्ष में लोग अपने घरों में तो पूजा आदि करते ही हैं, साथ ही पवित्र तीर्थों पर भी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान करते हैं।

Asianet News Hindi | Published : Sep 13, 2019 11:40 AM IST

उज्जैन. हमारे देश में अनेक ऐसे तीर्थ हैं जो पिंडदान, तर्पण आदि के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसा ही एक स्थान है उज्जैन का सिद्धनाथ तीर्थ। इसे प्रेतशीला तीर्थ भी कहा जाता है। यहां दूर-दूर से लोग अपने पितरों का तर्पण करने आते हैं। तीर्थ पुरोहित पंडा समिति के अध्यक्ष पं. राजेश त्रिवेदी के अनुसार, यहां लगभग 150 परिवारों से जुड़े 700 पुजारी तर्पण, श्राद्ध आदि करवाते हैं।

क्षिप्रा नदी के तट है ये स्थान
सिद्धनाथ तीर्थ उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में है। क्षिप्रा नदी के तट पर होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। इस स्थान पर एक विशाल बरगद का पेड़ है। इसे सिद्धवट कहा जाता है। प्रयाग और गया में जिस तरह अक्षयवट का महत्व माना जाता है उसी प्रकार उज्जैन में सिद्धवट है। मान्यता है इस पेड़ को स्वयं माता पार्वती ने लगाया था। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी स्थान पर भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का मुंडन भी हुआ था। स्कंद पुराण के अवंतिका खंड में भी इस तीर्थ का वर्णन मिलता है।

मुगलों ने कटवा दिया था वटवृक्ष
यहां लगे शिलालेखों से पता चलता है कि मुगलों ने इस तीर्थ को नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए। मुगल शासकों ने इस वटवृक्ष को कटवाकर उसके ऊपर लोहे के तवे जड़वा दिए, लेकिन वटवृक्ष उन लोहे के तवों को फोड़कर पुन: हरा-भरा हो गया।

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