Vaikuntha Chaturdashi 2021: आज रात भगवान विष्णु से मिलने जाएंगे महादेव, इस विधि से करें पूजा

इस बार 18 नवंबर, गुरुवार को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि है। इसे वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi 2021) कहते हैं। इस तिथि का धर्म ग्रंथों में विशेष महत्व बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि वैकुंठ चतुर्दशी की रात भगवान शिव, विष्णुजी से मिलने जाते हैं और उन्हें सृष्टि का भार सौंपते हैं। इस मान्यता के चलते कई मंदिरों में हरि-हर मिलन की परंपरा बनाई गई है, जिसे आज भी पूरी श्रृद्धा से निभाया जाता है।

Contributor Asianet | Published : Nov 17, 2021 4:29 PM IST

उज्जैन. मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी कहे जाने वाले उज्जैन में वैकुंठ चतुर्दशी (Vaikuntha Chaturdashi 2021) की रात परंपरागत भगवान महाकाल की सवारी निकाली जाती है जो गोपाल मंदिर तक आती है। यहां भगवान शिव और गोपालजी की प्रतिमाओं को आमने-सामने बैठाया जाता है। इसके बाद दोनों मंदिर के पुजारी कुछ खास वस्तुओं का आदान-प्रदान करते हैं और इस तरह ये परंपरा पूरी की जाती है। देश में अन्य स्थानों पर भी इस तरह की परंपराएं निभाई जाती हैं।

क्या है हरि-हर मिलन की परंपरा?
स्कंद, पद्म और विष्णुधर्मोत्तर पुराण के मुताबिक कार्तिक महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि पर भगवान शिव और विष्णुजी का मिलन करवाया जाता है। रात में दोनों देवताओं की महापूजा की जाती है। रात्रिजागरण भी किया जाता है। मान्यता है कि चातुर्मास खत्म होने के साथ भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागते हैं और इस मिलन पर भगवान शिव सृष्टि चलाने की जिम्मेदारी फिर से विष्णु जी को सौंपते हैं। भगवान विष्णु जी का निवास वैकुंठ लोक में होता है इसलिए इस दिन को वैकुंठ चतुर्दशी भी कहते हैं।

इस विधि से करें वैकुंठ चतुर्दशी की पूजा...
- वैकुंठ एकादशी की सुबह स्नान आदि से निपटकर दिनभर व्रत रखना चाहिए और रात में भगवान विष्णु की कमल के फूलों से पूजा करना चाहिए, इसके बाद भगवान शंकर की भी पूजा अनिवार्य रूप से करनी चाहिए।
- पूजा में इस मंत्र का जाप करना चाहिए-
विना यो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्।
वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।
- रात भर पूजा करने के बाद दूसरे दिन यानी कार्तिक पूर्णिमा (19 नवंबर, शुक्रवार) पर शिवजी और विष्णु भगवान का पुन: पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराकर स्वयं भोजन करना चाहिए। बैकुंठ चतुर्दशी का यह व्रत शैवों व वैष्णवों की पारस्परिक एकता का प्रतीक है।

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