वारूणी पर्व 9 अप्रैल को, इस दिन की जाती है जल के देवता वरुण की पूजा, ताकि गर्मी में न हो पानी की कमी

9 अप्रैल, शुक्रवार को चैत्र महीने की त्रयोदशी तिथि है। इस दिन शतभिषा नक्षत्र का भी संयोग बन रहा है। हिंदू कैलेंडर के पहले महीने में बनने वाले तिथि-नक्षत्र के इस शुभ संयोग पर वारूणी पर्व मनाया जाता है।

Asianet News Hindi | Published : Apr 8, 2021 3:42 AM IST

उज्जैन. धर्मसिंधु ग्रंथ के मुताबिक इस पर्व पर तीर्थ स्नान और दान के साथ शिव पूजा की परंपरा है। ऐसा करने से जाने-अनजाने हुए पाप खत्म हो जाते हैं और कई यज्ञों का फल भी मिलता है।

घर पर ही तीर्थ के जल से करें स्नान

वारुणी योग में गंगा, यमुना, नर्मदा, कावेरी, गोदावरी समेत अन्य पवित्र नदियों में स्नान और दान का बड़ा महत्व है। इस शुभ योग में हरिद्वार, इलाहाबाद, वाराणसी, उज्जैन, रामेश्वरम, नासिक आदि तीर्थों पर नदियों में नहा के भगवान शिव की पूजा की जाती है। इससे हर तरह के सुख मिलते हैं। वारुणी योग में भगवान शिव की पूजा से मोक्ष मिलता है। इस दिन मंत्र जप, यज्ञ, करने का बड़ा महत्व है। पुराणों में कहा गया है कि इस दिन किए गए दान का फल हजारों यज्ञों के जितना मिलता है। अगर पवित्र नदियों में नहीं नहा सके तो घर में ही पवित्र नदियों का पानी डालकर नहाएं।

भगवान वरूण की पूजा का दिन

चैत्र महीने के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि पर वारुणी पर्व होता है। ये पुण्य देने वाला पवित्र पर्व है। इस दिन भगवान वरुण यानी सभी तीर्थों, नदियों, सागरों, कुओं और ट्यूबेल की विशेष पूजा की जाती है। ऐसा करते हुए वरुण भगवान से प्रार्थना की जाती है कि गर्मियों में भी हमारे जलस्त्रोतों में पानी की कमी न रहे। इस दिन तीर्थों में गंगा स्नान और दान करने से कई सूर्यग्रहण में दिए दान के जितना फल मिलता है।

प्रदोष और वारूणी योग

त्रयोदशी तिथि यानी प्रदोष होने से इस शुभ संयोग में शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाकर बिल्वपत्र और मदार के फूल चढ़ाएं। इसके साथ ऋतुफल यानी मौसम के मुताबिक फल चढ़ाना चाहिए। शिवलिंग के पास बैठकर ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करने से कामकाज में आ रही हर तरह की रूकावटें दूर हो जाती है और सोचे हुए काम भी पूरे होते हैं।
 

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